कुरआन-और-आधुनिक-विज्ञान
आधुनिक विज्ञान और पवित्र क़ुरआन में परस्पर अनुकूलता है या प्रतिकूलता?
"कुरआन और आधुनिक विज्ञान" के विषय पे एक बेहतरीन लेख Quran aur Science in Hindi:-


    Quran aur Science in Hindi

    तर्क संगत सोच:-
    जब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों के ताने-बाने में इसका अपना क्या स्थान है और यह कि आखि़र खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ? सच्चाई की इसी तलाश में, जो सदियों की मुद्दत और धीर - गम्भीर संस्कृतियों पर फैली हुई है, संगठित धर्मो ने मानवीय जीवन शैली की संरचना की है और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक धारे का निर्धारण भी किया है।

              कुछ धर्मो की बुनियाद लिखित पंक्तियों व आदेशों पर आधारित है जिन के बारे में उनके अनुयायियों का दावा है, कि वह खुदाई या ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली शिक्षा का सारतत्व है, जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर रही है।

              क़ुरआन, जो इस्लामी आस्था का केंद्रीय स्रोत है एक ऐसी किताब है जिसे इस्लाम के अनुयायी मुसलमान, पूरे तौर पर खु़दाई या आसमानी साधनों से आया हुआ मानते हैं। इसके अलावा क़ुरआन -ए पाक के बारे में मुसलमानों का यह विश्वास, कि इसमें रहती दुनिया तक मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है, चूंकि क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये है, अत: इसे हर युगीन समानता के अनुसार होना चाहिये, तो क्या क़ुरआन इस कसौटी पर पूरा उतरता है?, प्रस्तुत शोध - पत्र में मुसलमानों के इस विश्वास का वस्तुगत विश्लेषण (Objective analysis) पेश किया जा रहा है जो, क़ुरआन के इल्हामी साधन द्वारा अवतरित होने की प्रमाणिकता को वैज्ञानिक खोज के आलोक में स्थापित करती है। 
              मानव इतिहास में एक युग ऐसा भी था जब "चमत्कार'' या चमत्कारिक वस्तु मानवीय ज्ञान और तर्क से आगे हुआ करती थी चमत्कार की आम परिभाषा है, ऐसी "वस्तु'' जो साधारणतया मानवीय जीवन के प्रतिकूल हो और जिसका बौद्धिक विश्लेषण इंसान के पास न हो। फिर किसी भी वस्तु को करिश्मे के तौर पर मानने से पहले हमें बहुत बचना पड़ेगा, जैसे 1993 में "टाइम्स ऑफ इंडिया" मुम्बई में एक ख़बर प्रकाशित हुई, जिस में "बाबा पायलट" नामी एक साधू ने दावा किया था कि वह पानी से भरे एक टैंक के अंदर लगातार तीन दिन और तीन रातों तक पानी में रहा, अलबत्ता जब रिपोर्टरों ने उस टैंक की सतह का जायज़ा लेने की कोशिश की तो उन्हें इसकी इजाज़त नहीं मिली।
              बाबा ने पत्रकारों को उत्तर दिया किसी को उस मां के गर्भ (Womb) का विश्लेषण करने की आज्ञा कैसे दी जा सकती है, जिससे बच्चा जन्म लेता है साफ़ जा़हिर है कि "साधू जी" कुछ ना कुछ छुपाना चाह रहे थे, और उनका यह दावा सिर्फ़ ख्याति प्राप्त करने की एक चाल थी, यक़ीनन नये दौर का कोई भी व्यक्ति जो तर्क संगत सोच (Rational thinking) की ओर थोड़ा झुकाव रखता होगा, ऐसे किसी चमत्कार को नहीं मानेगा। अगर ऐसे झूठे और आधारहीन "चमत्कार" अल्लाह द्वारा घटित होने का आधार बने तो नऊज़ू-बिल्लाह हमें दुनिया के सारे जादूगरों को ख़ुदा के अस्ल प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार करना पडे़गा।
              एक ऐसी किताब जिसके अल्लाह द्वारा अवतरित होने का दावा किया जा रहा है, उसी आधार पर एक चमत्कारी जादूगर की दावेदारी भी है तो उसकी पुष्टि (Verification) भी होनी चाहिये। मुसलमानों का विश्वास है, कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा उतारी हुई और सच्ची किताब है जो अपने आप में एक चमत्कार है, और जिसे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये उतारा गया है। आइये हम इस आस्था और विश्वास की प्रमाणिकता का बौद्धिक विश्लेषण करते हैं।

    पवित्र क़ुरआन की चुनौती

              तमाम संस्कृतियों में मानवीय शक्ति वचन और रचनात्मक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी (काव्य रचना) सर्वोरि है। विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़माना गु़ज़रा है जब समाज में साहित्य और काव्य को वही स्थान प्राप्त था, जो आज विज्ञान और तकनीक को प्राप्त है।
              गै़र-मुस्लिम भाषा-वैज्ञानिकों की सहमति है कि अरबी साहित्य का श्रेष्ठ सर्वोत्तम नमूना पवित्र क़ुरआन है यानी इस ज़मीन पर अरबी सहित्य का सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण क़ुरआन -ए पाक ही है। मानव जाति को पवित्र क़ुरआन की चुनौति है कि इन क़ुरआनी आयतों (वाक्यों) के समान कुछ बनाकर दिखाए उसकी चुनौती है:
    और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा हैं, तुम किसी सन्देह में न हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है  (अल क़ुरआन: सूर 2 आयत 23 से 24)

              पवित्र क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में सम्पूर्ण मानवजाति को चुनौती दे रहा है कि वह ऐसी ही एक सूरः बना कर तो दिखाए जैसी कि क़ुरआन में कई स्थानों पर दर्ज है। सिर्फ एक ही ऐसी सुरः बनाने की चुनौति जो अपने भाषा सौन्दर्य मृदुभषिता, अर्थ की व्यापकता और चिंतन की गहराई में पवित्र क़ुरआन की बराबरी कर सके, आज तक पूरी नहीं की जा सकी।

              यद्यपि आधुनिक युग का तटस्थ व्यक्ति भी ऐसे किसी धार्मिक ग्रंथ को स्वीकार नहीं करेगा, जो अच्छी साहित्यिक व काव्यात्मक भाषा का उपयोग करने के बावजूद यह कहता हो कि धरती चप्टी है। यह इस लिये है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां इंसान के बौद्धिक तर्क और विज्ञान को आधारभूत हैसियत हासिल है। बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह द्वारा पवित्र क़ुरआन के अस्तित्व की प्रामाणिकता में उसकी असाधारण और सर्वोत्तम साहित्यिक भाषा को पर्याप्त प्रमाण नहीं मानेंगे। कोई भी ऐसा ग्रंथ जो आसमानी होने और अल्लाह द्वारा प्रदत्त होने का दावेदार हो, उसे अपने प्रासंगिक तर्कों की दृढ़ता के आधार पर ही स्वीकृति के योग्य होना चाहिये ।

              प्रसिद्ध भौतिकवादी दर्शनशास्त्री और नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक "अल्बर्ट आइन्स्टाइन" के अनुसार "धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और धर्म के बिना विज्ञान अंधा है" इसलिये अब हम पवित्र क़ुरआन का अध्ययन करते हुए यह जानने का प्रयत्न करते हैं, कि आधुनिक विज्ञान और पवित्र क़ुरआन में परस्पर अनुकूलता है या प्रतिकूलता ?
              यहां याद रखना ज़रूरी है कि पवित्र क़ुरआन कोई "विज्ञान की किताब" (Book of Science) नहीं है, बल्कि यह "निशानियों'' की (Book of Signs) यानि आयात की किताब है। पवित्र क़ुरआन में छह हज़ार से अधिक "निशानियां" (आयतें / वाक्य) हैं, जिनमें एक हज़ार से अधिक वाक्य विशिष्ट रूप से विज्ञान एवं वैज्ञानिक विषयों पर बहस करती हैं। हम जानते हैं कि कई अवसरों पर विज्ञान "यू टर्न" (U turn) लेता है यानि विगत-विचार के प्रतिकूल बात कहने लगता है। अत: मैंने इस लेख में केवल सर्वमान्य वैज्ञानिक वास्तविकताओं को ही चुना है, जबकि ऐसे विचारों व दृष्टिकोण पर बात नहीं की है जो महज़ कल्पना हो और पुष्टि के लिये वैज्ञानिक प्रमाण न हो।

    >>अंतरिक्ष - विज्ञान<<
    (Astrology)

    सृष्टि की संरचना

    (1). सृष्टि की संरचना: "बिग बैंग" अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक 
    (Phenomenon) के माध्यम से करते हैं और जिसे व्यापक रूप से "बिग बैंग" (Big bang) के रूप में 
    स्वीकार किया जाता है। "बिग बैंग" के प्रमाण में 

    पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है, "बिग बैंग" दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्ठि प्राथमिक रसायन (Primary nebula) के रूप में थी, फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग (Secondary separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (Chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की "सम्भावना" (Probability) शून्य थी। 

    पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:

    "क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया" (अल - क़ुरआन: सुर: 21, आयत 30)

    इस क़ुरआनी वचन और "बिग बैंग" के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?

    आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसाय

    (2). आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन:
    Quran-aur-Vigyan
    वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (Gas) की अवस्था में था, संक्षिप्त यह कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था; जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द "धुंआ" है।

    निम्नांकित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को धुंआ शब्द से रेखांकित किया है।

    "फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह मात्र धुआँ था- और उसने उससे और धरती से कहा, 'आओ, स्वेच्छा के साथ या अनिच्छा के साथ।' उन्होंने कहा, 'हम स्वेच्छा के साथ आए।" (अल कु़रआन: सूर: 41, आयत 11)

    एक बार फिर, यह यथार्थ भी "बिग बैंग" के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ (सल्ल०) की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था, (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के 1300 वर्ष बाद की पैदावार है )

    अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?

    धरती की अवस्था: गोल या चपटी

    (3). धरती की अवस्था: गोल या चपटी:
    प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़! फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द (समुद्र मार्ग से) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:



    "क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में।" (अल-.क़ुरआन: सूर: 31 आयत 29)


    यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है, कि अल्लाह ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन
    के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है, यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो। अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता।

    निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:



    "उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से) उत्पन्न किया है, वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है। (अल.-क़ुरआन: सूर:39 आयत 5)


    यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द "कव्वर" (وَيُكَوِّرُ) का अर्थ है, किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या (Overlap) करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर (तार की तरह) बांधना। दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है, जब ज़मीन की बनावट गोल हो।



    ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (Geo-spherical) है यानि ध्रुव (Poles) पर से थोडी सी चपटी है। निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई हैः "और धरती को देखो! इसके पश्चात उसे फैलाया (या बिछाया)"
     (अल क़ुरआन: सूर 79 आयत 30)

    यहां अरबी शब्द "दहाहा (دَحَىٰهَآ)" प्रयुक्त है, जिसका आशय "शुतुरमुर्ग़" के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है। इस प्रकार यह प्रमाणित हुआ, कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है; यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।

    चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है

    (4). चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है
    प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है, फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।

    "बड़ी बरकतवाला है वह, जिसने आकाश में बुर्ज (नक्षत्र) बनाए और उसमें एक चिराग़ और एक चमकता चाँद बनाया।" (अल क़ुरआन, सूर: 25 आयत 61)

    पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द "शम्स (ٱلشَّمْسَ)" प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को "सिराज (سِرَٰجًا)" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है मशाल (Torch) जबकि अन्य अवसरों पर उसे "वहाज" अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ "प्रदीप्त" तेज और महानता है। सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं, क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन (Combustion) का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।

    चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द "क़मर (وَٱلْقَمَرَ) प्रयुक्त किया गया है, और इसे बतौर "मुनीर" प्रकाशमान बताया गया है, ऐसा शरीर जो "नूर" (ज्योति) प्रदान करता हो। अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो। एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है; बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है, और हमें जलता हुआ दिखाई देता है। पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये "दीपक, सिराज और वहाज" आदि  जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है, और न ही सूरज को, "नूर या मुनीर" कहा गया है। इस से स्पष्ट होता है कि, पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।

    निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:

    वही है जिस ने सूरज को को सर्वथा दीप्ति बनाया और चांद को चमक दी। (अल-क़ुरआन, सूरः 10, आयत 5)



    क्या देखते नहीं हो कि अल्लाह ने किस प्रकार सात आसमान एक के ऊपर एक बनाए और उनमें चांद को नूर (نُورًا ज्योति) और सूरज को चिराग़ (سِرَاجًا दीपक) बनाया। (अल- क़ुरआन: सूर:71 आयत 15 से 16)


    इन पवित्र आयतों के अध्य्यन से प्रमाणित होता है कि महान पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान में धूप और चाँदनी की वास्तविकता के बारे में सम्पूर्ण सहमति है।

    सूरज घूमता है

    (5). सूरज घूमता है
    एक लम्बी अवधि तक यूरोपीय दार्शिनिकों और वैज्ञानिकों का विश्वास रहा है कि धरती सृष्टि के केंद्र में चुप खड़ी है, और सूरज सहित सृष्टि की प्रत्येक वस्तु उसकी परिक्रमा कर रही है। इसे धरती का केंद्रीय दृष्टिकोण  भूकेन्द्रीय सिद्धांत (Geocentric theory) भी कहा जाता है जो बतलीमूस-काल (Time of Ptolemy), दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं सदी ई. तक सर्वमान्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है, पुन: 1512 ई0 में निकोलस 

    कॉपरनिकस (Nicholas Copernicus) ने, अंतरिक्ष में ग्रहों की गति के सौर-केंद्रित ग्रह- गति सिद्धांत (Heliocentric Theory of Planetary Motion) का प्रतिपादन किया जिसमें कहा गया था; कि सूरज सौरमण्डल के केंद्र में यथावत है, और अन्य तमाम ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे है।1609 ई0 में एक जर्मन वैज्ञानिक जोहानस कैप्लर (Yohannus Keppler) ने (Astronomia Nova) "खगोलीय तंत्र" नामक एक किताब प्रकाशित कराई। जिसमें विद्वान लेखक ने न केवल यह सिद्ध किया कि सौरमण्डल के ग्रह दीर्ध वृत्तीय (Elliptical) अण्डाकार धुरी पर सूरज की परिक्रमा करते हैं, बल्कि उसमें यह प्रमाणिकता भी अविष्कृत है कि सारे ग्रह अपनी धुरियों (Axis) पर अस्थाई गति से घूमते हैं। इस अविष्कृत ज्ञान के आधार पर यूरोपीय वैज्ञानिकों के लिये सौरमण्डल की अनेक व्यवस्थाओं की सटीक व्याख्या करना सम्भव हो गया। रात और दिन के परिवर्तन की निरंतरता के इन अविष्कारों के बाद यह समझा जाने लगा कि सूरज यथावत है, और धरती की तरह अपनी धुरी पर परिक्रमा नहीं करता। मुझे याद है कि मेरे स्कूल के दिनों में भूगोल की कई किताबों में इसी ग़लतफ़हमी का प्रचार किया गया था। अब ज़रा पवित्र क़ुरआन की निम्न आयतों को ध्यान से देखें:

    "वही (अल्लाह ही) है जिसने रात और दिन बनाए और सूर्य और चन्द्र भी। प्रत्येक अपने-अपने कक्ष में तैर रहे हैं।" (अल-क़ुरआन: सूर: 21 आयत 33)

    ध्यान दीजिए, कि उपरोक्त आयत में अरबी शब्द "यस्बहून (يَسْبَحُونَ)" प्रयुक्त किया गया है जो सब्हा से उत्पन्न है। जिसके साथ एक ऐसी हरकत की वैचारिक संकल्पना जुडी़ हुई है, जो किसी शरीर की सक्रियता से उत्पन्न हुई हो। अगर आप धरती पर किसी व्यक्ति के लिये इस शब्द का उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह लुढक रहा है, बल्कि इसका आशय होगा कि अमुक व्यक्ति दौड़ रहा है अथवा चल रहा है; अगर यह शब्द पानी में किसी व्यक्ति के लिये उपयोग किया जाए तो इसका अर्थ यह नहीं होगा, कि वह पानी पर चल रहा है बल्कि इसका अर्थ होगा, कि अमुक व्यक्ति पानी में तैराकी (Swimming) कर रहा है।

