Karmo Ki Saza aur Karmo Ka Fal - Nstik Jarur Padhe- लेखक: सतीश चंद्र गुप्ता

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कहां मिलेगी हमें पापों की सजा - लेखक: सतीश चंद्र गुप्ता
'कर्मों का फल कैसे और कर्मों की सज़ा कहाँ मिलता है. क्या इस दुनिया में ही कर्मों का फल मिलता है' इस विषय पे एक तर्कपूर्ण और रोचक लेख: अनुक्रम दिया गया है. लेकिन  शुरू से पढ़ें बहोत ही अच्छा लेख है Karmo Ki Saza aur Karmo Ka Fal.


    Karmo Ki Saza aur Karmo Ka Fal

    जघन्य पाप और अपराध:-

              इस दुनिया में ऐसे ऐसे जघन्य पाप और अपराध होते हैं कि देखना तो दूर सुनकर ही आदमी के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, हम देखते हैं कि एक आदमी हजारों-लाखों निर्दोष लोगों, बूंढों, बच्चों और औरतों का निर्मम कत्ल करता है। एक आदमी आठ-दस साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म करता है, और उसकी निर्दयता और निर्ममता से हत्या कर देता है। यहाँ निर्दोष मनुष्यों को जिंदा जलाया जाता है। यहां बम विस्फोट से निर्दोष लोगों के चिथड़े-चिथड़े कर दिए जाते हैं। यहां ऐसे-ऐसे जघन्य पाप होते हैं जिनका ख़मियाजा देशों को, कौमों को, समाजों और परिवारों को सदियों तक भुगतना पड़ता है, मगर यहां किसी अपराधी और पापी का कुछ नहीं बिगड़ता। यहां दस में से किसी एक को सजा मिलती भी है तो उतनी नहीं मिलती, जितना जघन्य अपराध उसने किया है।       
       

    मंगोल का कबीलाई शासक:-

    चंगेज खां (1162-1227), जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर (1879 से 1945), रूस का तानाशाह जोसेफ स्टालिन (1879-1953), कम्बोडिया का कम्युनिस्ट शासक पोलपोट (1925-1998) आदि ऐसे नाम है, जो हजारों मनुष्यों के नहीं बल्कि लाखों बूढों, बच्चों और औरतों के कत्ल के जिम्मेदार है। इन्होंने खून की नदियां बहाई है। क्या ऐसे क्रूर और बर्बर जालिमों को फांसी के अलावा भी कोई और सजा दे सकते हैं?

    इस दुनिया में पूरा न्याय कहाँ:-


              अगर यहाँ कोई व्यक्ति एक निर्दोष को मारे या दूसरा व्यक्ति एक हज़ार को दोनों को हद से हद फांसी हो सकती है।यहाँ जालिम पूरे ऐसो आराम की जिंदगी जीता है। एक आदमी अपनी पूरी जिंदगी लुट-खसोट और घोटालों में गुजार देता है, मगर उसका कभी बाल भी बांका नहीं होता। यहां 200 करोड़ का घोटाला करने वाला आजाद घूमता है जबकि 200 रूपये चुराने वाला जेल में डाल जेल में डाल दिया जाता है। यहां पैसे से कानून को खरीदा जा सकता है। यहां भला आदमी परेशानी की जिंदगी जीता है, जालिम यहां मसीहा है, लुटेरे यहां मेंबर आफ पार्लियामेंट और मिनिस्टर है। यहां तो ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
      
              हम देखते हैं कि एक आदमी जालिम होता है और दूसरा मजलूम। एक कातिल होता है दूसरा मकतूल। मरने वाला इस दुनिया से चला जाता है। मारने वाला जिंदा रहता है और परिवार सहित मौज की जिंदगी जीता है। मरने वाले का परिवार दुख, परेशानी, अभाव का जीवन जीता है। घर के मुखिया के मरने का प्रभाव कई पीढ़ियों तक रहता है। अब क्या जालिम और कातिल को उनके ज़ुल्म की सजा व मजलूम और मकतूल को उसकी मज्लुमियत का बदला दिए बिना, दोनों के जीवन को मुकम्मल जीवन का कहा जा सकता है?


