रामधारी सिंह दिनकर (प्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार)
जब इस्लाम आया, उसे देश में फैलने से देर नहीं लगी। तलवार के भय अथवा पद के लोभ से तो बहुत थोड़े ही लोग मुसलमान हुए, ज़्यादा तो ऐसे ही थे जिन्होंने इस्लाम का वरण स्वेच्छा से किया। बंगाल, कश्मीर और पंजाब में गाँव-के-गाँव एक साथ मुसलमान बनाने के लिए किसी ख़ास आयोजन की आवश्यकता नहीं हुई।
…मुहम्मद साहब ने जिस धर्म का उपदेश दिया वह अत्यंत सरल और सबके लिए सुलभ धर्म था। अतएव जनता उसकी ओर उत्साह से बढ़ी। ख़ास करके, आरंभ से ही उन्होंने इस बात पर काफ़ी ज़ोर दिया कि इस्लाम में दीक्षित हो जाने के बाद, आदमी आदमी के बीच कोई भेद नहीं रह जाता है। इस बराबरी वाले सिद्धांत के कारण इस्लाम की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और जिस समाज में निम्न स्तर के लोग उच्च स्तर वालों के धार्मिक या सामाजिक अत्याचार से पीड़ित थे उस समाज के निम्न स्तर के लोगों के बीच यह धर्म आसानी से फैल गया…।
‘‘जिस इस्लाम का प्रवर्त्तन हज़रत मुहम्मद ने किया था…वह धर्म, सचमुच, स्वच्छ धर्म था और उसके अनुयायी सच्चरित्र, दयालु, उदार, ईमानदार थे। उन्होंने मानवता को एक नया संदेश दिया, गिरते हुए लोगों को ऊँचा उठाया और पहले-पहल दुनिया में यह दृष्टांत उपस्थित किया कि धर्म के अन्दर रहने वाले सभी आपस में समान हैं। उन दिनों इस्लाम ने जो लड़ाइयाँ लड़ीं उनकी विवरण भी मनुष्य के चरित्रा को ऊँचा उठाने वाला है।’’
—‘संस्कृति के चार अध्याय’
लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 1994
पृष्ठ-262, 278, 284, 326, 317
Courtesy: Ummat e Nabi (S)
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)
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यह ब्लॉग बेहद अच्छा है।
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