    इस प्रकार जब इस शब्द "यसबह" का किसी आकाशीय शरीर (नक्षत्र) सूर्य के लिये उपयोग करेंगे, तो इसका अर्थ केवल यही नहीं होगा कि वह शरीर अंतरिक्ष में गतिशील है बल्कि इसका वास्तविक अर्थ कोई ऐसा साकार शरीर होगा जो अंतरिक्ष में गति करने के साथ साथ अपने धु्रव पर भी घूम रहा हो। आज स्कूली पाठयक्रमों में अपनी जानकारी ठीक करते हुए यह वास्तविक्ता शामिल कर ली गई है कि सूर्य की ध्रुवीकृत परिक्रमा की जांच किसी ऐसे यंत्र से की जानी चाहिये, जो सूर्य की परछाई को फैला कर दिखा सके इसी प्रकार अंधेपन के ख़तरे से दो चार हुए बिना सूर्य की परछाई का शोध सम्भव नहीं। यह देखा गया है कि सूर्य के धरातल पर धब्बे हैं जो अपना एक चक्कर लगभग 25 दिन में पूरा कर लेते है । मतलब यह की सूर्य को अपने ध्रुव के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 25 दिन लग जाते है। इसके अलावा सूर्य अपनी कुल गति 240 किलो मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ़तार से अंतिरक्ष की यात्रा कर रहा है। इस प्रकार सूरज समान गति से हमारे देशज मार्ग आकाशगंगा (Milky Way Galaxy) की परिक्रमा 20 करोड़ वर्ष में पूरी करता है।

    "न सूर्य के बस में है कि वह चांद को जाकर पकड़े और न रात, दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है; सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं।" (अल-क़ुरआन: सूर: 36 आयत 40)

    यह पवित्र आयत एक ऐसे आधारभूत यथार्थ की तरफ़ इशारा करती है, जिसे आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ने बीती सदियों में खोज निकाला है; यानि चांद और सूरज की मौलिक परिक्रमा (Orbits) का अस्तित्व अंतिरक्ष में सक्रिय यात्रा करते रहना है।

    वह निश्चित स्थल (Fixed place) जिसकी ओर सूरज अपनी सम्पूर्ण मण्डलीय व्यवस्था सहित यात्रा पर है। आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान द्वारा सही-सही पहचान ली गई है।

    इसे सौर कथा (Solar Apex) का नाम दिया गया है। पूरी सौर व्यवस्था वास्तव में अंतरिक्ष के उस स्थल की ओर गतिशील है जो हरक्यूलिस (Hercules) नामक ग्रह (Alpha Lyrae) में अवस्थित है और उसका वास्तविक स्थल हमें ज्ञात हो चुका है।

    चांद अपनी धुरी पर उतनी ही अवधि में अपना चक्कर पूरा करता जितने समय में वह धरती की एक परिक्रमा पूरी करता है। चांद को अपनी एक ध्रुवीय परिक्रमा पूरी करने में 29.5 दिन लग जाते हैं। पवित्र क़ुरआन की आयत में वैज्ञानिक वास्तविकताओं की पुष्टि पर आश्चर्य किये बिना कोई चारा नहीं है। क्या हमारे विवेक में यह सवाल नहीं उठता कि आखिर, क़ुरआन में प्रस्तुत ज्ञान का स्रोत और ज्ञान का वास्तविक आधार क्या है?

    सूरज बुझ जाएगा

    (6). सूरज बुझ जाएगा
    सूरज का प्रकाश एक रसायनिक क्रिया का मुहताज है जो उसके धरातल पर विगत पांच अरब वर्षों से जारी है भविष्य में किसी अवसर पर यह कृत रूक जाएगा और तब सूरज पूर्णतया बुझ जाएगा जिसके कारण धरती पर जीवन की समाप्ति हो जाए पवित्र क़ुरआन सूरज के अस्तित्व की पुष्टि इस प्रकार करता है:
    "और सूरज वह अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है, यह ब्रहम्ज्ञान के स्रोत महाज्ञानी का बांधा हुआ गणित है" (अल-क़ुरआन: सुर: 36 आयत 38)

    विशेष: इसी प्रकार की बातें पवित्र क़ुरआन के सूर: 13 आयत 2, सूर: 35, आयत 13 और सूर: 39 आयत 5 एवं 21 में भी बताई गई हैं
    यहां अरबी शब्द "मुस्तकिर (لِمُسْتَقَرٍّۢ)" ठिकाना का प्रयुक्त हुआ है, जिस का अर्थ है पूर्व से संस्थापित "समय" या "स्थल" यानी इस आयत में अल्लाह कहता है कि सूरज पूर्वतः निश्चित स्थ्ल की ओर जा रहा है। ऐसा पूर्व निश्चित समय के अनुसार ही करेगा अर्थात् यह कि सूरज भी समाप्त हो जाएगा या बुझ जाएगा।

    अन्तर तारकीय द्रव

    (7). अन्तर तारकीय द्रव

    पिछले ज़माने में संगठित अंतरिक्ष व्यवस्थओं से बाहर वाहृय अंतरिक्ष: वायुमण्डल को सम्पूर्ण रूप से ख़ाली (Vacuum) माना जाता था। इसके बाद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इस अंतरिक्ष्य प्लाविक के द्रव्यात्मक पुलों (Bridge) की खोज की जिसे प्लाविक (Plasma) कहा जाता है
     जो सम्पूर्ण रूप से आयोनाइज़्ड गैस (Ionized gas) पर आधारित होते हैं और जिसमें सकारात्मक प्रभाव (Positive ions) वाले और स्वतंत्रत इलैक्ट्रनों की समान संख्या होती है। द्रव की तीन जानी पहचानी अवस्थाओं यानी ठोस, तरल और ज्वलनशील तत्वों के अतिरिक्त प्लाविक को चौथी अवस्था भी कहा जाता है निम्नलिखित आयत में पवित्र क़ुरआन अंतरिक्ष के प्लाविक द्रव (Interstellar material) की ओर संकेत करता है।

    "वह जिस ने छह दिनों में ज़मीन और आसमानों और उन सारी वस्तुओं का निर्माण पूरा कर दिया जो आसमान और ज़मीन के बीच में हैं।" (अल-क़ुरआन, सूर: 25 आयत 59)

    किसी के लिये यह विचार भी हास्यास्पद होगा कि वायुमण्डल अंतरिक्ष एवं आकाशगंगा के द्रव्यों का अस्तित्व 1400 वर्ष पहले से ही हमारे ज्ञान में था।

    सृष्टि का फैलाव

    (8). सृष्टि का फैलाव
    1925 ई0 में अमरीका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक एड्विन हबल (American astronomer Edwin Hubble) ने इस संदर्भ में एक प्रामाणिक खोज उपलब्ध कराया था, कि सभी आकाशगंगा एक दूसरे से दूर हट रहे हैं अर्थात सृष्टि फैल रही है सृष्टि व्यापक हो रही है। यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है इस बारे में पवित्र क़ुरआन में सृष्टि की संरचना के संदर्भ से अल्लाह फ़रमाता है:

    "आसमान को हम ने अपने ज़ोर (कुदरत) से बनाया है, और हम इसे फैलाव दे रहे हैं।" (अल-क़ुरआन: सूर: 51 आयत 47)

    अरबी शब्द "मुसिऊन لَمُوسِعُونَ" का सही अनुवाद "इसे फैला रहे हैं" बनता है तो यह आयत सृष्टि के ऐसे निर्माण की ओर संकेत करती है जिसका फैलाव निरंतर जारी है।
    वर्तमान युग का प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिगं (Stephen Hawking) अपने शोधपत्र: "समय का संक्षिप्त इतिहास" (A Brief History of Time) में लिखता हैः "यह खोज! कि सृष्टि फैल रही है बीसवी सदी के महान बौद्धिक और चिंतन क्रांतियों में से एक है" अब ध्यान दीजिये कि पवित्र क़ुरआन नें सृष्टि के फैलाव की कथा उसी समय बता दी थी, जब मनुष्य ने दूरबीन  का अविष्कार तक नहीं किया था। इसके बावजूद संदिग्ध विवेक रखने वाले कुछ लोग, यह कह सकते हैं कि पवित्र क़ुरआन में आंतरिक्ष यथार्थ का मौजूद होना आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि अरबवासी इस ज्ञान के प्रारम्भिक विशेषज्ञ थे।

    अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के प्राधिकरण की सीमा तक तो उनका विचार ठीक है, लेकिन इस बिंदु को समझने में वे नाकाम हो चुके हैं; कि अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के उत्थान से भी सदियों पहले ही पवित्र क़ुरआन का अवतरण हो चुका था इसके अतिरिक्त ऊपर वर्णित बहुत से वैज्ञानिक यथार्थ जैसे बिग बैंग से सृष्टि के प्रारम्भन आदि की जानकारी से तो अरब उस समय भी अनभिज्ञ ही थे, जब वह विज्ञान और तकनीक के विकास और उन्नति की सर्वोत्तम ऊंचाई पर थे अत: पवित्र क़ुरआन में वर्णित वैज्ञानिक यथार्थ को अरबवासियों की विशेषज्ञता नहीं मान जा सकता। दरअस्ल इसके प्रतिकूल सच्चाई यह है कि अरबों ने अंतरिक्ष विज्ञान में इसलिये उन्नति की क्योंकि अंतरिक्ष और सृष्टि के निर्माण विषयक जानकारियां पवित्र क़ुरआन में आसानी से उप्लब्ध हो गए थे। इस विषय को पवित्र क़ुरआन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

    >>प्राकृतिक - विज्ञान<<
    (Natural Science)

    परमाणु भी विभाजित किये जा सकते हैं

    (9). परमाणु भी विभाजित किये जा सकते हैं
    प्राचीन काल में परमाणुवाद (Atomism) के दृष्टिकोण शीर्षक से एक सिद्ध दृष्टिकोण को व्यापक धरातल पर स्वीकर किया जाता था यह दृष्टिकोण आज से 2300 वर्ष पहले यूनानी दर्शनशास्न्नी डेमोक्रिटस  (Democritus) ने पेश किया था विमाक्रातिस और उसके वैचारिक अनुयायी की संकल्पना थी कि, द्रव्य की न्यूनतम इकाई परमाणु है, प्राचीन अरब वासी भी इसी संकल्पना के समर्थक थे। 
    अरबी शब्द, ‘‘ज़र्रा (ذَرَّةٍ) अणु का मतलब वही था जिसे यूनानी "एटम" कहते थे

    निकटतम इतिहास में विज्ञान ने यह खोज की है कि "परमाणु" को भी विभाजित करना सम्भव है, परमाणु के विभाजन योग्य होने की कल्पना भी बीसवीं सदी की वैज्ञानिक सक्रियता में शामिल है। चौदह शताब्दि पहले अरबों के लिये भी यह कल्पना असाधारण होती। उनके समक्ष ज़र्रा अथवा 'अणु' की ऐसी सीमा थी जिसके आगे और विभाजन सम्भव नहीं था।लेकिन पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में अल्लाह ने परमाणु सीमा को अंतिम सीमा मानने से इन्कार कर दिया है।

    "जिन लोगों ने इनकार किया उनका कहना है कि "हमपर क़ियामत की घड़ी नहीं आएगी।" कह दो, "क्यों नहीं, मेरे परोक्ष ज्ञाता रब की क़सम! वह तो तुमपर आकर रहेगी - उससे अणु बराबर भी कोई चीज़ न तो आकाशों में ओझल है और न धरती में, और न इस (अणु) से छोटी कोई चीज़ और न बड़ी। किन्तु वह एक स्पष्ट किताब में अंकित है।" (अल-कु़रआन: सूर: 34 आयत 3)

    विशेष: इस प्रकार का संदेश पवित्र क़ुरआन की सूर: 10 आयत 61 में भी वर्णित है।

    यह पवित्र आयत हमें अल्लाह तआला के आलिमुल गै़ब अंतर्यामी होने, यानि प्रत्येक अदृश्य और सदृश्य वस्तु के संदर्भ से महाज्ञानी होने के बारे में बताती है फिर यह आगे बढ़ती है और कहती है कि अल्लाह तआला हर चीज़ का ज्ञान रखते हैं चाहे वह परमाणु से छोटी या बड़ी वस्तु ही क्यों न हो। तो प्रमाणित हुआ कि यह पवित्र आयत स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि, परमाणु से संक्षिप्त वस्तु भी अस्तित्व में है और यह एक ऐसा यथार्थ है जिसे अभी हाल ही में आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है।

    >>जल - विज्ञान<<
    (Hydrology)

    जल चक्र

    (10) जल चक्र 
    आज हम जिस संकल्पना को "जल- चक्र" (Water cycle) नाम से जानते हैं उसकी संस्थापना:
    1580 ई0 में बरनॉर्ड प्लेसी (Bernard Palissy) ने की थी। उसने बताया, किस प्रकार समुद्रों से जल का वाष्पीकरण (Evaporation) होता है, और तत्पश्चात किस प्रकार वह ठंडा होकर बादलों के रूप में परिवर्तित होता है फिर उसके बाद, शुष्क (खुश्क) वातावरण में आगे की ओर उड़ते हुए ऊंचाई की तरफ़ बढ़ता है, उसमें जल का संघनन (Condensation) होता है और वर्षा होती है। उसी वर्षा का पानी झीलों, झरनों, नदियों और नहरों में अपना आकार लेता है, और अपनी गति से बहता हुआ वापिस समुद्र में चला जाता है; इसी प्रकार यह जल-चक्र जारी रहता है सातवीं सदी ईसा पूर्व में थैल्ज (Thales of Miletus) नामक एक यूनानी दार्शनिक को विश्वास था कि सामुद्रिक धरातल पर एक बारीक जल-बूंदों की फुहार (Spray) उत्पन्न होती है जिसे हवा उठा लेती है और ख़ुश्की के दूर दराज़ क्षेत्रों तक ले जाकर वर्षा के रूप में
    छोड़ देती है, जिसे बारिश कहते हैं इसके अलावा पुराने समये में लोग यह भी नहीं जानते थे कि ज़मीन के नीचे पानी का स्रोत क्या है? उनका विचार था कि वायु शक्ति के अंतर्गत समंदर का पानी उपमहाद्वीप (सूखी धरती) में भीतरी भागों में समा जाता है उनका विश्वास था कि पानी एक गुप्त मार्ग से अथवा गहरे-अंधेरे (Great Abyss) से आता है। समुद्र से मिला हुआ या काल्पनिक मार्ग प्लेटो काल से जो टॉरटॉरस (Tartarus) कहलाता था, यहां तक कि अटठारहवीं सदी के महान चिंतक "डेकार्ट" (Descartes)  भी इन्ही विचारों से सहमति व्यक्त की है।

    उन्नीसवीं सदी ईसवी तक "अरस्तू" (Aristotle’s theory) का दृष्टिकोण ही अधिक प्रचलित रहा। उस दृष्टिकोण के अनुसार, पहाड़ों की बर्फीली गुफा़ओं में बर्फ़ के संघनन से पानी उत्पन्न होता है, जिससे वहां ज़मीन के नीचे झीलें बनती है और जो पानी का मुख्य स्रोत हैं। आज हमें यह मालूम हो चुका है कि बारिश का पानी ज़मीन पर मौजूददरारों के रास्ते बह-बह कर ज़मीन के नीचे पहुंचता है और चश्म: जलकुण्ड की उत्त्पत्ति होती है। पवित्र क़ुरआन में इस बिंदु की व्याख्या इस प्रकार है:

    "क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ने आकाश से पानी बरसाया, फिर धरती में उसके स्रोत (चश्मा और दरियां) प्रवाहित कर दिए; फिर उसके द्वारा खेती निकालता है, जिसके विभिन्न रंग होते है; फिर वह सूखने लगती है; फिर तुम देखते हो कि वह पीली पड़ गई; फिर वह उसे चूर्ण-विचूर्ण कर देता है? निस्संदेह इसमें बुद्धि और समझवालों के लिए बड़ी याददिहानी है।" (अल-क़ुरआन सूर: 39 आयत 21)