              क्या यह बात अक्ल के खिलाफ नहीं है? कि एक आदमी जुल्म करें और उसे कभी उस ज़ुल्म की सजा न मिले?, मजलूम को कभी इंसान ना मिले। कोई अक्ल अक्ल का अंधा व्यक्ति यह कह सकता है कि जालिम को कभी उसके कुकृत्यों की सजा नहीं मिलेगी, नेक और भले आदमी को कभी इंसाफ नहीं मिलेगा।

    बेईमान, स्वार्थी, धूर्त VS ईमानदार, शरीफ, परिश्रमी:-


              हम इस दुनिया में देखते हैं कि अक्सर बेईमान, स्वार्थी, धूर्त प्रवृत्ति के लोग फलते–फूलते हैं, ईमानदार, शरीफ, परिश्रमी लोग अभाव में जीते हैं। दुष्ट प्रवृत्ति के लोग सुख भोगते हैं और पुण्यात्मा लोग कष्ट उठाते दिखाई देते हैं। यहाँ झूठ बोलने वालों के मुंह में छाले नहीं पड़ते, यहां दूसरों का माल हड़पने वालों के पेट में दर्द तक नहीं होता। यहां अनेक नेक लोग, साधु, संत ऐसे हुए हैं जिनका पूरा जीवन सत्य, न्याय, परोपकार के लिए समर्पित था, मगर फिर भी वे जीवन भर दुख, परेशानी और अभाव से लड़ते रहे और अंत में उनकी मृत्यु भी बड़ी भयानक और कष्टदायक हुई। ऐसे कई उदाहरण आपको मिल जाएँगे।


              क्या उक्त तर्कों और तथ्यों से यह साबित नहीं हो रहा है कि निर्णय और न्याय के लिए यह संसार अपूर्ण है। यहां न तो अच्छे, सच्चे, भले, परिश्रमी और परोपकारी आदमी को उनके कार्यों का कोई पुरस्कार और इनाम मिल रहा है और न ही यहां बेईमान, लुटेरे, हत्यारे और जालिम आदमी को उसके कुकर्मों की सजा मिल रही है जबकि अकल ये कहती है कि इंसाफ अवश्य होना चाहिए।



              जब यह बात कतई युक्ति-युक्त और बुद्धिसंगत है कि जालिमों को उसके कुकृत्यों की सजा अवश्य मिलेगी, तो फिर यह भी जरूरी हो जाता है कि कोई ऐसी चेतन शक्ति हो जो जालिम को उसके जुल्म की सजा दे, जो न्याय के साथ फैसला करें। इसके साथ यह भी जरूरी हो जाता है कि कोई ऐसी दुनिया हो जहां न्याय हो सके। ऐसा न्याय जिससे किसी को कोई शिकायत ना हो। इस दुनिया में तो ऐसे न्याय की कोई संभावना नहीं है।


     कर्मों की रिकॉर्डिंग:-

              फैसले के लिए यह भी जरूरी हो जाता है कि कोई ऐसा रिकॉर्ड ऑफिस हो, जहां ऑटोमेटिक ही मनुष्यों के अच्छे-बुरे कर्मों की, विचारों की, भावनाओं की रिकॉर्डिंग होती हो। मनुष्य जो कह रहा है, जो कर रहा है, जो सोच रहा है सब कुछ लिखा जाता हो। जहां मनुष्यों की छोटी-बड़ी सब हरकतों का हिसाब रखा जाता हो।



              कहां होगा ऐसा निष्पक्ष न्याय? दुनिया के विभिन्न धर्मों में इस सवाल के जो जवाब मिलते हैं, उन पर भी एक निष्पक्ष दृष्टि डाल लीजिए:-



              एक वर्ग जड़वादियों (Materialist) और नास्तिक (Atheist) का है, जिनका मानना है कि यहीं आदि है और यही अंत हैं। “भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।” देह भस्म हो गया फ़िर आना जाना कहाँ? (Death is the end of life) अनीश्वरवादी महात्मा गौतम बुद्ध ने कहा, “भला करो भले बनो, मृत्योपरांत क्या होगा? यह प्रश्न असंगत है, अव्याकृत है।” यहां सवाल यह है कि अगर आदमी भला करेगा तो उसे भलाई के बदले में क्या मिलेगा? यह दुनिया हमारे सामने हैं। इस दुनिया में तो उसे भलाई के बदले बुराई, परेशानी, नुकसान, अपमान आदि के सिवा कुछ मिलने वाला नहीं है। अपना सिर पिटवाकर तो कोई भी किसी का भला करेगा नहीं। फिर यह किस उम्मीद पर लोगों का भला करेगा? किसी आदमी को दंड या सजा का भय न हो तो वह किसी का क्यों भला करेगा? अगर यही आदि और यही अंत है तो फिर क्यों भले-बुरे के चक्कर में पड़ जाए? स्पष्ट है कि जड़वादियों और नास्तिकों की धारणा कतई असंगत और अतर्कित है। मनुष्य देह भस्म होने के बाद जीवन समाप्त नहीं होता।