    "....आसमान से पानी बरसाता है फिर उसके माध्यम से धरती को उसकी 'मृत्यु' (बंजर होने) के बाद जीवन प्रदान करता है । यक़ीनन उसमें बहुत सी निशानियां हैं उन लोगों के लिये जो विवेक से काम लेते हैं।" (अल-क़ुरआन: सूर 30 आयत 24)

    "और आसमान से हम ने ठीक गणित के अनुकूल एक विशेष मात्रा में पानी उतारा और उसको धरती पर ठहरा दिया हम उसे जिस प्रकार चाहें विलीन (ग़ायब ) कर सकते हैं।" (अल-क़ुरआन: सूर:23 आयत 18)


    कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है जो 1400 वर्ष पुराना हो,  और पानी के जलचक्र की ऐसी सटीक व्याख्या करता हो। 



    >> वाष्पीकरण (Evaporation)

    "कसम है आवर्तन (उलट-फेर) वाला आकाश की,  [By the sky which returns (rain)]" (अल-क़ुरआन: सूर: 86 आयत 11)

    >> वायु द्वारा बादलों का गर्भाधान: (Winds Impregnate Clouds)

    "हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते है। फिर आकाश से पानी बरसाते है और उससे तुम्हें सिंचित करते है। उसके ख़जानादार तुम नहीं हो।" (अल-क़ुरआन: सूर:15 आयत 22)

    यहां अरबी शब्द लवाक़िह لَوَٰقِحَ का उपयोग किया गया है जो लाक़िह का बहुवचन है और लाक़िहा का विशेषण है अर्थात, बार आवर यानी भर देना अथवा गर्भाधान। इसी वाक्यांश में बार-आवर का तात्पर्य यह कि वायु बादलों को एक दूसरे के समीप ढकेलती हैं, जिसके कारण बादल के पानी में परिवर्तित होने की क्रिया गतिशील होती है, उक्त गतिशीलता के नतीजे में बिजली चमकने और बारिश होने की घटना क्रिया होती है। कुछ इसी प्रकार के स्पष्टीकरण पवित्र क़ुरआन की अन्य आयतों में भी मिलते हैं:

    ‘‘क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उनको परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह पर तह कर देता है। फिर तुम देखते हो कि उसके बीच से मेह बरसता है? और आकाश से- उसमें जो पहाड़ है (बादल जो पहाड़ जैसे प्रतीत होते है उनसे) - ओले बरसाता है। फिर जिस पर चाहता है, उसे हटा देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिजली की चमक निगाहों को उचक ले जाएगी।" (अल-क़ुरआन: सूर: 24 आयत 43)

    "अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है। फिर वे बादलों को उठाती हैं; फिर जिस तरह चाहता है उन्हें आकाश में फैला देता है और उन्हें परतों और टुकड़ियों का रूप दे देता है। फिर तुम देखते हो कि उनके बीच से वर्षा की बूँदें टपकी चली आती है। फिर जब वह अपने बन्दों में से जिनपर चाहता है, उसे बरसाता है। तो क्या देखते है कि वे हर्षित हो उठे।" (अल-कुरआन: सूर 30 आयत 48)

    पवित्र क़ुरआन में वर्णित ऊपर चर्चित व्याख्या जल विज्ञान (Hydrology) पर उप्लब्ध नवीन अध्ययन की भी पुष्टि करते हैं। महान ग्रंथ पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतों में जल चक्र का वर्णन किया गया है।

    उदाहरणतया: 
    >कुरआन< 
    सूर: 7 आयत 57, सूर: 13 आयत 17, सूर: 25 आयत 48-49, सूर: 35 आयत 9, सूर 36 आयत 34, सूर: 45 आयत 5, सूर: 50 आयत 9-11, सूर: 56 आयत 68-70 और सूर: 67 आयत 30

    >>भू - विज्ञान<<
    (Geology)

     तंबुओं के खूंटों की प्रकार, पहाड़

    (11). तंबुओं के खूंटों की प्रकार, पहाड़
    भू-विज्ञान में बल पड़ने (Folding) की सूचना नवीनतम शोध का यथार्थ है। पृथ्वी के पटल (Crust) में बल पड़ने के कारणों से ही पर्वतों का जन्म हुआ। पृथ्वी की जिस सतह पर हम रहते हैं किसी ठोस छिलके या पपड़ी की तरह है, जब कि पृथ्वी की भीतरी परतें (Layers) बहुत गर्म और गीली हैं यही कारण है कि धरती का भीतरी भाग सभी प्रकार के जीव के लिये उपयुक्त नहीं है। आज हमें यह मालूम हो चुका है कि पहाड़ों की उत्थापना के अस्थायित्व (Stability) का सम्बंध पृथ्वी की परतों में बल (दरार) पड़ने की क्रिया से बहुत गहरा है क्योंकि यह पृथ्वी के पटल पर पड़ने वाले बल (Folds) ही हैं, जिन्होंने ज़न्ज़ीरों की तरह पहाड़ों को जकड़ रखा है। भू-विज्ञान विशेषज्ञों के अनुसार पृथ्वी की अर्द्धव्यास (Radius) की आधी मोटाई लगभग 6,035 किलो मीटर है और पृथ्वी के धरातल जिसपर हम रहते हैं उसके मुक़ाबले में बहुत ही पतली है, जिसकी मोटाई 2 किलो मीटर से लेकर 35 किलो मीटर तक है, इसलिये इसके थरथराने या हिलने की सम्भावना भी बहुत असीम है, ऐसे में पहाड़ किसी तंबू के खूंटों की तरह काम करते हैं, जो पृथ्वी के धरातल को थाम लेते हैं और उसे अपने स्थल पर अस्थायित्व प्रदान करते हैं। 





    पवित्र क़ुरआन भी यही कहता है:
    क्या यह घटना (वाक़िया) नहीं है कि हम ने पृथ्वी को फ़र्श बनाया और पहाड़ों को (मेखें) खूंटों की तरह गाड़ दिया (अल-क़ुरआन: सूर 78 आयत 6 से 7)

    यहां अरबी शब्द ‘‘औताद" (أَوْتَادًا) का अर्थ भी खूंटा ही निकलता है, वैसे ही खूंटे जैसा कि तंबुओं को बांधे रखने के लिये लगाए जाते हैं पृथ्वी के दरारों (Folds) या सलवटों की हुई बुनियादें भी यहीं गहरे छुपी हैं। "Earth" नामक अंग्रेजी़ किताब विश्व के अनेक विश्व विद्यालयों में भू-विज्ञान के बुनियादी उदाहरणों पर आधारित पाठयक्रम की पुस्तक है इसके लेखकों में एक नाम डा. फ्रैंक प्रेस (Dr. Frank Press) का भी है, जो 12 वर्षा तक अमरीका के विज्ञान-अकादमी के निदेशक रहे जबकि पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर (Jimmy Carter) के शासन काल में राष्ट्रपति के वैज्ञानिक सलाहकार भी थे, इस किताब में वह पहाडों की व्याख्या: कुल्हाड़ी के फल जैसे  (Wedge-shape) स्वरूप से करते हुए बताते हैं, कि पहाड़ स्वयं एक व्यापकतम अस्तित्व का एक छोटा हिस्सा होता है जिसकी जड़ें पृथ्वी में बहुत गहराई तक उतरी होती हैं। 
    संदर्भ ग्रंथ: Earth फ्रैंक प्रेस और सिल्वर पृष्ट 435, Earth Science, Tarbuck and Lutgens पृष्ट 157.

    ड़ॉ॰ फ्रेंक प्रेस के अनुसार पृथ्वी-पटल की मज़बूती और उत्थापना के अस्थायित्व में पहाड़ बहुत महत्पूर्ण भूमिका निभाते है।

    पर्वतीय कार्यों की व्याख्या करते हुए पवित्र क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में बताता है कि उन्हें इसलिये बनाया गया है ताकि यह पृथ्वी को कम्पन से सुरक्षित रखें।



    "और हम ने पृथ्वी में पहाड़ जमा दिये ताकि वह उन्हे लेकर ढ़ुलक न जाए" (अल क़ुरआन: सूर: 21 आयात 31)


    इसी प्रकार का वर्णन सूर 31: आयत. 10 और सूर: 16 आयत 15 में भी अवतरित हुए हैं

    अतः पवित्र क़ुरआन के उप्लब्ध बयानों में आधुनिक भू विज्ञान की जानकारियां पहले से ही मौजूद हैं।



    पहाड़ों को मज़बूती से जमा दिया गया है


    पृथ्वी की सतह अनगिनत ठोस टुकडों यानि 'प्लेटा' में टूटी हुई है, जिनकी औसतन मोटाई तकरीबन 100 किलो मीटर है। यह प्लेटें आंशिक रूप से पिंघले हुए हिस्से पर मानो तैर रही हैं। उक्त हिस्से को उद्दीपक गोले (Aesthenosphere) कहा जाता है। पहाड़ साधारणतया प्लेटों के बाहरी सीमा पर पाए जाते है। पृथ्वी का धरातल समुद्रों के नीचे 5 किलो मीटर मोटा होता है, जबकि सूखी धरती से सम्बद्ध प्लेट की औसत मोटाई 35 किलो मीटर तक होती है। अलबत्ता पर्वतीय श्रृंख्लाओं में पृथ्वी के धरातल की मोटाई 80 किलो मीटर तक जा पहुंचती है, यही वह मज़बूत बुनियादें है जिनपर पहाड़ खड़े है। पहाड़ों की मज़बूत बुनियादों के विषय में पवित्र क़ुरआन ने कुछ यूं बयान किया है:

    "और पहाड़ इसमें उत्थापित किये (गाड़ दिये)।" (अल क़ुरआन: सूर: 79 आयत 32)
    इसी प्रकार का संदेश सूरः 88 आयत .19 में भी दिया गया है ।

    अतः प्रमाणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में पहाड़ों के आकार, प्रकार और उसकी उत्थापना के विषय में दी गई जानकारी पूरी तरह आधुनिक काल के भू वैज्ञानिक खोज और अनुसंधानों के अनुकूल है।

    >>समुन्द्र - विज्ञान<<
    (Oceanography)

    मीठे और खारे पानी के बीच "आड़ (Barrier)"

    (12). मीठे और खारे पानी के बीच "आड़ (Barrier)"

    "उसने दो समुद्रो को प्रवाहित कर दिया, जो आपस में मिल रहे होते है। उन दोनों के बीच एक परदा बाधक होता है, जिसका वे अतिक्रमण नहीं करते।" (अल-क़ुरआन: सूर 55 आयत 19 से 20)

    आप देख सकते हैं कि इन आयतों के अरबी वाक्यांशों में शब्द "बरज़ख" (بَرْزَخٌ) प्रयुक्त हुआ है, जिसका अर्थ रूकावट, आड़ या दीवार है, जिसका अर्थ भौतिक आड़ कतई नहीं है, इसी क्रम में एक अन्य अरबी शब्द 'मरज (مَرَجَ)' भी आया हैः जिसका अर्थ हैः 'वह दोनों परस्पर मिलते और समाहित होते हैं।' प्रारम्भिक काल में पवित्र क़ुरआन के भाष्यकारों के लिये यह व्याख्या करना बहुत कठिन था, कि पानी के दो भिन्न देह से सम्बंधित दो विपरीतार्थक आशयों का तात्पर्य क्या है? अर्थात यह दो प्रकार के जल हैं जो आपस में मिलते भी हैं और उनके बीच दीवार भी है। आधुनिक विज्ञान ने यह खोज कर ली है, कि जहां-जहां दो भिन्न समुद्र (Oceans) आपस में मिलते है वहीं वहीं उनके बीच "आड़" भी होती है। दो समुद्रों को विभाजित करने वाली दीवार यह है कि उनमें से एक समुद्र की लवणता (Salinity) जल यानि तापमान और रसायनिक अस्तित्व एक दूसरे से भिन्न होते हैं। (संदर्भ:Principles of Oceanography, Davis, पृष्ठ 92-93)

    आज समुद्र विज्ञान के विशेषज्ञ ऊपर वर्णित पवित्र आयतों की बेहतर व्याख्या कर सकते हैं। दो समुद्रो के बीच जल का अस्तित्व (प्राकृतिक गुणों के कारण ) स्थापित होता है, जिससे गुज़र कर एक समंदर का पानी दूसरे समंदर में प्रवेश करता है तो वह अपनी मौलिक विशेषता खो देता है, और दूसरे जल के साथ समांगतात्मक मिश्रण (Homogeneous Mixture) बना लेता है। यानि एक तरह से यह रूकावट किसी अंतरिम सममिश्रण क्षेत्र का काम करती है। जो दोनों समुद्रों के बीच स्थित होती है। इस बिंदु पर पवित्र क़ुरआन में भी बात की गई है:

    या वह जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसके बीच-बीच में नदियाँ बहाई और उसके लिए मज़बूत पहाड़ बनाए और दो समुद्रों के बीच पर्दा बनाया। क्या अल्लाह के साथ कोई और प्रभु पूज्य है? नहीं, उनमें से अधिकतर लोग जानते ही नही!" (अल-क़ुरआन .सूर: 27 आयात 61 )
    यह स्थिति असंख्य स्थलों पर घटित होती है जिनमें (Gibralter) के क्षेत्र में रोम-सागर और अटलांटिक महासागर का मिलन स्थल विशेष रूप से चर्चा के योग्य है। इसी तरह दक्षिण अफ़्रीका में,"अंतरीप-स्थल (Cape point) और "अंतरीप प्रायद्वीप" (Cape Peninsula) में भी पानी के बीच, एक उजली पटटी स्पष्ट रूप से देखी

    जा सकती है, जहां एक दूसरे से अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर का मिलाप होता है। लेकिन जब पवित्र क़ुरआन ताज़ा और खारे पानी के मध्य दीवार या रूकावट की चर्चा करता है तो साथ-.साथ एक वर्जित क्षेत्र के बारे में भी बताता है:


    "और वही जिसने दो समुद्रों को मिला कर रखा है एक स्वादिष्ट और मीठा दूसरा कड़वा और नमकीन, और उन दोनों के बीच एक पर्दा है, एक रूकावट जो उन्हें मिश्रित होने से रोके हुए है" (अल-क़ुरआन सूर: 25 आयत 53)



    आधुनिक विज्ञान ने खोज कर ली है कि, साहिल के निकटस्थ समुद्री स्थलों पर जहां दरिया का ताजा़ मीठा और समुद्र का नमकीन पानी परस्पर मिलते हैं, वहां का वातावरण कदाचित भिन्न होता हैं, जहां दो समुद्रों के नमकीन पानी आपस में मिलते हैं। यह खोज हो चुकी है कि खाड़ियों के मुहाने या नदमुख (Estuaries) में जो वस्तु ताजा़ पानी को खारे पानी से अलग करती है, वह घनत्व उन्मुख क्षेत्र (Pycnocline zone) है, जिसकी बढ़ती घटती रसायनिक प्रक्रिया मीठे और खारे पानी के विभिन्न परतों (Layers) को एक दूसरे से अलग रखती है। रूकावट के इस पृथक क्षेत्र के पानी में नमक का अनुपात ताज़ा पानी और खारे पानी दोनों से ही भिन्न होता है
    (संदर्भः Oceanography, Gross, पृष्ठ 242 और Introductory Oceanography, Thurman, पुष्ठ 300-301) 

    इस प्रसंग का अध्ययन कई असंख्य स्थलों पर किया गया है, जिसमें मिस्र म्हलचज की खा़स चर्चा है जहां दरियाए नील, रोम सागर में गिरता है। पवित्र क़ुरआन में वर्णित इन वैज्ञानिक प्रसंगों की पुष्टि "डॉ. विलियम हैय" (Dr. William Hay) ने भी की है, जो अमरीका के कोलवाडोर यूनीवर्सिटी में समुद्र-विज्ञान और भू-विज्ञान के प्रोफे़सर हैं

    समुद्र की गहराइयों में अंधेरा

    (13). समुद्र की गहराइयों में अंधेरा
    समुद्र-विज्ञान और भू-विज्ञान के जाने माने विशेषज्ञ प्रोफेसर दुर्गा राव (Prof. Durga Rao) जद्दा स्थित शाह अब्दुल अजी़ज़ यूनिवर्सिटी, सऊदी अरब में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं।