    कर्म के अनुसार कुत्ता, बिल्ली, गद्दा:-

              एक वर्ग हिंदूवादियों (Polytheist) का है, जिनका मानना है कि मृत्यु के बाद मनुष्य कर्म के अनुसार कुत्ता, बिल्ली, गद्दा....... आदि बनकर पुनः इस जीवन में आता आ जाता है। पेड़-पौधों, पशु-पक्षी और मनुष्य आदि में एक ही प्रकार की आत्मा का निवास है। और कर्मा अनुसार यह आत्मा वनस्पति योनि, पशु योनि और मनुष्य योनि में विचरण करती है। जीवन मरण की यह अनवरत श्रृंखला है। सभी हिंदू धर्म चिंतकों और विद्वानों ने योनियों की संख्या 84 लाख बताई है। रामचरितमानस के लेखक गोस्वामी तुलसीदास के मतानुसार कुल 84 लाख योनियों में 27 लाख स्थावर, 9 लाख जलचर, 11 लाख पक्षी, 4 लाख जानवर और 23 लाख मानव योनियाँ है। हिंदू धर्मदर्शन के मनीषियों ने इस अवधारणा को आवागमनीय पुनर्जन्म (Cycle of birth & death) का नाम दिया है।

    हिंदू धर्मदर्शन के चिंतकों का तीर और तर्क:-

              इस अवधारणा के संदर्भ में हिंदू धर्मदर्शन के चिंतकों का एक मजबूत तीर और तर्क है कि संसार में कोई मनुष्य अँधा और लंगड़ा जन्मता है। यहाँ कोई खूबसूरत और कोई बदसूरत है। कोई निर्धन है तो कोई धनवान है। कोई हिंदू जन्मता है तो कोई मुसलमान जन्मता है। कोई ऊँची जात है तो कोई निजी जात है। जन्म के प्रारंभ में ही उक्त विषमताएं पिछले जन्म का फल नहीं तो और क्या है?


              यदि इस धारण को सत्य माना जाए तो मन में अनेक सवाल पैदा हो जाते हैं। प्रथम यह कि यदि इस जन्म की अपंगता पिछली योनि के कर्मों का फल हो तो न्याय की मांग है कि अपंग व्यक्ति को यह जानकारी होनी चाहिए कि उसके पूर्वजन्म में किस योनी में क्या पाप व दुष्कर्म किया है जिसके कारण उसे यह सजा मिली है, ताकि इस मनुष्य जन्म में वह अपना सुधार कर सकें। अगर अपंग व्यक्ति को पूर्व योनि में किए दुष्कर्म और पापकर्म को का पता नहीं नहीं है और सत्य भी यही है कि जीव-जंतु और पेड़-पौधों को तो क्या होगा, विवेकशील मनुष्य को भी कुछ पता नहीं है। तो क्या अनेक जन्म की यह धारणा पूर्णतः भ्रामक और कतई मिथ्या नहीं हो जाती?



              एक व्यक्ति ने किसी ज्योतिषविद से पूछा महाराज! में जन्म से अंधा हूं, इसका क्या कारण है ज्योतिष विशेषज्ञ ने जवाब दिया, “पूर्वजन्म में आप द्वारा पवित्र नर-नारियों को खुले अंगों पर कुदृष्टि डालने या कीट-पतंगों की आंखों में कांटे चुभोकर उन्हें तड़पते देख आनंदित होने पर ऐसा योग बनता है।”

    कुकर्मों को बताने वाले ज्योतिषविद:-

              यहां सवाल यह है कि किसी व्यक्ति द्वारा पूर्व जन्म में किए कुकर्मों को बताने वाले ज्योतिषविद की विदा (Knowledge) का वैज्ञानिक या धार्मिक आधार क्या है? उसके पास ऐसा कौनसा वैज्ञानिक फार्मूला या दिव्य ज्ञान है जिसे कैलकुलेट कर आंखों से देख कर वह सच्चाई बयान कर रहा है? दूसरा सवाल यह है कि जब कुकर्म करने वाले व्यक्ति को खुद अपने द्वारा किए गए दुष्कर्मों की जानकारी नहीं है तो भला दूसरे को कैसे हो सकती है? दूसरों को जानकारी होने को लाभ भी क्या है? दूसरों की बातों पर यकीन करके कोई व्यक्ति खुद को भला कैसे सुधार पाएगा?