    एक बार उन्हें निम्नलिखित पवित्र आयत की समीक्षा के लिये कहा गया:


    "या फिर जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर छा रही हैं; उसके ऊपर बादल है, अँधेरे है एक पर एक। जब वह अपना हाथ निकाले तो उसे वह सुझाई देता प्रतीत न हो। जिसे अल्लाह ही प्रकाश न दे फिर उसके लिए कोई प्रकाश नहीं।" (अल-क़ुरआन: सूर 24 आयत 40)

    प्रोफे़सर राव ने कहा: वैज्ञानिक अभी हाल में ही आधुनिक यंत्रों की सहायता से यह पुष्टि करने के योग्य हुए हैं कि समुद्र की गहराईयों में अंधकार होता है। यह मनुष्य के बस से बाहर है कि वह 20 या 30 मीटर से ज़्यादा गहराई में अतिरिक्त यंत्र्रों और समानों से लैस हुए बिना डुबकी लगा सके इसके अतिरिक्त, मानव शरीर में इतनी सहन शक्ति नहीं है कि जो 200 मीटर से अधिक गहराई में पडने वाले पानी के दबाव का सामना करते हुए जीवित भी रह सके। यह पवित्र आयत तमाम समुद्रों की तरफ़ इशारा नहीं करती क्योंकि हर समुद्र को परत दर परत अंधकार, का साझीदार करार नहीं दिया जा सकता, अलबत्ता यह पवित्र आयत विशेष रूप से गहरे समुद्रों की ओर आकर्षित करती है, क्योंकि पवित्र क़ुरआन की इस आयत में भी "विशाल और गहरे समुद्र के अंधकार"  का उदाहरण दिया गया है, गहरे समुद्र का यह तह दर तह अंधकार दो कारणों का परिणाम है।

    प्रथम: आम रौशनी की एक किरण सात रंगों से मिल कर बनती है। यह सात रंग क्रमशः बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंजी, लाल (VIBGYOR) है। रौशनी की किरणें जब जल में प्रवेश करती हैं तो प्रतिछायांकन की क्रिया से गुज़रती हैं ऊपर से नीचे की तरफ़ 10 से 15 मीटर के बीच जल में लाल रंग आत्मसात हो जाता है। इस लिये अगर कोई गो़ताखोर पानी में 25 मीटर की गहराई तक जा पहुंचे और ज़ख़्मी हो जाए तो

    वह अपने खू़न में लाली नहीं देख पाएगा, क्योंकि लाल रंग की रौशनी उतनी गहराई तक नहीं पहुंच सकती। इसी प्रकार 30 से 50 मीटर तक की गहराई आते-आते नारंगी रौशनी भी पूरे तौर पर आत्मसात हो जाती है, पिली रौशनी 50 से 110 मीटर तक, हरी रौशनी 100 से 200 मीटर तक, नीला रौशनी 200 मीटर से कुछ ज़्यादा तक जब कि बैंगनी और नीली रोशनी इससे भी कुछ अघिक गहराई तक पहुंचते पहुंचते पूरे तौर पर विलीन हो जाती है। पानी में रंगों के इस प्रकार क्रमशः विलीन होने के कारण समुद्र भी परत दर परत अंधेरा करता चला जाता है, यानि अंधेरे का प्रकटीकरण भी रौशनी की परतों (Layers) के रूप में होता है। 1000 मीटर से अधिक की गहराई में पूरा अंधेरा होता है । (संदर्भ: Oceans, Elder and Pernetta, पृष्ठ 27)

    द्वितीय: धूप की किरणें बादलों में आत्मसात हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप रौशनी की किरणें इधर उधर बिखेरती है। और इसी कारण से बादलों के नीचे अंधेरे की काली परत सी बन जाती है। यह अंधेरे की पहली परत है। जब रौशनी की किरणें समुद्र के तल से टकराती हैं तो वह समुद्री लहरों की परत से टकरा कर पलटती हैं और जगमगाने जैसा प्रभाव उत्पन्न करती हैं, अतः यह समुद्री लहरें जो रौशनी को प्रतिबिंबित करती हैं अंधेरा उत्पन करने का कारण बनती हैं। गै़र प्रतिबिंबित रौशनी, समुद्र की गहराईयों में समा जाती हैं, इसलिये समुद्र के दो भाग हो गये परत के विशेष लक्षण प्रकाश और तापमान हैं जब कि अंधेरा समुद्री गहराईयों का अनोखा लक्षण है इसके अलावा समुद्र के धरातल और पानी की सतह को एक दूसरे से महत्वपूर्ण बनाने वाली वस्तु भी लहरें ही हैं। अंदरूनी मौजें समुद्र के गहरे पानी और गहरे जलकुण्ड का घेराव करती हैं, क्योंकि गहरे पानी का वज़न अपने 

    ऊपर (कम गहरे वाले) पानी के मुक़ाबले में ज़्यादा होता है। अंधेरे का साम्राज्य पानी के भीतरी हिस्से में होता है। इतनी गहराई में जहां तक मछलियों की नज़र भी नहीं पहुंच सकती, जबकि प्रकाश का माध्यम स्वयं मछलियों का शरीर होता हैं, इस बात को पवित्र क़ुरआन बहुत ही तर्कसंगत वाक्यों में बयान करते हुए कहता हैः


    "....जैसे एक गहरे समुद्र में अँधेरे, लहर के ऊपर लहर... उसके ऊपर बादल है, अँधेरे है एक पर एक..." दूसरे शब्दों में, उन लहरों के ऊपर कई प्रकार की लहरें हैं यानि वह लहरें जो समुद्र की सतह पर पाई जाती हैं। इसी क्रम में पवित्र आयत का कथन है "उसके ऊपर बादल है'' तात्पर्य कि अंधेरे हैं, जो ऊपर की ओर परत दर परत हैं जैसी कि व्याख्या की गई है यह बादल परत दर परत वह रूकावटें हैं जो विभिन्न परतों पर रौशनी के विभन्न रंगों को आत्मासात करते हुए अंधेरे को व्यापक बनाती चली जाती हैं।

    प्रोफ़ेसर दुर्गा राव ने यह कहते हुए अपनी बात पूरी की "1400 वर्ष पूर्व कोई साधारण मानव इस बिंदु पर इतने विस्तार से विचार नहीं कर सकता था इसलिये यह ज्ञान अनिवार्य रूप से किसी विशेष प्राकृतिक माध्यम से ही आया प्रतीत होता है।"

    तमाम जीवित चीजें पानी से

    (14). तमाम जीवित चीजें पानी से 
    "........और हमने पानी से हर जीवित चीज़ बनाई, तो क्या वे मानते नहीं?" (अल-क़ुरआन: सूर:21 आयत 30)
    क्या यह सम्भव था कि चौदह सौ वर्ष पहले कोई भी इंसान, यह अनुमान लगा सके कि हर एक जीव जन्तु पानी से ही अस्तित्व में आई है? इसके अलावा क्या यह सम्भव था कि अरब के रेगिस्तानों से सम्बंध रखने वाला कोई व्यक्ति ऐसा कोई अनुमान स्थापित कर लेता? वह भी ऐसे रेगिस्तानों का रहने वाला जहां पानी का हमेशा अभाव रहता हो।

    >>वनस्पति - विज्ञान<<
    (Botany)

    नर और मादा पौधे

    (15). नर और मादा पौधे

    प्राचीन काल के मानवों को यह ज्ञान नहीं था, कि पौधों में भी जीव जन्तुओं की तरह नर (Male) मादा (Female) तत्व होते हैं। अलबत्ता आधुनिक वनस्पति विज्ञान यह बताता है कि पौधे की प्रत्येक प्रजाति में नर एवं मादा लिंग होते हैं। यहां तक कि वह पौधे जो उभय लिंगी (Unisexual) होते हैं, उनमें भी नर और मादा की विशिष्टताएं शामिल होती हैं।
    "वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को पालना (बिछौना) बनाया और उसने तुम्हारे लिए रास्ते निकाले और आकाश से पानी उतारा। फिर हमने उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के पैदावार (जोड़े) निकाले। (क़ुरआन सूर: 20, आयत 53)

    फलों में नर और मादा का अंतर:
    "....और प्रत्येक फल के दो जोड़े बनाये....." (अल क़ुरआन सूर: 13 आयत 3)
    उच्च स्तरीय पौधों (Superior plants) मे नस्लीय उत्पत्ति की आखिरी पैदावार और उनके फल होते हैं। फल से पहले फूल बनते हैं, जिसमें नर और मादा अंगों (Organs) यानि पुंकेसर (Stamens) और डिम्ब (Ovules) होते है, जब कोई (Pollen) ज़रदाना पराग यानि प्रजनक वीर्य कोंपलों से होता हुआ फूल की अवस्था तक पहुंचता है, तभी वह फल में परिवर्तित होने के योग्य होता है, यहां तक कि फल पक जाए और नयी नस्ल को जन्म देने वाले बीज बनने की अवस्था प्राप्त कर ले। इसलिये सारे फल इस बात का प्रमाण हैं, कि पौधों में भी नर और मादा जीव होते हैं। इस सच्चाई को पवित्र क़ुरआन बहुत पहले बयान कर चुका है

    पौधों के कुछ प्रकार अनुत्पादक:Non-fertilized फूलों से भी फल बन सकते हैं जिन्हें (Parthenocarpic fruit) पौरूष.-विहीन फल कहते हैं। ऐसे फलों मे केले, अनन्नास, इंजीर, नारंगी और अंगूर आदि की कई नस्लें हैं। यद्यपि उन पौधों में प्रजनन-चरित्र (Sexual characteristics) मौजूद होता है।

    प्रत्येक वस्तु को जोड़ों में बनाया गया है

    (16). प्रत्येक वस्तु को जोड़ों में बनाया गया है
    "और हर चीज़ के हमने जोड़े बनाए हैं, शायद कि तुम इससे सबक़ लो।" (अल क़ुरआन सूर: 51 आयत 49)

    इस पवित्र आयत में प्रत्येक चीजों के जोड़ों में बनाए जाने की प्रमाणिकता बयान की गई है। मानवीय जीवों, पाश्विक जीवों, वानस्पतेय जीवों और फलों के अलावा बहुत सम्भव है, कि यह पवित्र आयत उस बिजली की ओर भी संकेत कर रही हो, जिस में नकारात्मक ऊर्जा (Negative charge) वाले इलेक्ट्रॉनों और सकारात्मक ऊर्जा (Positive charge) वाले केंद्रों पर आधारित होते हैं, इनके अलावा भी अन्य जोड़े हो सकते हैं।


    "महिमावान है वह (अल्लाह) जिसने सबके जोड़े पैदा किए धरती जो चीजें उगाती है उनमें से भी और स्वयं उनकी अपनी जाति (मनुष्य) में से भी और उन चीज़ो में से भी जिनको वे नहीं जानते।" (अल-क़ुरआन सूर: 36 आयत 36)

    यहां अल्लाह फ़रमाता है, कि हर चीज़ जोड़ों के रूप में पैदा की गई है जिनमें ऐसी वस्तुएं भी शामिल हैं जिन्हें आज का मानव नहीं जानता और हो सकता है कि आने वाले कल में उसकी खोज कर ले।

    >>जीव - विज्ञान<<
    (Zoology)

    पशुओं और परिंदों का समाजी जीवन

    (17). पशुओं और परिंदों का समाजी जीवन
    "धरती में चलने-फिरनेवाला कोई भी प्राणी हो या अपने दो परो से उड़नवाला कोई पक्षी, ये सब तुम्हारी ही तरह के गिरोह है। हमने किताब में कोई भी चीज़ नहीं छोड़ी है। फिर वे अपने रब की ओर इकट्ठे किए जाएँगे"
    (अल-क़ुरआन सूर: 6 आयत: 38 )


    शोध से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि पशु और परिंदे भी समुदायों (Communities) के रूप में रहते हैं। अर्थात उनमें भी एक सांगठनिक आचार व्यवस्था होती है। वह मिल जुल कर रहते और काम भी करते हैं।

    परिन्दों की उड़ान

    (18). परिन्दों की उड़ान
    "क्या उन्होंने पक्षियों को नभ मंडल में वशीभूत नहीं देखा? उन्हें तो बस अल्लाह ही थामें हुए होता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो ईमान लाएँ।" (अल-क़ुरआन: सूर: 16 आयत 79)
    एक और आयत में परिन्दों पर कुछ इस अंदाज़ से बात की गई है: "क्या उन्होंने अपने ऊपर पक्षियों को पंक्तबन्द्ध पंख फैलाए और उन्हें समेटते नहीं देखा? 

    उन्हें रहमान के सिवा कोई और नहीं थामें रहता। निश्चय ही वह हर चीज़ को देखता है।" (अल-क़ुरआन: सूर: 67 आयत 19)
    अरबी शब्द 'अमसक' का शाब्दिक अर्थ है, 'किसी के हाथ में हाथ देना' रोकना, थामना या किसी की कमर पकड़ लेना। उपर्युक्त आयात में युमसिकुहुन्न (يُمْسِكُهُنَّ)‘‘ की अभिव्यक्ति है कि अल्लाह तआला अपनी प्रकृति और अपनी शक्ति से परिन्दों को हवा में थामे रखता है। इन पवित्र रब्बानी (ईश्वरीय) आयतों में इस सत्य पर जो़र दिया गया है, कि परिन्दों की कार्य क्षमता पूर्णतया उन विधानों पर निर्भर है; जिसकी रचना अल्लाह तआला ने की हैं।

    आधुनिक विज्ञान से यह भी प्रमाणित हो चुका है, कि कुछ परिन्दों में उड़ान की बेमिसाल और दोषमुक्त क्षमता का सम्बंध उस व्यापक और संगठित 'योजनाबंदी' (Programming) से है, जिसमें परिन्दों के दैहिक कार्य शामिल हैं। जैसे हज़ारों मील दूर तक स्थानान्तरण (Transfer) करने वाले परिन्दों की प्रजनन प्रक्रिया (Genetic codes) में उनकी यात्रा का सारा विवरण मौजूद है, जो उन परिन्दों को उड़ान के योग्य बनाती है, और यह कि वह अल्प आयु में भी लम्बी यात्रा के किसी अनुभव के बिना, और किसी शिक्षक या रहनुमा के बिना ही हज़ारों मील की यात्रा तय कर लेते हैं; और अन्जान रास्तों से उड़ान करते चले जाते हैं बात यात्रा की एक तरफ़ा समाप्ति पर ही ख़त्म नहीं होती बल्कि वे सब परिन्दे एक नियत तिथि और समय पर अपने अस्थाई घर से उड़ान भरते हैं, और हज़ारों मील वापसी की यात्रा कर के एक बार फिर अपने घोंसलों तक बिल्कुल ठीक-ठीक जा पहुंचते हैं।

    प्रोफेसर हॅम्बर्गर (Prof. Hamburger) ने अपनी किताब  (Power and Fragility) में ‘‘मटन बर्ड नामक एक परिन्दे का उदाहरण दिया है जो प्रशान्त महासागर के इलाक़ों में पाया जाता है स्थानान्तरण करने वाले ये पक्षी 24000 कि.मी. की दूरी 8 के आकार में अपनी परिक्रमा से पूरी करते हैं ये परिन्दे अपनी यात्रा 6 महीने में पूरी करते है, और प्रस्थान बिंदु तक अधिक से अधिक एक सप्ताह विलम्ब से वापिस पहुंच जाते हैं। ऐसी किसी यात्रा के लिये बहुत ही जटिल जानकारी का होना अनियार्य है जो उन परिन्दों की विवेक कोशिकाओं में सुरिक्षत होनी चाहिए। यानी एक नीतीबद्ध कार्यक्रम परिन्दे के मस्तिष्क में और उसे पूरा करने की शक्ति शरीर में उप्लब्ध होती है। अगर परिन्दे में कोई प्रोग्राम है तो क्या इससे यह ज्ञान नहीं मिलता कि इसका कोई प्रोग्रामर भी यक़ीनन है?