    विज्ञान और आवागमनीय प्रक्रिया:-

              विज्ञान इस तथ्य की तह तक पहुंच गया है कि इस सृष्टि का आदि भी है और अंत भी है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सृष्टि का प्रारंभ एक महाविस्फोट से हुआ और अंत भी इसी प्रकार होगा। यहाँ सवाल यह है कि आवागमनीय सिद्धांत के अनुसार सृष्टि के आरंभ में मनुष्य के जन्म की शुरुआत का सैद्धांतिक आधार क्या हो क्या हो सकता है? सृष्टि के अंत में जब मानव जाति का अंत होगा और आवागमनीय प्रक्रिया रुक जाएगी, तब न्याय प्रक्रिया और कर्मफल सिद्धांत का क्या होगा? जब यह निश्चित है कि सृष्टि का एक दिन अंत होना है तो फिर जन्म-मरण की श्रृंखला अनवरत कैसे हो सकती है?



              विज्ञान कहता है कि मानव शृष्टि का आरंभ एक जोड़े से हुआ। संपूर्ण मानवता एक मां-बाप की संतान है। आज विश्व की जनसंख्या 720 करोड़ के लगभग पहुंच गई है आज के संदर्भ में देखा जाए तो आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 338000 बच्चे पैदा होते हैं और लगभग 146800 लोग मृत्यु को प्राप्त होते हो जाते हैं। अगर ये मान लिया जाए कि प्रतिदिन लगभग 146800 पुरानी आत्माएं दोबारा मनुष्य जन्म ले रही हैं, मगर जो 191200 आत्माएं जन्म ले रही है, ये नई आत्माएं किस योनि से मनुष्य योनि में आ रही है? आवागमनीय सिद्धांत के अनुसार हम जनसंख्या वृद्धि को कैसे समझेंगे और कैसे समझाएंगे? (नोट: ये आकडे कुछ साल पहले के है)


    रामचरितमानस और तर्क:-

              इसी धारणा के साथ हिन्दू मनीषियों कि यह भी मान्यता है कि मनुष्य योनि पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों से मिलती है। जैसा कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है, “बड़े भाग्य मनुष्य तनु पाया।” यहां यह विचारणीय है कि यदि मनुष्य योनि पूर्व जन्म के अच्छे कर्म से मिलती है तो फिर कोई जन्म से अंधा, बहरा, लंगड़ा और जड़बुद्धि क्यों? यहाँ अब यह भी देखने में आता है कि कुछ लोग शरीर से अपंग होते हैं, मगर धन-वैभव से अत्यंत खुशहाल होते हैं। कुछ लोग गरीब होते हैं मगर शरीर से तंदुरुस्त होते हैं। कुछ लोग तंदुरुस्त और धनवान होते हैं मगर चरित्र और स्वभाव से अत्यंत प्रतीत और कमीने होते हैं, ये असंगतिया आखिर क्यों है?


    अनाचार, अत्याचार, बिगाड़ बढ़ता जा रहा है:-

              आज अध्यात्म को छोड़ हम विलासिता में डूबते जा रहे हैं। एक तरफ नैतिक पतन की पराकाष्ठा, अनाचार, अत्याचार, बिगाड़ बढ़ता जा रहा है, दूसरी तरफ उत्तम और दुर्लभ मनुष्य योनि बढ़ती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि रोकने के हमारे सारे प्रयासों के बावजूद विश्व की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। जबकि प्रति वर्ष 4 से 5 करोड़ बच्चों को हम पैदा होने से पहले ही खत्म कर देते हैं। जब मनुष्य जन्म उत्तम कर्मों से मिलता है, तो हम क्यों अपनी धारणा के विपरीत जाकर जनसंख्या वृद्धि को रोकना चाहते हैं। क्या ऐसा करके हम ईश्वरीय फैसलों की अवहेलना कर जघन्य पाप के भागी नहीं बन रहे हैं? इसका हमारे पास क्या जवाब हो सकता है?      



                अगर यह मान लिया जाए कि यहां की सभी विषमताएं पूर्वकृत कर्मों का लेख है। एक मनुष्य दूसरे को इसलिए मार रहा है कि उसने पिछले जन्म में उसे मारा है। एक मनुष्य जहां इसलिए जुल्म कर रहा है कि पिछले जन्म में उस पर जुल्म किया गया है। दीन-दुखी, असहाय और लंगड़े-लूले मनुष्य अपने पूर्व जन्म के कर्मों की सजा पा रहे हैं, फिर तो या एक युक्तियुक्त स्थिति है। अगर यह मान्यता सत्य है फिर तो इस विषमता और विकृत को दूर करने के सारे प्रयास न केवल बेकार है, बल्कि प्रयास करना ही बेवकूफी है। यहां जो हो रहा है, आतंक, लूट, अनाचार, अत्याचार सब कुछ तर्कसंगत और नया संगत है।


    पिछले जन्म का बदला ले रहा है?
              यहां यह विचारणीय है कि एक मनुष्य जो इस जन्म में लाखों लोगों के कत्ल का जिम्मेदार है, पिछले जन्म में उसके साथ क्या जुर्म होगा होगा? क्या कोई विशेषज्ञ इसका पता लगा सकता है? एक वह व्यक्ति जो इस जन्म में रोज मुर्गी काटता है और पूरे जीवन में हजारों मुर्गी कटेगा, क्या वह भी मुर्गीन्यों से पिछले जन्म का बदला ले रहा है? अगर ऐसा है तो फ़िर वह क्या बुरा कर रहा है?


    पूर्वजन्म की धारणा - ईश्वर के प्रति विद्रोह:-

              पूर्वजन्म की धारणा के अनुसार तो गरीबों, बीमारों, दीन-दुखियों, अपाहिजों की सहायता करना और उन पर किसी प्रकार की सहानुभूति दिखाना न केवल अपराध है, बल्कि ईश्वर के प्रति विद्रोह है। यहां सवाल यह है कि पुनर्जन्म की धारणा में विश्वास के बावजूद हम दीन-दुखियों की मदद क्यों करते हैं? परिवार में किसी का बच्चा अपंग हो सकता है, किसी का भाई या बाप अपंग हो सकता है, किसी की बहन या पत्नी अपंग हो सकती है। क्या हमें उनकी मदद तक नहीं करनी चाहिए? अगर हम उन्हें पापी और अपराधी समझते हैं तो उनकी मदद क्यों करते हैं? क्या यह धारणा लोगों के बीच भेदभाव, घृणा व द्वेष पैदा नहीं करेगी? क्या इस धारणा के विश्वास से सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था की चुले नहीं हिल जाएगी? क्या इस धारणा से समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाएगी? पुनर्जन्म की यह धारणा न केवल बुद्धि और तर्क के सर्वथा प्रतिकूल है, बल्कि मानव स्वभाव के भी विपरीत है।


    बच्चा अपने पूर्व जन्म की बातें बता रहा है:-

              हिंदू समाज में पूर्वजन्म के कुछ किस्से भी सुनने में आते हैं, कि फलां गांव में चार-पांच वर्ष का बच्चा अपने पूर्व जन्म की बातें बता रहा है। एक मृत व्यक्ति, जिसके शरीर को भस्मीभूत कर उसके अवशेष भाग को भी गंगा में विसर्जित कर विलीन किया जा चुका हो, आवागमनीय पुनर्जन्मवादियों के अनुसार वह व्यक्ति पुनः मनुष्य रूप में इस पृथ्वी पर जन्म लेता है और 4-5 वर्ष की आयु होने पर अपने पूर्व जीवन की घटनाओं का हाल सुनाता है।



              यहां सवाल यह है कि इस प्रकार की सभी घटनाएं 4-5 वर्ष के बच्चों के साथ ही क्यों होती है? दूसरा सवाल यह है कि ऐसा करोड़ों बच्चों में 2-4 बच्चों के साथ ही क्यों होता है? सभी बच्चों के साथ क्यों नहीं होता है? तीसरा सवाल यह है कि बच्चा बड़ा होने के बाद पूर्वजन्म की ये बातें क्यों भूल जाता है, जबकि उम्र की परिपक्वता के साथ यह बातें और अधिक परिपक्व होनी चाहिए थी? हमारे पास क्या जवाब है इन सवालों का?