    शहद की मक्खी और उसकी योग्यता

    (19). शहद की मक्खी और उसकी योग्यता

    ‘‘और देखो तुम्हारे रब ने मधुमक्खी पर यह बात "वह्य (ईश्वरीय आदेश) (وَأَوْحَىٰ)"  कर दी कि पहाड़ों में और वृक्षों और उनमें (जो वे निर्माण करते हैं)। अपने छत्ते बना और हर प्रकार के फलों का रस चूस और अपने रब द्वारा "हमवार" तैयार राहों पर चलती रह। उस मक्खी के अंदर से रंग बिरंगा एक पेय निकलता है जिस में "शिफ़ा'' उपचार है, निश्चय ही सोच-विचार करनेवाले लोगों के लिए इसमें एक बड़ी निशानी है" (अल-क़ुरआन सूर: 16 आयत 68 और 69)

    Karl von Frisch ने मधुमक्खियों की कार्य विधि और उनमें संपर्क व संप्रेषण (Communication) के शोध पर 1973 ई0 का नोबुल पुरस्कार प्राप्त किया है। यदि किसी मधुमक्खी को जब कोई नया बाग़ या फूल दिखाई देता है, तो वह अपने छत्ते में वापिस जाती है और अपने संगठन की अन्य सभी मधुमक्खियों को उस स्थल की दिशा और, वहां पहुंचाने वाले मार्ग के विस्तृत नक्शे से आगाह करती है। मधुमक्खी संदेशा पहुंचाने या संप्रेषण का यह

    काम एक विशेष प्रकार की शारिरिक गतिविधि से लेती है।जिन्हें मधुमक्खी नृत्य (Bee dance) कहा जाता है। 

    जा़हिर है कि यह कोई साधारण नृत्य नहीं होता, बल्कि इसका उद्देश्य मधु की कामगार मक्खियों (Worker bees) को यह समझाना होता है, कि फल या फूल किस दिशा में हैं और उस स्थल तक पहुंचने के लिये उन्हें किस तरह की उड़ान भरनी होगी, यद्यपि मधुमक्खियों के बारे में सारी जानकारी हम ने आधुनिक तकनीकी छायांकन और दूसरे जटिल अनुसंधानों के माध्यम से ही प्राप्त की है लेकिन आगे देखिये कि उपरोक्त पवित्र्र आयतों में पवित्र महाग्रंथ क़ुरआन ने कैसी स्पष्ट व्याख्या के साथ बताया है, कि अल्लाह ने मधुमक्खी को विशेष प्रकार की योग्यता, निपुणता और क्षमता प्रदान की है जिस से परिपूर्ण होकर वह अपने रब के बताए हुए रास्ते को तलाश कर लेती है, और उस पर चल पड़ती है। एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त पवित्र आयत में, मधुमक्खी को (فَٱسْلُكِى) मादा के रूप में रेखांकित किया गया है जो अपने भोजन की तलाश में निकलती है, अन्य शब्दों में सिपाही या कामगार मधुमक्खियां भी मादा होती हैं।

    एक दिलचस्प यथार्थ यह है कि शेक्सपियर के नाटक 'हेनरी दि फ़ोर्थ' (Henry the Fourth), में कुछ पात्र मधुमक्खियों के बारे में बाते करते हुए कहते हैं कि शहद की मक्खियां सिपाही होती हैं और यह उनका राजा होता है। ज़ाहिर है कि शेक्सपियर के युग में लोगों का ज्ञान सीमित था वे समझते थे कि कामगार मक्खियां नर होती हैं और वे मधु के राजा मक्खी ‘नर‘ के प्रति उत्तरदायी होती हैं। परंतु यह सच नहीं, शहद की कामगार मक्खियां मादा होती हैं और शहद की बादशाह मक्खी 'राजा मक्खी' को नहीं 'रानी मक्खी' को अपने कार्य निषपादन की रपट पेश करती हैं। अब इस बारे में क्या कहा जाए कि पिछले 300 वर्ष के दौरान होने वाले आधुनिक अनुसंधानों के आधार पर ही हम यह सब कुछ आपके सामने खोज कर ला पाए हैं ।

    मकड़ी का जाला: नाज़ुक और अस्थायी घर

    (20). मकड़ी का जाला: नाज़ुक और अस्थायी घर

    "जिन लोगों ने अल्लाह से हटकर अपने दूसरे संरक्षक बना लिए है उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जिसने अपना एक घर बनाया, और यह सच है कि सब घरों से कमज़ोर घर मकड़ी का घर ही होता है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते!" (अल-क़ुरआन सूरः 29 आयत 41)

    मकड़ी के जाले को नाज़ुक और कमज़ोर मकान के रूप में रेखांकित करने के अलावा, पवित्र क़ुरआन ने मकड़ी के घरेलू सम्बंधों के कमज़ोर नाज़ुक और अस्थाई होने पर जो़र दिया है। यह सहीं भी है क्योंके अधिकतर ऐसा होता है, मकड़ी अपने नर साथी (Mate) को मार डालती है। यही उदाहरण ऐसे लोगों की कमज़ोरियों की ओर संकेत करते हुए भी दिया गया है जो दुनिया और आखि़रत (परलोक) में सुरक्षा व सफ़लता प्राप्ति के लिये अल्लाह को छोड़ कर दूसरों से आशा रखते हैं। 
    इस विषय पर हमारा एक अलग से लेख है बाद में ये भी पढ़ लीजिए: मकड़ी और नास्तिक में समानता  

    चींटियों की जीवनशैली और परस्पर सम्पर्क

    (21). चींटियों की जीवनशैली और परस्पर सम्पर्क

    "पैग़म्बर सुलैमान अ० के लिए जिन्न और मनुष्य और पक्षियों मे से उसकी सेनाएँ एकत्र की गई फिर उनकी दर्जाबन्दी की जा रही थी, यहाँ तक कि जब वे चींटियों की घाटी में पहुँचे तो एक चींटी ने कहा, "ऐ चींटियों! अपने घरों में प्रवेश कर जाओ। कहीं सुलैमान और उसकी सेनाएँ तुम्हें कुचल न डालें और उन्हें एहसास भी न हो।" (अल क़ुरआन: सूर: 27 आयत 17 और 18 )

    हो सकता है कि अतीत में कुछ लोगों ने पवित्र क़ुरआन में चींटियों की उपरोक्त वार्ता देख कर उस पर टिप्पणी की हो, और कहा हो कि चींटियां तो केवल कहानियों की किताबों में ही बातें करती हैं। अलबत्ता निकटतम वर्षो में हमें चींटियों की जीवन शैली उनके परस्पर सम्बंध और अन्य जटिल अवस्थाओं का ज्ञान हो चुका है। यह ज्ञान आधुनिक काल से पूर्व के मानव समाज को प्राप्त नहीं था।

    अनुसंधान से यह रहस्य भी खुला है कि वह जीव "कीट-पतंग, कीड़-मकोड़े" जिनकी जीवन शैली मानव समाज से असाधरण रूप से जुड़ी है वह चींटियां ही हैं। इसकी पुष्टि चींटियों के बारे में निम्नलिखित नवीन अनुसंधानों से भी होती है
    >> चींटियां भी अपने मृतकों को मानव समाज की तरह दफ़नाती हैं।

    >> उनमें कामगारों के विभाजन की पेचीदा व्यवस्था है, जिसमें मैनेजर, सुपरवाईज़र, फोरमैन और मज़दूर  
          आदि शामिल हैं।

    >> कभी कभार वह आपस में मिलती है और बातचीत (Chat) भी करती हैं।

    >> उनमें विचारों का परस्पर आदान प्रदान (Communication) की विकसित व्यवस्था मौजूद है।

    >> उनकी कॉलोनियों में विधिवत बाज़ार होते हैं जहां वे अपने वस्तुओं का विनिमय करती हैं। 


    >> सर्द मौसम में लम्बी अवधि तक भूमिगत रहने के लिये वह अनाज के दानों का भंडारण भी करती हैं  

          और यदि कोई दाना फूटने लगे यानि पौधा बनने लगे तो वह फ़ौरन उसकी जड़ें काट देती हैं । जैसे उन्हें यह  
          पता हो कि अगर वह उक्त दाने को यूंही छोड़ देंगी तो वह विकसित होना प्रारम्भ कर देगा । अगर उनका 
          सुरक्षित किया हुआ अनाज भंडार किसी भी कारण से उदाहरण स्वरूप वर्षा में गीला हो जाए तो वह उसे 
          अपने बिल से बाहर ले जाती हैं और धूप में सुखाती हैं। जब अनाज सूख जाता है तभी वह उसे बिल में  
          वापस ले जाती हैं। यानि यूं लगता है ,जैसे उन्हें यह ज्ञान हो कि नमी के कारण अनाज के दाने से जड़ें  
          निकल पड़ेंगी जिसके कारण वह दाने खाने के योग्य नहीं रह जाएंगे।



    >>चिकित्सा - विज्ञान<<

    (Medical Science)


    मधु (शहद) मानवजाति के लिये, शिफ़ा (रोग मुक्ति)

    (22). 'मधु' (शहद) मानवजाति के लिये, शिफ़ा (रोग मुक्ति)



    शहद की मक्खी कई प्रकार के फूलों और फलों का रस चूसती हैं, और उसे अपने ही शरीर के अंदर शहद में परिवर्तित करती हैं। इस शहद यानि मधु को वह अपने छत्ते के बने घरों, में इकटठा करती हैं। आज से केवल कुछ सदी पहले ही मनुष्य को यह ज्ञात हुआ कि मधु वास्तव में मधुमक्खियों के पेट (Belly) से निकलता है, किन्तु प्रस्तुत यथार्थ पवित्र क़ुरआन ने 1400 वर्ष पहले ही निम्न पवित्र आयत में बयान कर दी थीं:


    "फिर हर प्रकार के फल-फूलों से ख़ुराक ले और अपने रब के समतम मार्गों पर चलती रह।" उसके पेट से विभिन्न रंग का एक पेय निकलता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवाले लोगों के लिए इसमें एक बड़ी निशानी है।" (अल-क़ुरआन सूर: 16 आयत 69)

    इसके अलावा हम ने हाल ही में यह खोज निकाला है कि मधु में शिफ़ा बख़्श (रोगमुक्त करने वाली) विशेषताएं पाई जाती हैं और यह मध्यम वर्गीय गंद त्याग (Mild Antiseptic) का काम भी करती है। दूसरे विश्व युद्ध में रूसियों ने भी अपने घायल सैनिकों के घाव ढांपने के लिये मधु का उपयोग किया था। मधु की विशेषता है कि यह नमी को यथावत रखता है और कोशिकाओं (Cells) पर घावों के निशान बाक़ी नहीं रहने देता है। मधु की सघनता (Density) के कारण कोई फफूंदी किटाणु न तो घाव में स्वयं विकसित होंगे और न ही घाव को बढ़ने देंगे ।

    सिस्टर कैरोल (Sister Carole) नामक के एक ईसाई राहिबा (मठवासिनी Nun) ने ब्रितानी चिकित्साल्यों में छाती और अल्जाइमर (Chest and Alzheimer's disease) के रोगों में मुब्तला 22 चिकित्सा विहीन रोगियों का इलाज मधुमक्खी के छत्तों (Propolis) नामक द्रव्य से किया। यह द्रव्य मधुमक्खियां उत्पन्न करती हैं और उसे अपने छत्तों में किटाणुओं के विरुद्ध सील बंद करने के लिये उपयोग में लाती हैं।

    यदि कोई व्यक्ति किसी पौधे से होने वाली एलर्जी से ग्रस्त हो जाए तो उसी पौधे से प्राप्त मधु उस व्यक्ति को दिया जा सकता है ताकि वह एलर्जी के विरुद्ध रूकावट उत्पन्न करले। मधु विटामिन के़ और फ्रि़क्टोज़ (एक प्रकार की चीनी) से भी परिपूर्ण होता है।

    पवित्र क़ुरआन में मधु, उसकी उत्पत्ति और विशेषताओं के बारे में जो ज्ञान दिया गया है उसे मानव समाज पवित्र क़ुरआन के अवतरण के सदियों बाद, अपने अनुसंधानों और प्रयोगों के आधार पर आज खोज सका है।

    >>शरीरक्रिया - विज्ञान<<
    (Physiology)

    मस्तिष्क के ललाट खंड: व्यक्तित्व और अनुभूति के लिए केंद्र

    (23). मस्तिष्क के ललाट खंड (Frontal lobe): व्यक्तित्व और अनुभूति के लिए केंद्र 

    पैगम्बर मुहम्मद सल्ल० के समय में अबू जहल नाम का एक बहुत ही निर्दई व्यक्ति था, अल्लाह ने कुरान में उसको चेतावनी देते हुए फरमाया: 



    "कदापि नहीं, यदि वह बाज़ न आया तो, हम उसे माथे के बल घसीटेंगे। झूठे और पापी माथे के बल।" (अल-क़ुरआन सूर: 96 आयत 15 और 16)


    अल्लाह ने उस शख्स को झूठा नहीं कहा बल्कि उसके माथे को, जो की दिमाग का अगला हिस्सा उसको झूठा और पापी कहा है ये आयत दो वजह से बहोत खास है



    (क). हमारे दिमाग का सामने वाला हिस्सा हमारी सोची समझी हरकतों का का जिम्मदार होता है इसे ललाटखंड (Frontal lobe) के नाम से जाना जाता है



    (ख). ललाटखंड (Frontal lobe) ही दिमाग के झूठ बोलने वाली काम को नियंत्रण (Control) करता है


    आज के दौर में की गयी कई शोध (Researches) में ये पाया गया है की दिमाग के आगे वाला हिसा ही हमारी हरकतों और झूठ बोलने के लिए जिम्मेदार होता है (संदर्भ: Essentials of Anatomy & Physiology, Seeley and others, पृष्ठ 211.  और The Human Nervous System, Noback and others, पृष्ठ 410-411)

    ललाटखंड (Frontal lobe) के ये जानकारी अठारहवीं शताब्दी (18th century) में कई चिकित्सा उपकरण (Medical equipment) आने के बाद ही हमे पता चला है, जबकि कुरआन हमें इसके बारे में 1400 साल पहले ही बता दिया है

    रक्त प्रवाह (Blood circulations) और दूध

    (24)रक्त प्रवाह (Blood circulations) और दूध

    पवित्र क़ुरआन का अवतरण रक्त प्रवाह की व्याख्या करने वाले प्रारम्भिक मुसलमान वैज्ञानिक, इब्न अल नफ़ीस से 600 वर्ष पहले और इस खोज को पश्चिम में परिचित करवाने वाले विलियम हॉरवे से 1000 वर्ष पहले हुआ था। तक़रीबन 1300 वर्ष पहले यह मालूम हो चुका था कि आंतों के अंदर ऐसा क्या कुछ होता है जो पाचन व्यवस्था में अंजाम पाने वाली क्रिया द्वारा शारीरिक अंगों के विकास की गारंटी उपलब्ध कराता है। पवित्र क़ुरआन की एक पवित्र आयत जो दुग्ध तत्वांशों के स्रोत की पुष्टि करती है, इस कल्पना के अनुकूल है। उपरोक्त संकल्पना के संदर्भ से पवित्र क़ुरआनी आयतों को समझने के लिये यह जान लेना महत्वपूर्ण है; कि आंतों में रसायनिक प्रतिक्रयाए (Chemical Reactions) घटित होती रहती हैं और आंतों द्वारा ही पाचन क्रिया से गु़ज़र कर आहार से प्राप्त द्रव्य एक जटिल व्यवस्था से होते हुए रक्त प्रवाह क्रिया में शामिल होते हैं। कभी वह द्रव्य जिगर से होकर गुज़रते हैं जो रसायनिक तरकीब पर निर्भर होते हैं। ख़ून उन तत्वों (द्रव्यों) को तमाम अंगों तक पहुंचाता है, जिनमें दूध उत्पन्न करने वाली स्तन ग्रंथियों भी शामिल हैं।

    साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आंतों में अवस्थित आहार के कुछ द्रव्य आंतों की दीवार से प्रवेश करते हुए रक्त की नलियों (Vessels) में प्रवेश कर जाते हैं, और फिर रक्त के माध्यम से यह रक्त प्रवाह द्वारा कई अंगों तक जा पहुंचते हैं; शारीरिक रचना की यह संकल्पना सम्पूर्ण रूप से हमारी समझ में आ जाएगी यदि हम पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखत आयातों को समझने की कोशिश करेंगे: "और तुम्हारे लिए चौपायों में से एक बड़ी शिक्षा-सामग्री (सबक, सीख) है, जो कुछ उनके पेटों में है उसमें से गोबर और रक्त के मध्य से हम तुम्हे विशुद्ध दूध पिलाते है, जो पीनेवालों के लिए अत्यन्त प्रिय है(अल-क़ुरआन सूरः 16 आयत 66)

    और निश्चय ही तुम्हारे लिए चौपायों में भी एक शिक्षा है। उनके पेटों में जो कुछ है उसमें से हम तुम्हें पिलाते  है (यानि दूध)। औऱ तुम्हारे लिए उनमें बहुत-से फ़ायदे है और उन्हें तुम खाते भी हो (अल क़ुरआन: सूर 23 आयत 21)

    1400 वर्ष पूर्व, पवित्र क़ुरआन द्वारा दी हुई यह व्याख्या जो गाय के दूध की उत्पत्ति के संदर्भ से है आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक शरीर रचना विज्ञान से परिपूर्ण है जिसने इस वास्तविकता को इस्लाम के आगमन के बहुत बाद अब खोज निकाला है।  

    >>भ्रूण - विज्ञान<<
    (Embryology)

    मानव भ्रूण विकास पर कुरान

    (25). मानव भ्रूण विकास पर कुरान



    मुसलमान जवाबों (उत्तर) की तलाश में,

              यमन के प्रसिद्ध ज्ञानी, शैख़ अब्दुल मजीद अल ज़न्दानी के नेतृत्व में मुसलमान स्कालरों के एक समूह ने भ्रूण विज्ञान Embryology और दूसरे वैज्ञानिक विषयों के बारे में पवित्र क़ुरआन और विश्वस्नीय हदीस ग्रंथों से जानकारियां इकट्ठी की और उनका अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। फिर उन्होंने पवित्र क़ुरआन की एक आयत के अनुसार ड़ा. कैथमूर के पास ले के गए:



    "हमने तुमसे पहले भी पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजा था - जिनकी ओर हम प्रकाशना करते रहे है। यदि तुम नहीं जानते जानने वालों से पूछ लो।" (अल-क़ुरआन:सूरः 16 आयत 43)


    जब पवित्र क़ुरआन और प्रमाणिक हदीसों से भ्रूण विज्ञान के बारे में प्राप्त की गई जानकारी, एकत्रित होकर अंग्रेज़ी में अनुदित हुई तो उन्हें प्रोफे़सर डॉ० कीथ मूर के सामने पेश किया गया। ड़ा. कैथमूर टोरॉन्टो विश्वविद्यालय कनाडा में शरीर रचना विज्ञान विभाग के संचालक और भ्रूण-विज्ञान के प्रोफ़ेसर थे। आज कल वह प्रजनन विज्ञान के क्षेत्र में अधिकृत विज्ञान की हैसियत से विश्व विख्यात व्यक्ति थे। उनसे कहा गया है कि वह उनके समक्ष प्रस्तुत शोध पत्र पर अपनी प्रतिक्रिया दें। गम्भीर अध्ययन के बाद डॉ० कीथ मूर ने कहा भ्रूण के संदर्भ से क़ुरआन की आयतों और हदीस के ग्रंथों में बयान की गई तक़रीबन तमाम जानकारियां ठीक आधुनिक विज्ञान की खोजों के अनुकूल हैं। आधुनिक प्रजनन विज्ञान से उनकी भरपूर सहमति है, और वह किसी भी तरह आधुनिक प्रजनन विज्ञान से असहमत नहीं हैं। उन्होंने आगे बताया कि अलबत्ता कुछ आयतें ऐसी भी हैं, जिनकी वैज्ञानिक विश्वस्नीयता के बारे में वह कुछ नहीं कह सकते। वह यह भी नहीं बता सकते कि वह आयतें विज्ञान की अनुकूलता में सही अथवा ग़लत हैं, क्योंकि खुद उन्हें भी उन आयतों में दी गई जानकारी के संदर्भ का कोई ज्ञान नहीं। उनके संदर्भ से प्रजनन के आधुनिक अध्ययन और शोध प़त्रों में भी कुछ उप्लब्ध नहीं था।

    ऐसी ही एक पवित्र आयत निम्नलिखित हैः



    "पढ़ो (ऐ नबी ) अपने रब के नाम, से जिसने पैदा किया मनुष्य को जमे हुए ख़ून के एक लोथड़े से" (अल-क़ुरआन: सूर 96 आयात 1 और 2)


    यहां अरबी शब्द अलक (عَلَقٍ) प्रयुक्त हुआ है जिसका एक अर्थ तो "रक्त का थक्का" है जब कि दूसरा अर्थ कोई ऐसी वस्तु है जो चिपट जाती हो यानि जोंक जैसी कोई वस्तु,

     डॉ० कीथ मूर को ज्ञान नहीं था कि गर्भ के प्रारम्भ में भ्रूण (Embryo) का स्वरूप जोंक जैसा होता है या नहीं। यह मालूम करने के लिये उन्होंने बहुत शक्तिशाली और अनुभूतिशील यंत्रों की सहायता से, भ्रूण (Embryo) के प्रारिम्भक स्वरूप का एक और गम्भीर अध्ययन किया तत्पश्चात उन चित्रों की तुलना जोंक के चित्रांकन से की, 

    वह उन दोनों के मध्य असाधारण समानता देख कर आश्चर्यचकित रह गये। इसी प्रकार उन्होंने भ्रूण विज्ञान के बारे में अन्य जानकारियां भी प्राप्त की जो पवित्र क़ुरआन से ली गयी थीं और अब से पहले वह इस से परिचित नहीं थे।

    भ्रूण के बारे में ज्ञान से संबंधित जिन प्रश्नों के उत्तर डॉ० कीथ मूर ने क़ुरआन और हदीस से प्राप्त सामग्री के आधार पर दिये उनकी संख्या 80 थी। क़ुरआन व हदीस में प्रजनन की प्रकृति से संबंधित उप्लब्ध ज्ञान, केवल आधुनिक ज्ञान से परस्पर सहमत ही नहीं बल्कि मुझसे (डॉ० कीथ मूर) अगर आज से तीस वर्ष पहले मुझसे यही सारे प्रश्न करते तो वैज्ञानिक जानकारी के आभाव में, मै इनमें से आधे प्रश्नों के उत्तर भी नही दे सकता था।

    1981 ई0 में दम्माम (सऊदी अरब ) में आयोजित "सप्तम चिकित्सा सम्मेलन" में डॉ० कीथ मूर ने कहां, "मेरे लिये बहुत ही प्रसन्नता की स्थिति है कि मैंने पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध 'गर्भावधि में मानव के विकास' से सम्बंधित सामग्री की व्याख्या करने में सहायता की। अब मुझ पर यह स्पष्ट हो चुका है कि यह सारा विज्ञान पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल० तक अल्लाह ने भेजा है, यह सारा ज्ञान पवित्र क़ुरआन के अवतरण के कई सदियों बाद ढूंडा गया था।

    इससे भी सिद्ध होता है कि मुहम्मद निसन्देह अल्लाह के रसूल (संदेशवाहक) ही थे। इस घटना से पूर्व डॉ० कीथ मूर विकासशील मानव‘ (The developing human) नामक पुस्तक लिख चुके थे। पवित्र क़ुरआन से नवीन ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद उन्होंने 1982 ई0 में इस पुस्तक का तीसरा संस्करण तैयार किया।

    उस संस्करण को वैश्विक शाबाशी और ख्याति मिली और उसे वैश्विक धरातल पर सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पुस्तक का सम्मान भी प्राप्त हुआ। उस पुस्तक का अनुवाद विश्व की कई बड़ी भाषाओं में किया गया, और उसे चिकित्सा विज्ञान पाठयक्रम के प्रथम वर्ष में चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों को अनिवार्य पुस्तक के रूप में पढ़ाया जाता है। 
    [डॉ० कीथ मूर का विडियो YouTube]
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    डॉ० जो लेह सिम्पसन (Dr. Joe Leigh Simpson), कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन ह्युस्टन, अमरीका में "गर्भ एवं प्रसव विभाग (Obstetrics and Gynaecology) के अध्यक्ष हैं। उनका कथन है, "यह मुहम्मद सल्ल० की हदीस में कही हुई बातें, किसी भी प्रकार लेखक के काल 7 वीं सदी ई. में उप्लब्ध वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर पेश नहीं की जा सकती थीं, इससे न केवल यह ज्ञात हुआ कि 'अनुवांशिक' (Genetics) और मज़हब ए इस्लाम में कोई भिन्नता नहीं है बल्कि यह भी पता चला कि इस्लाम धर्म इस प्रकार से विज्ञान का नेतृत्व कर सकता है, कि परम्पराबद्ध वैज्ञानिक दूरदर्शिता में कुछ इल्हामी रहस्यों को भी शामिल करता चला जाए। पवित्र क़ुरआन में ऐसे बयान मौजूद हैं जिनकी पुष्टि कई सदियों बाद हुई है। इससे हमारे उस विश्वास को शक्ति मिलती है कि, पवित्र क़ुरआन में उप्लब्ध ज्ञान वास्तव में अल्लाह की ओर से ही आया है।"

    रीढ़ की हडडी और पस्लियों के बीच से रिसने वाली बूंद

    (26). रीढ़ की हडडी और पस्लियों के बीच से रिसने वाली बूंद

    "अतः मनुष्य को चाहिए कि देखे कि वह किस चीज़ से पैदा किया गया है, एक उछलते पानी से पैदा किया गया है, जो पीठ और पसलियों के मध्य से निकलता है" (अल-क़ुरआन.सूर 86 आयत 5 से 7)

    प्रजनन अवधि में संतान उत्पन्न करने वाले जनांगों यानि अण्डग्रंथि (Testicles) और अण्डाशय (Ovary) गुर्दो (Kidneys) के पास से मेरूदण्ड (Spinal column) और ग्यारहवीं बारहवीं पस्लियों के बीच से निकलना प्रारम्भ करते हैं इसके बाद वह कुछ नीचे उतर आते हैं। महिला प्रजनन ग्रंथिया (Gonads) यानि गर्भाशय पेडू (Pelvis) में रूक जाती हैं, जबकि पुरूष जनांग वंक्षण नली (Inguinal Canal) के मार्ग से अण्डकोष (Scrotum) तक जा पहुंचते हैं, यहां तक कि व्यस्क होने पर जबकि प्रजनन ग्रंथियों के नीचे सरकने की क्रिया रूक चुकी होती है। उन ग्रंथियों में उदरीय महाधमनी (Abdominal Aorta) के माध्यम से रक्त और स्नायु समूह का प्रवेश क्रम जारी रहता है, ध्यान रहे कि उदरीय महाधमनी (Abdominal Aorta) रीढ़ की हड़डी और पस्लियों के बीच होती है। लसीका निकास (Lymphatic Drainage) और धमनियों में रक्त प्रवाह भी इसी दिशा में होता है।

    शुक्राणु: न्यूनतम द्रव

    (27). शुक्राणु: न्यूनतम द्रव

    पवित्र क़ुरआन में कम से कम ग्यारह बार दुहराया गया है कि मानव जाति की रचना वीर्य (नुत्फ़ा نُّطْفَةٍ) से की गई है, जिसका अर्थ द्रव का न्युनतम भाग है। यह बात पवित्र क़ुरआन की कई आयतों में बार बार आई है जिन में सूरः 22 आयत 5 और सूरः 23 आयत 13.

    के अलावा सूर: 16 आयत 4, सूर: 18 आयत 37, सूर: 35 आयत 11, सूरः 36 आयत 77, सूरः 40 आयत 67, सूर: 53 आयत 46, सूर: 75 आयत 37, सूर: 76 आयत 2, और सूर: 80 आयत 19 शामिल हैं।
    विज्ञान ने हाल ही में यह खोज निकाला है कि अण्डाणु (Ovum) को काम में लाने के लिये औसतन तीस लाख शुक्राणु (Sperms) में से सिर्फ़ एक की आवश्यकता होती है। अर्थ यह हुआ कि स्खलित होने वाली वीर्य की मात्रा का तीस लाखवां भाग या 1/30,000,00 प्रतिशत मात्रा ही गर्भाधान के लिये पर्याप्त होता है।

    सुलाला: प्रारम्भिक द्रव के गुण

    (28). सुलाला: प्रारम्भिक द्रव के गुण

    "फिर उसकी नस्ल एक तुच्छ पानी के सत से चलाई।" (अल-क़ुरआन: सूर: 32 आयत .8)

    अरबी शब्द 'सुलाला (سُلَـٰلَةٍ)' से तात्पर्य किसी द्रव का सर्वोत्तम अंश है। सुलाला का शाब्दिक अर्थ नवजात शिशु भी है। अब हम जान चुके हैं कि स्त्रैण अंडे की तैयारी के लिये पुरूष द्वारा स्खलित लाखों करोड़ों वीर्य शुक्राणुओं में से सिर्फ़ एक की आवश्यकता होती है। लाखों करोड़ों में से इसी एक वीर्य शुक्राणु (Sperm) को पवित्र क़ुरआन ने 'सुलाला' कहा है। अब हमें यह भी पता चल चुका है कि महिलाओं में उत्पन्न हज़ारों 'अण्डाणुओं' (Ovum) में से केवल एक ही सफल होता है। उन हज़ारों अंडों में से किसी एक कर्मशील और योग्य अण्डे के लिये पवित्र क़ुरआन ने सुलाला शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द का एक और अर्थ भी है किसी द्रव के अंदर से किसी रस विशेष का सुरक्षित स्खलन। इस द्रव का तात्पर्य पुरूष और महिला दोनों प्रकार के प्रजनन द्रव भी हैं, जिनमें लिंगसूचक युग्मक (Gametes) वीर्य मौजूद होते है। गर्भाधान की अवधि में स्खलित वीर्यों से दोनों प्रकार के अंडाणु ही अपने-अपने वातावरण से सावधानी पूर्वक बिछड़ते हैं।

    संयुक्त वीर्यः परस्पर मिश्रित द्रव

    (29). संयुक्त वीर्यः परस्पर मिश्रित द्रव
    "हम ने मानव को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया ताकि उसकी परीक्षा लें, (और इस उद्देश्य की पूर्त्ति के लिये) हमने उसे सुनने और देखने वाला बनाया" (अल-क़ुरआन सूर 76 आयत 2)

    अरबी शब्द 'नुत्फ़तिन इम्शाज (نُّطْفَةٍ أَمْشَاجٍ)' का अर्थ मिश्रित द्रव है। कुछेक ज्ञानी व्याख्याताओं के अनुसार मिश्रित द्रव का तात्पर्य पुरूष और महिला के प्रजनन द्रव हैं, पुरूष और महिला के इस द्विलिंगी मिश्रित वीर्य को युग्मनर्ज (Zygote) "नुत्फाह (نُّطْفَةٍ)" कहते हैं जिसका पूर्व स्वरूप भी वीर्य ही होता है। परस्पर मिश्रित द्रव का एक दूसरा अर्थ वह द्रव भी हो सकता हैं। जिसमें संयुक्त या मिश्रित वीर्य शुक्राणु या वीर्य अण्डाणु तैरते रहते है। यह द्रव कई प्रकार के शारिरिक रसायनों से मिल कर बनता है जो कई शारिरिक ग्रंथियों से स्खलित होता है। इस लिये 'नुत्फ़ा ए इम्शाज' संयुक्त वीर्य यानि परस्पर मिश्रित द्रव के माध्यम से बने नवीन पुलिगं या स्त्रीलिंग उसके चारों ओर फैले द्रव्यों की ओर संकेत किया जा रहा है।

    लिंग का निर्धारण

    (30). लिंग का निर्धारण | परिपक्व भ्रूण (Foetus) के लिगं का निर्धारण यानि उससे लड़का होगा या लड़की?