    अगर आत्मा ही अज्ञान से आवृत हो जाएगी तो:-

              भारतीय मत इसका उत्तर या देता है कि अज्ञान से आवृत (Covered) होने के कारण आत्मा अपना वर्तमान देखती हैं, इसलिए भूत को भूल जाती है। अगर अज्ञान का नाश हो जाए तो पूर्वजन्म का ज्ञान असंभव नहीं है। यहां सवाल यह है कि अगर आत्मा ही अज्ञान से आवृत हो जाएगी तो उसे दंड और पुरस्कार का एहसास कैसे होगा? ऐसे कर्म सिद्धांत का फिर औचित्य ही क्या? क्या कोई ऐसा ज्ञानी व्यक्ति गुजरा है, जिसकी आत्मा अज्ञान से आवृत न हुई हो और उसने वह सारी बातें हुबहू बतलाई हो जो मृत्यु के बाद उसके साथ गुजरी हो?          अगर किसी बच्चे द्वारा बताए गए पुनर्जन्म के किस्से को सच मान लिया जाए, तो फिर हमें यह भी मानना पड़ेगा कि पूर्व जन्म में जो आत्मा और चेतना उसके अंदर थी वही दोबारा नया शरीर लेकर आई है, क्योंकि कर्मों का सारा डाटा मनुष्य की आत्मा में ही जमा होता है, शरीर को तो यही भस्मीभूत कर दिया जाता है। यानि पुनर्जन्म आत्मा का हुआ है न कि शरीर का। इसलिए यह स्पष्ट है कि पूर्व जन्म के कर्मों का सारा डाटा नये बच्चे में मौजूद है। फिर तो उसे पूर्व जन्म की सारी बातें हुबहू सुना देनी चाहिए थी, मगर ऐसा नहीं होता, क्यों?


              अगर कोई बच्चा हमें बताया कि पूर्व जन्म में उसकी मृत्यु जहर द्वारा हुई थी और वह ज़हर उसके सगे भाई-भाभी ने जमीन के लालच में उसे दिया था, मगर मृत्यु को आत्महत्या का रूप देकर मामला रफा-दफा कर दिया गया था। बच्चा अपने भाई-भाभी का नाम और पता भी बताता है जो सही पाया जाता है। भाई-भाभी दोनों जिंदा है और बच्चों के साथ मौज की जिंदगी जी रहे हैं। अब क्या बच्चे के कहने से उसके भाई-भाभी को गिरफ्तार गिरफ्तार कर सजा दिलाई जानी चाहिए? क्या इस विशाल मानव सृष्टि में कभी ऐसा हुआ है? एक ऐसे विषय के मामले में जो अत्यंत गूढ़ है, क्या 4-5 साल के अबोध बच्चे की बात का विश्वास किया जाना चाहिए? यहां यह भी पैदा होता है कि क्या जन्म से ही शारीरिक रूप ही अपंग किसी बच्चे ने अपने पुनर्जन्म की कथा सुनाकर अपनी अपंगता का कारण बताया है? क्या किसी बच्चे ने कभी ये बताया कि वह पिछले जन्म में गधा था या कुत्ता था?


    आवागमनीय पुनर्जन्म - कोरा झूठ:-

              वास्तविकता तो यह है कि यह सब कोरा झूठ है। कुछ लोग आवागमनीय पुनर्जन्म को सत्य साबित करने के लिए समय-समय पर प्रोपेगेंडा करते रहते हैं। झूठ बेचने वाला आधुनिक मीडिया तुरंत वहां पहुंच जाता है और सत्य की तरह में जाए बिना ही तिल का ताड़ बनाकर प्रचार-प्रसार करने लगता है। अगर आवागमनीय सिद्धांत सही है फिर तो सभी बच्चों को अपने पूर्वजन्म की सच्चाई बतानी चाहिए थी।



              अगर आवागमनीय सिद्धांत को सत्य मान लिया जाए तो फिर यहां धर्मगत और जातिगत, भेदभाव भी असंगत और अतर्कित हो जाता है, क्योंकि एक मनुष्य जो आज हिंदू है, अगले जन्म में वह मुसलमान, बौध या इसाई हो सकता है, पाकिस्तानी, ईरानी, जापानी या अमेरिकी हो सकता है। फिर यह धर्मगत और जातिय नफरत और द्वेष क्यों?