    स्खलित वीर्य शुक्रणुओं से होता है न कि अण्डाणुओं से। अर्थात मां के गर्भाशय में ठहरने वाले गर्भ से लड़का होगा या लड़की उत्पन्न होगा, यह क्रोमोजो़म के 23 वें जोड़े में क्रमशः XX/XY वर्णसूत्र (Chromosome) अवस्था पर होता है। प्रारिम्भक तौर पर लिगं का निर्धारण समागम के अवसर पर हो जाता है, और वह स्खलित वीर्य शुक्राणुओं (Sperms) के काम वर्णसूत्र (Sex Chromosome) पर होता है; जो अण्डाणुओं की उत्पत्ति करता है। अगर अण्डे को उत्पन्न करने वाले शुक्राणुओं में X वर्णसूत्र है, तो ठहरने वाले गर्भ से लड़की पैदा होगी। इसके उलट अगर शुक्राणुओं में Y वर्णसूत्र है तो ठहरने वाले गर्भ से लड़का पैदा होगा।

    "और यह कि वही है जिसने नर और मादा के जोड़े पैदा किए, एक बूँद से, जब वह टपकाई जाती है(अल-क़ुरआनः सूरः 53 आयात 45 और 46)

    यहां अरबी शब्द नुत्फ़ा (نُّطْفَةٍ) का अर्थ तो द्रव की बहुत कम मात्रा है, जबकि तुम्नी (تُمْنَىٰ)‘ का अर्थ तीव्र स्खलन या पौधे का बीजारोपण है। इस लिये नुतफ़ः वीर्य मुख्यता शुक्राणुओं की ओर संकेत कर रहा है, क्योंकि यह तीव्रता से स्खलित होता है, पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता हैः

    "क्या वह केवल टपकाए हुए वीर्य की एक बूँद न था? फिर वह रक्त की एक फुटकी (थक्का या लोथड़ा) हुआ, फिर अल्लाह ने उसे रूप दिया और उसके अंग-प्रत्यंग ठीक-ठाक किए, और उसकी दो जातियाँ बनाई - पुरुष और स्त्री।" (अल-कुरआन सूर:75 आयत 37 से 39 तक)

    ध्यान पूर्वक देखिए कि यहां एक बार फिर यह बताया गया है, कि बहुत ही न्यूनतम मात्रा ( बूंदों ) पर आधारित प्रजनन द्रव जिसके लिये अरबी शब्द 'नुत्फतम्मिन्नी (طْفَةً مِّن مَّنِىٍّۢ)' अवतरित हुआ है; जो कि पुरूष की ओर से आता है और माता के गर्भाशय में बच्चें के लिंग निर्धारण का मूल आधार है।

    भारतीय उपमहाद्वीप में यह अफ़सोस नाक रिवाज है कि आम तौर पर जो महिलाएं सास बन जाती हैं, उन्हें पोतियों से अघिक पोतों का अरमान होता है अगर बहु के यहां बेटों के बजाए बेटियां पैदा हो रहीं हैं, तो वह उन्हें पुरूष संतान पैदा न कर पाने के ताने देती हैं अगर उन्हें केवल यही पता चल जाता है कि संतान के लिंग निर्धारण में महिलाओं के अण्डाणुओं की कोई भूमिका नहीं, और उसका तमाम उत्तरदायित्व पुरूष वीर्य शुक्राणुओं पर निर्भर होता है और इसके बावजूद वह ताने दें; तो उन्हें चाहिए कि वह पुरूष संतान न पैदा होने पर अपनी बहुओं के बजाए बपने बेटों को ताने दें, या कोसें और उन्हें बुरा भला कहें। पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इस विचार पर सहमत हैं के बच्चे के लिंग निर्धारण में पुरूष शुक्राणुओं की ही ज़िम्मेदारी है तथा महिलाओं का इसमें कोई दोष नहीं।

    तीन अंधेरे पर्दों में सुरक्षित 'भ्रूण'

    (31). तीन अंधेरे पर्दों में सुरक्षित 'भ्रूण'
    "उसने तुम्हें अकेली जान पैदा किया; फिर उसी से उसका जोड़ा बनाया औऱ तुम्हारे लिए चौपायों में से आठ नर-मादा उतारे। वह तुम्हारी माँओं के पेटों में तीन अँधेरों के भीतर तुम्हें एक स्वरूप के पश्चात अन्य एक स्वरूप देता चला जाता है। वही अल्लाह तुम्हारा रब है। बादशाही उसी की है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम कहाँ फिरे जाते हो?।" (अल-क़ुरआन सूर 39 आयत 6)

    प्रोफ़ेसर डॉ. कीथ मूर के अनुसार पवित्र क़ुरआन में अंधेरे के जिन तीन परदों कीचर्चा की गई है वह निम्नलिखित हैं:


    1- मां के गर्भाशय की अगली दीवार
        (Anterior abdominal wall of the mother)


    2- गर्भाशय की मूल दीवार
        (The uterine wall)


    3- भ्रूण का खोल या उसके ऊपर लिपटी झिल्ली
        (The amnio-chorionic membrane)




    भ्रूणीय अवस्थाएं

    (32). भ्रूणीय अवस्थाएं

    "हमने मनुष्य को मिट्टी के सत से बनाया, फिर हमने उसे एक सुरक्षित ठहरने की जगह टपकी हुई बूँद बनाकर रखा; फिर हमने उस बूँद को लोथड़े का रूप दिया; फिर हमने उस लोथड़े को बोटी का रूप दिया; फिर हमने उन हड्डियों पर मांस चढाया; फिर हमने उसे एक दूसरा ही सर्जन रूप देकर खड़ा किया। अतः बहुत ही बरकतवाला है अल्लाह, सबसे उत्तम स्रष्टा!" (अल क़ुरआन: सूर: 23 आयात 12 से 14 तक)

    इन पवित्र आयतों में अल्लाह तआला फ़रमाते हैं कि मानव को द्रव की बहुत ही सूक्ष्म मात्रा से बनाया गया अथवा सृजित किया गया है, जिसे विश्राम स्थल में रख दिया जाता है; यह द्रव उस स्थल पर मज़बूती से चिपटा रहता है। यानि स्थापित अवस्था में, और इसी अवस्था के लिये पवित्र क़ुरआन में 'क़रार ए मकीन (قَرَارٍ مَّكِينٍ)' का गद्यांश अवतरित हुआ है। माता के गर्भाशय के पिछले हिस्से को रीढ़ की हडड़ी और कमर के पट्ठों की बदौलत काफ़ी सुरक्षा प्राप्त होती हैं, उस भ्रूण को अनन्य सुरक्षा प्रजनन थैली (Amniotic Sac) से प्राप्त होती है जिसमें प्रजनन द्रव (Amniotic Fluid) भरा होता है अत: सिद्ध हुआ कि माता के गर्भ में एक ऐसा स्थल है जिसे सम्पूर्ण सुरक्षा दी गई है। द्रव की चर्चित न्यूनतम मात्रा 'अलक़ाह (ٱلْعَلَقَةَ)' के रूप में होती है यानि एक ऐसी वस्तु के स्वरूप में जो 'चिमट जाने' में सक्षम है। इसका तात्पर्य जोंक जैसी कोई वस्तु भी है। यह दोनों व्याख्याएं विज्ञान के आधार पर स्वीकृति के योग्य हैं, क्योंकि बिल्कुल प्रारम्भिक अवस्था में भ्रूण वास्तव में माता के गर्भाशय की भीतरी दीवार से चिमट जाता है; जब कि उसका बाहरी स्वरूप भी किसी जोंक के समान होता है।

    इसकी कार्यप्रणाली जोंक की तरह ही होती है क्योंकि, यह 'नाल' के मार्ग से अपनी मां के शरीर से रक्त प्राप्त करता और उससे अपना आहार लेता है। 'अलक़ाह (ٱلْعَلَقَةَ)' का तीसरा अर्थ रक्त का थक्का है। इस अलक़ह वाले अवस्था से जो गर्भ ठहरने के तीसरे और चौथे सप्ताह पर आधारित होता है, बंद धमनियों में रक्त जमने लगता है।

    अतः भ्रूण का स्वरूप केवल जोंक जैसा ही नहीं रहता बल्कि वह रक्त के थक्के जैसा भी दिखाई देने लगता है। अब हम पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त ज्ञान और सदियों के संधंर्ष के बाद विज्ञान द्वारा प्राप्त आधुनिक जानकारियों की तुलना करेंगे। 1677 ई0 हेम और वेन वान ल्यूवेनहॉक (Ham and Ven Leeuwenhoek) ऐसे दो प्रथम वैज्ञानिक थे जिन्होंने सूक्ष्मदर्शी (Microscope) से वीर्य शुक्राणुओं का अध्ययन किया था। उनका विचार था कि शुक्राणुओं की प्रत्येक कोशिका में एक छोटा सा मानव मौजूद होता है, जो गर्भाशय में विकसित होता है और एक नवजात शिशु के रूप में पैदा होता है। इस दृष्टिकोण को छिद्रण सिद्धान्त (Perforation Theory) भी कहा जाता है। कुछ दिनों के बाद जब वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला कि महिलाओं के अण्डाणु, शुक्राणु कोशिकाओं से कहीं अधिक बडे़ होते हैं, तो प्रसिद्ध विशेषज्ञ डी ग्राफ़ सहित कई वैज्ञानिकों ने यह समझना शुरू कर दिया कि अण्डे के अंदर ही मानवीय अस्तित्व सूक्ष्म अवस्था में पाया जाता है। इसके कुछ और दिनों बाद, 18 वीं सदी ईसवी में (Maupertuis) मौपेर्टूईस नामक वैज्ञानिक ने उपरोक्त दोनों विचारों के प्रतिकूल इस दृष्टिकोण का प्रचार शुरू किया कि, कोई बच्चा अपनी माता और पिता दोनों की 'संयुक्त विरासत (Biparental inheritance)' का प्रतिनिधि होता है। 'अलक़ाह (ٱلْعَلَقَةَ)' परिवर्तित होता है और 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' के स्वरूप में आता है, जिसका अर्थ है कोई वस्तु जिसे चबाया गया हो यानि जिस पर दांतों के निशान हों और कोई ऐसी वस्तु हो जो चिपचिपी (लसदार) और सूक्ष्म हों, जैसे 'च्युइंगम' की तरह मुंह में रखा जा सकता हो। वैज्ञानिक आधार पर यह दोनों व्याख्याएं सटीक हैं।

     प्रोफ़ेसर कीथ मुर ने रबर और च्युइंगम जैसे द्रव का एक टुकड़ा लेकर उसे प्रारम्भिक अवधि वाले भ्रूण का स्वरूप दिया और दांतों से चबाकर 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' में परिवर्तित कर दिया। फिर उन्होंने इस प्रायोगिक 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' की संरचना की तुलना प्रारम्भिक भ्रूण (Fetus) के चित्रों से की, इस पर मौजूद दांतों के निशान मानवीय 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' पर पड़े कायखण्ड (Somites) के समान थे जो गर्भ में मेरूदण्ड (Spinal Cord) के प्रारिम्भक स्वरूप को दर्शाते हैं।

    अगले चरण में यह 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' परिवर्तित होकर हड़डियों का रूप धारण कर लेता है। उन हड्रडियों के गिर्द नरम और बारीक मांस या पटठों का ग़िलाफ़ (खोल) होता है फ़िर अल्लाह तआला उसे एक बिल्कुल ही अलग जीव का रूप दे देता है।

    अमरीका में थॉमस जिफ़र्सन विश्वविद्यालय, फिलाडेल्फिया (Thomas Jefferson University, Philadelphia) के उदर विभाग में अध्यक्ष, दन्त संस्थान के निदेशक और अधिकृत वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर मार्शल जॉनसन से कहा गया कि, वह भू्रण विज्ञान के संदर्भ से पवित्र क़ुरआन की आयतों की समीक्षा करें। पहले तो उन्होंने यह कहा कि कोई असंख्य प्रजनन चरणों की व्याख्या करने वाली क़ुरआनी आयतें किसी भी प्रकार से सहमति का आधार नहीं हो सकतीं और हो सकता है कि पैगम्बर मुहम्मद स.अ.व. के पास बहुत ही शक्तिशाली सूक्ष्मदर्शी (Microscope) रहा हो। जब उन्हें यह याद दिलाया गया कि पवित्र क़ुरआन का नज़ूल (अवतरण) 1400 वर्ष पहले हुआ था और विश्व की पहली सूक्ष्मदर्शी (Microscope) भी हज़रत मुहम्मद सल्ल० के सैंकडों वर्ष बाद अविष्कृत हुई थी तो प्रोफ़ेसर जॉनसन हंसे और यह स्वीकार किया कि पहली अविष्कृत सूक्ष्मदर्शी भी दस गुणा ज़्यादा बड़ा स्वरूप दिखाने में समक्ष नहीं थी और उसकी सहायता से सूक्ष्म दृश्य को स्पष्ट रूप में नहीं देखा जा सकता था। तत्पश्चात उन्होंने कहा: फ़िलहाल मुझे इस संकल्पना में कोई विवाद दिखाई नहीं देता कि जब पैग़म्बर मोहम्मद सल्ल० ने पवित्र क़ुरआन की अयतें पढ़ीं तो उस समय विश्वस्नीय तौर पर कोई आसमानी (इल्हामी )शक्ति भी साथ में काम कर रही थी।

    ड़ॉ. कीथ मूर का कहना है, कि प्रजनन विकास के चरणों का जो वर्गीकरण सारी दुनिया में प्रचलित है, आसानी से समझ में आने वाला नहीं है, क्योंकि उसमें प्रत्येक चरण को एक संख्या द्वारा पहचाना जाता है जैसे चरण संख्या 1, चरण संख्या 2 आदि। दूसरी ओर पवित्र क़ुरआन ने प्रजनन के चरणों का जो विभाजन किया है, उसका आधार पृथक और आसानी से चिन्हित करने योग्य अवस्था या संरचना पर हैं यही वह चरण हैं, जिनसे कोई प्रजनन एक के बाद एक ग़ुजरता है इसके अलावा यह अवस्थाएं (संरचनाएं) जन्म से पूर्व, विकास के विभिन्न चरणों का नेतृत्व करतीं हैं और ऐसी वैज्ञानिक व्याख्याए उप्लब्ध करातीं हैं, जो बहुत ही ऊंचे स्तर की तथा समझने योग्य होने के साथ साथ व्यवहारिक महत्व भी रखतीं हैं। मातृ गर्भाशय में मानवीय प्रजनन विकास के विभिन्न चरणों की चर्चा निम्नलिखित पवित्र आयतों में भी समझी जा सकती हैं:

    "क्या वह एक तुच्छ पानी का वीर्य न था जो (मातृ गर्भाशय में ) टपकाया जाता है ? फ़िर वह एक थक्का बना फिर अल्लाह ने उसका शरीर बनाया और उसके अंग ठीक किये फिर उससे मर्द और औरत की दो क़िसमें बनाई।" (अल-कुरआनः सूर:75, आयत 37 से 39)

    "जिसने तुझे पैदा किया, तुझे आकार प्रकार (नक-सक) से ठीक किया , तुझे उचित अनुपात में बनाया और जिस स्वरूप में चाहा तुझे जोड़ कर तैयार किया।" (अल-क़ुरआन: सूरः 82 आयात 7 से 8)

    अर्द्ध निर्मित एंव अर्द्ध अनिर्मित गर्भस्थ भ्रूण

    (33). अर्द्ध निर्मित एंव अर्द्ध अनिर्मित गर्भस्थ भ्रूण

    अगर 'मुज़्गाह (مُضْغَةً)' की अवस्था पर गर्भस्थ भ्रूण बीच से काटा जाए और उसके अंदरूनी भागों का अध्ययन किया जाए तो हमें स्पष्ट रूप से नज़र आएगा कि ('मुज़्गाह (مُضْغَةً)' के भीतरी अंगों में से अधिकतर पूरी तरह बन चुके हैं जब कि शेष अंग अपने निर्माण के चरणों से गुज़र रहे हैं। प्रोफ़ेसर जॉनसन का कहना है कि अगर हम पूरे गर्भस्थ भ्रूण को एक सम्पूर्ण अस्तित्व के रूप में बयान करें, तो हम केवल उसी हिस्से की बात कर रहे होंगे; जिसका निर्माण पूरा हो चुका है और अगर हम उसे अर्द्ध निर्मित अस्तित्व कहें तो फिर हम गर्भस्थ भ्रूण के उन भागों का उदाहरण दे रहे होंगे, जो अभी पूरी तरह से निर्मित नहीं हुए बल्कि निर्माण की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि उस अवसर पर गर्भस्थ भ्रूण को क्या सम्बोधित करना चाहिये? सम्पूर्ण अस्तित्व या अर्द्ध निर्मित अस्तित्व गर्भस्थ, भ्रूण के विकास की इस प्रक्रिया के बारे में जो व्याख्या हमें पवित्र क़ुरआन ने दी है उससे बेहतर कोई अन्य व्याख्या सम्भव नहीं है पवित्र क़ुरआन इस चरण को ‘अर्द्ध‘ निर्मित अर्द्ध अनिर्मित‘ की संज्ञा देता है। निम्न्लिखित आयतों का आशय देखिए:

    "ऐ लोगो! यदि तुम्हें दोबारा जी उठने के विषय में कोई सन्देह हो तो देखो, हमने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर वीर्य से, फिर लोथड़े से, फिर माँस की बोटी से जो बनावट में पूर्ण दशा में भी होती है और अपूर्ण दशा में भी, ताकि हम तुमपर स्पष्ट कर दें और हम जिसे चाहते है एक नियत समय तक गर्भाशयों में ठहराए रखते है। फिर तुम्हें एक बच्चे के रूप में निकाल लाते है। (फिर तुम्हारी परवरिश करते हैं ) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुंचो..." (अल-क़ुरआन सूर: 22 आयत 5)

    वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम जानते हैं कि गर्भस्थ भ्रूण विकास के इस प्रारम्भिक चरण में कुछ वीर्य ऐसे होते हैं, जो एक पृथक स्वरूप धारण कर चुके हैं; जबकि कुछ स्खलित वीर्य, विशेष तुलनात्मक स्वरूप में आए नहीं होते। यानि कुछ अंग बन चुके होते हैं और कुछ अभी अनिर्मित अवस्था में होते हैं।

    सुनने और देखने की इंद्रिया

    (34). सुनने और देखने की इंद्रिया


    मां के गर्भाशय में विकसित हो रहे मानवीय अस्तित्व में सब से पहले जो इंद्रिय जन्म लेती है वह श्रवण इंद्रियां होती है। 24 सप्ताह के बाद परिपक्व भ्रूण आवाजें सुनने के योग्य हो जाता है। फिर गर्भ के 28 वें सप्ताह तक दृष्टि इंद्रियां भी अस्तित्व में आ जाती हैं और दृष्टिपटल (Retina) रौशनी के लिये अनुभूत हो जाता है। इस प्रक्रिया के बारे में पवित्र क़ुरआन यूं फ़रमाता है:


    "फिर उसे ठीक-ठीक किया और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फूँकी। और तुम्हें कान और आँखें और (मनोभाव) दिए। फिर भी तुम लोग कम ही शुक्रगुज़ार होते हो। (अल-क़ुरआन सूर: 32 आयत 9)

    "हम ने मानव को एक मिश्रित वीर्य से पैदा किया ताकि उसकी परीक्षा लें और इस उद्देश्य के लिये हम ने उसे सुनने और देखने वाला बनाया।" (अल-क़ुरआन: सूर 76 आयत 2)



    "और वही है जिसने तुम्हारे लिए कान और आँखे और दिल बनाए। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो!।" (अल-क़ुरआन:सूरः23 आयत 78)


    ध्यान दीजिये कि तमाम पवित्र आयतों में श्रवण-इंद्रिय की चर्चा दृष्टि-इंद्रिय से पहले आयी हुई है इससे सिद्ध हुआ कि पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रदत्त व्याख्याएं, आधुनिक प्रजनन विज्ञान में होने वाले शोध और खोजों से पूरी तरह मेल खाते हैं या समान है। 

    >>सार्वजनिक - विज्ञान<<
    (General Science)

    उंगल-चिन्ह के निशानः (Fingerprints)

    (35). उंगल-चिन्ह के निशानः (Fingerprints)

    "क्या मानव यह समझ रहा है कि हम उसकी हड़डियों को एकत्रित न कर सकेंगे ? क्यों नहीं ? हम तो उसकी उंगलियों के पोर-पोर तक ठीक बना देने का प्रभुत्व रखते हैं।" (अल-क़ुरआन सूर:75 आयत 3 और 4)


    काफ़िर या गै़र मुस्लिम आपत्ति करते हैं, कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाता है; और उसकी हड्डियाँ तक ख़ाक में मिल जाती हैं। तो यह कैसे सम्भव है कि, क़यामत के दिन उसके शरीर का एक-एक अंश पूनः एकत्रित हो कर पहले वाली जीवित अवस्था में वापिस आजाए? और अगर ऐसा हो भी गया तो क़यामत के दिन उस व्याक्ति की ठीक-ठीक पहचान किस प्रकार होगी ? अल्लाह तआला ने उपर्युक्त पवित्र आयत

    में इस आपत्ति का बहुत ही स्पष्ट उत्तर देते हुए कहा है, कि वह (अल्लाह) सिर्फ इसी पर प्रभुत्व (कुदरत) नहीं रखता की चूर -चूर हड़डियों को वापिस एकत्रित कर दे बल्कि इस पर भी प्रभुत्व रखता है, कि हमारी उंगलियों की पोरों तक को दुबारा से पहले वाली अवस्था में ठीक - ठीक परिवर्तित कर दे।



    सवाल यह है कि जब पवित्र क़ुरआन मानवीय मौलिकता के पहचान की बात कर रहा है तो "उंगलियों के पोरों" की विशेष चर्चा क्यों कर रहा है? सर फ्रांसिस गाल्टन (Sir Francis Galton) की तहक़ीक़ के बाद 1880 ई0 में उंगल-चिन्ह (Fingerprints) को पहचान के वैज्ञानिक विधि का दर्जा प्राप्त हुआ आज हम यह जानते हैं कि इस संसार में किसी दो व्यक्ति के उंगल-चिन्ह का नमूना समान नहीं हो सकता। यहां तक कि हमशक्ल जुड़वा भाई बहनों का भी नहीं, यही कारण है कि आज तमाम विश्व में अपराधियों की पहचान के लिये उनके उंगल चिन्ह का ही उपयोग किया जाता है।


    क्या कोई बता सकता है, कि आज से 1400 वर्ष पहले किसको उंगल चिन्हों की विशेषता और उसकी मौलिकता के बारे में मालूम था? यक़ीनन ऐसा ज्ञान रखने वाली ज़ात अल्लाह तआला के सिवा किसी और की नहीं हो सकती।

    त्वचा में दर्द के अभिग्राहक

    (36). त्वचा में दर्द के अभिग्राहक (Pain Receptors in the Skin)

    पहले यह समझा जाता था कि अनुभूतियां और दर्द केवल दिमाग़ पर निर्भर होती है। अलबत्ता हाल के शोध से यह जानकारी मिली है, कि त्वचा में दर्द को अनुभूत करने वाले 'अभिग्राहक (Receptors)' होते हैं। अगर ऐसी कोशिकाएं न हों तो मनुष्य दर्द की अनुभूति (महसूस) करने योग्य नहीं रहता। जब कोई डॉक्टर किसी रोगी में जलने के कारण पड़ने वाले घावों को इलाज के लिये, परखता है तो वह जलने का तापमान मालूम करने के लिये; जले हुए स्थल पर सूई चुभोकर देखता है अगर सुई चुभने से प्रभावित व्यक्ति को दर्द महसूस होता है, तो


    चिकित्सक या डॉक्टर को इस पर प्रसन्नता होती है। इसका अर्थ यह होता है, कि जलने का घाव केवल त्वचा के बाहरी हद तक है और दर्द महसूस करने वाली केशिकाएं जीवित और सुरक्षित हैं। इसके प्रतिकूल अगर प्रभावित व्यक्ति को सुई चुभने पर दर्द अनुभूत नहीं हो, तो यह चिंताजनक स्थिति होती है क्योंकि इसका अर्थ यह है; कि जलने के कारण बनने वाले घाव: ज़ख़्म की गहराई अधिक है और दर्द महसूस करने वाली कोशिकाएं भी मर चुकी हैं।

    "जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें जल जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" (अल-क़ुरआन सूर: 4 आयत 56)

    थाईलैण्ड में – चियांग मई यूनिवर्सिटी (Chiang Mai University) के शरीर-रचना विभाग (Department of Anatomy), के संचालक प्रोफ़ेसर तगातत तेजासेन (Prof. Tagatat Tejasen) ने दर्द कोशिकाओं के संदर्भ में शोध पर बहुत समय खर्च किया पहले तो उन्हे विश्वास ही नहीं हुआ कि पवित्र कु़रआन ने 1400 वर्ष पहले इस वैज्ञानिक यथार्थ का रहस्य उदघाटित कर दिया था। फिर इसके बाद जब उन्होंने उपरोक्त पवित्र आयतों के अनुवाद की बाज़ाब्ता पुष्टि करली तो, वह पवित्र क़ुरआन की वैज्ञानिक सम्पूर्णता से बहुत ज़्यादा प्रभावित हुए। तभी यहां सऊदी अरब के रियाज़ नगर में एक सम्मेलन आयोजित हुआ जिसका विषय था 'पवित्र क़ुरआन और सुन्नत में वैज्ञानिक निशानियां' प्रोफ़ेसर तेजासान भी उस सम्मेलन में पहुंचे, और सऊदी अरब के शहर रियाज़ में आयोजित 'आठवें सऊदी चिकित्सा सम्मेलन' के अवसर पर उन्होंने भारी सभा में गर्व और समर्पण के साथ सबसे पहले कहा: "अल्लाह के सिवा कोई माबूद (पूजनीय) नहीं, और मुहम्मद सल्ल० उसके रसूल हैं।"
    प्रोफ़ेसर तगातत तेजासेन इस्लाम अपनाते हुए

    लोहे का स्रोत

    (37) लोहे का स्रोत

    आधुनिक युग में खगोलशास्त्रियों ने यह खोज की है, कि पृथ्वी पर जितना भी लोहा पाया जाता है उसका उत्पादन पृथ्वी पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में फैले हुए बड़े-बड़े सितारों पर हुआ था और उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने से यहां तक पहुंचा है।


    क़ुरआन ने लोहे के पृथ्वी के बाहर से यहां आने की बात 1400 वर्ष पूर्व ही बता दी थी।

    "...और हमने लोहा उतारा जिसमें बड़ा ज़ोर है और लोगों के लिए लाभ है...।" (अल-क़ुरआन सूर: 57 आयत 25)

    यहां ‘‘(وَأَنزَلْنَا ٱلْحَدِيدَनाज़िल किया, उतारा’’ शब्द इस ओर संकेत कर रहा है कि लोहा पृथ्वी पर उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि बाहर से आया है।

    निष्कर्ष

    >>निष्कर्ष<<
    (Conclusion)
    पवित्र क़ुरआन में वैज्ञानिक यथार्थ की उपस्थिति को संयोग क़रार देना दर अस्ल एक ही समय में वास्तविक बौद्धिकता और सही वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बिल्कुल विरुद्ध है। वास्ताव में क़ुरआन की पवित्र आयतों में शाश्वत वैज्ञानिकता, पवित्र क़ुरआन की स्पष्ट घोषणाओं की ओर संकेत करती है:

    "शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ वाह्य क्षेत्रों में दिखाएँगे और स्वयं उनके अपने भीतर भी, यहाँ तक कि उनपर स्पष्टा हो जाएगा कि वह (क़ुरआन) सत्य है। क्या तुम्हारा रब इस दृष्टि, से काफ़ी नहीं कि वह हर चीज़ का साक्षी है।" (अल-क़ुरआन:सूर: 41 आयत .53 )

    पवित्र क़ुरआन तमाम मानवजाति को निमंत्रण देता है कि वे सब, कायनात (सृष्टि) की संरचना और उत्पत्ति पर चिंतन मनन करें



    "निस्सदेह आकाशों और धरती की रचना में और रात और दिन के आगे पीछे बारी-बारी आने में उन अकल्मंदों के लिए निशानियाँ है।" (अल-क़ुरआन: सूर 3 आयत 190)



    पवित्र क़ुरआन में उपस्थित वैज्ञानिक साक्ष्य और अवस्थाएं सिद्ध करते हैं, कि यह वाकई "इल्हामी" माध्यम से अवतरित हुआ है। आज से 1400 वर्ष पहले कोई व्यक्ति ऐसा नहीं था, जो इस तरह महत्वपूर्ण और सटीक वैज्ञानिक यथार्थो पर अधारित कोई किताब लिख सकता


    यद्यपि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह 'निशानियों (Signs) की पुस्तक है। यह निशानियां सम्पूर्ण मानव समुह को निमन्त्रण (दावत) देती हैं, कि वह पृथ्वी पर अपने अस्तित्व के प्रयोजन और उद्देश्य की अनुभूति करें; और प्रकृति से समानता अपनाए हुए रहें। इसमें कोई संदेह नहीं कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा अवतरित वाणी (कलाम) है, रब्बुल आलमीन (सृष्टि के ईश्वर) की वाणी है; जो सृष्टि का सृजन करने वाला रचनाकार और मालिक भी है और इसका संचालन भी कर रहा है


    समें अल्लाह तआ़ला की एकात्मता (वहदानियत) के होने का वही संदेश है जिसका, प्रचार हज़रत आदम अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद सल्लाहू अलैहि वा सल्लम तक तमाम पैग़म्बरों ने किया है


    पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान के विषय पर अब तक बहुत कुछ विस्तार से लिखा जा चुका है, और इस क्षेत्र में प्रत्येक क्षण निरंतर शोध जारी है। इन्शाअल्लाह यह शोध भी मानवीय समूह को अल्लाह तआला की वाणी के निकट लाने में सहायक सिद्ध होगा इस लेख में पवित्र क़ुरआन द्वारा प्रस्तुत केवल कुछेक वैज्ञानिक यथार्थ संग्रहित किये गये है मै यह दावा नहीं कर सकता कि मैंने इस विषय के साथ पूरा पूरा इंसाफ़ किया है।



    प्रोफ़ेसर तगातत तेजासेन (Prof. Tagatat Tejasen) ने पवित्र कुरआन में बताई हुई केवल एक वैज्ञानिक निशानी के अटल यथार्थ होने के कारण, इस्लाम मज़हब धारण किया बहुत सम्भव है कि कुछ लोगों को दस और कुछेक को 100 वैज्ञानिक निशानियों की आवश्यकता हो ताकि, वे सब यह मान लें कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा अवतरित है। कुछ लोग शायद ऐसे भी हों जो हज़ार निशानियां देख लेने और उसकी पुष्टि के बावजूद सच्चाई। सत्य को स्वीकार न करना चाहते हों। पवित्र कुरआन ने निम्नलिखित आयतों में, ऐसे अनुदार दृष्टिकोण वालों की भर्त्सना (मुज़म्मत) की है।



    "वे बहरे हैं, गूंगे हैं, अंधे हैं यह अब नहीं लौटेंगे (सच्चे मार्ग पे)" (अल-क़ुरआन: सूर 2 आयत 18)

    पवित्र क़ुरआन वैयक्तिक जीवन और सामूहिक समाज, तमाम लोगों के लिये ही सम्पूर्ण जीवन आचारण है। अलहम्दुलिल्लाह पवित्र क़ुरआन हमें ज़िन्दगी गुज़ारने का जो तरीका़ बताता है वे इस सारे, वादों (ims) से बहुत ऊपर है, जिसे आधुनिक मानव ने केवल अपनी नासमझी और अज्ञानता के आधार पर अविष्कृत (ईजाद) किये हैं। क्या यह सम्भव है कि स्वंय सृजक और रचनाकार मालिक से ज़्यादा बेहतर नेतृत्व कोई और दे सके? मेरी प्रार्थना (दुआ) है कि अल्लाह तआ़ला मेरी इस मामूली सी कोशिश को स्वीकार करे हम पर 'दया' (रहम) करे और हमें सन्मार्ग (सही रास्ता) दिखाए आमीन।