              सुना था कि मरने के बाद इस दुनिया में कोई वापस नहीं आता और सच भी यही है फिर हम क्यों झूठे किस्से कहानी गढ़कर भोले-भाले लोगों को भ्रमित करते हैं? क्यों हम इस धारणा का गंभीरतापूर्वक विवेचन नहीं करते हैं?

    विवेक विचार प्रज्ञा:-

              आवागमनीय पुनर्जन्म की अवधारणा का तीन तत्व जीवन (Life), चेतन तत्व (Consciousness) और आत्मा तत्व के आधार पर वैज्ञानिक विश्लेषण करें, तो हम पाते हैं कि पेड़-पौधों और पशुओं में वह चेतन तत्व नहीं होता जो कर्म कराता है और कर्मफल भोगने का कारण बनता है। जिससे से कर्म लेखा तैयार होता है। मनुष्य इसीलिए तो सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। कि परम तत्व ने उसे विवेक (Wisdom) और विचार (Thinking) प्रदान किया है, जो किसी अन्य को नहीं किया है। जहां जीवन है वहां चेतना का होना अनिवार्य नहीं है। चेतना (Consciousness) और प्रज्ञा (Knowledge) वही है जहां अच्छे-बुरे कर्म है। पशुओं में नींद, भूख, भय और मैथुन आदि दैहिक क्रियाएं (Physical process) तो है, मगर विवेक संबंधी क्रियाएं (Ethical process) नहीं है। मनुष्य आत्मा में ही ज्ञानत्व, कर्तृत्व और भोक्तव्य यह तीनों निहित है। इसलिए वेद, बाइबल और कुरआन आदि पुस्तके मनुष्य जाति के लिए है न कि पशु और वनस्पति जगत के लिए। कीट-पतंगे और पशु-पक्षी केवल नैसर्गिक जीवन व्यतीत करते हैं।

              एक वृक्ष और एक पशु को यह विवेक नहीं दिया गया है कि वे इस विशाल ब्रह्मांड में अपने अस्तित्व क्या कारण तलाश करें। पशुओं के सामने न कोई अतीत होता है न कोई भविष्य। भय, भूख नींद, मैथुन आदि क्रियाओं के होते हुए भी पशु एक बेफिक्र रचना (Careless Creature) है, चेतनाहीन (In State of Stupid) कृति है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी तो मनुष्य जीवन की सामग्री मात्र है। इनकी रचना को मनुष्य योनि के पाप-पुण्य से जोड़ना नादानी की बात है।

    बकरी कसाई और चरवाहे में फर्क नहीं करती:-

              देखने और सुनने की क्षमता के बावजूद एक बकरी कसाई और चरवाहे में फर्क नहीं करती, देखने और सुनने की छमता के बावजूद एक गाय मालिक और दुश्मन के खेत में अंतर नहीं करती, इससे सुस्पष्ट है कि पशु आदि में आत्म चेतना नहीं होती। और विचार (Thinking) नहीं होता। जब पशु आदि में न विवेक है, न विचार, न कोई आचार संहित है तो फिर कर्म और कर्मफल कैसा? विचित्र विडंबना है कि हिंदू धर्म दर्शन ने पेड़-पौधों, पशुओं और मनुष्य को एक ही श्रेणी में रखा है। क्या यह अवधारणा तर्कसंगत और न्यायसंगत हो सकती है, कि एक योनि चिंतन और चेतना रखने के बावजूद चिंतनहीन और चेतना विहीन योनि में अपने कर्मों का फल भोगे गधा और विवेकहीन? कैसा अजीब न्याय है कि पाप कर्म करें मनुष्य और फल भोगे गधा और विवेकहीन वृक्ष? यहाँ यह भी विचारणीय है कि कोई मनुष्य मरने के बाद हाथी, शेर, गाय, गधा या बरगद, पीपल, आम, नीम आदि बनकर कौन सा फल भोग रहा है? इन्हें देखकर तो मनुष्य खुश होता है और शांति का अनुभव करता है। ये सब तो स्वाभाविक जीवन जी रहे हैं। इनको देख कर कौन कहेगा कि ये सब सजा भोग रहे हैं?

              यहां यह भी विचारणीय है कि दण्ड और पुरस्कार का सीधा संबंध विवेक, विचार और कर्म से है। दूसरी बात बिना पेशी, बिना गवाह, बिना सबूत, बिना प्रतिवादी कैसी अदालत, कैसा न्याय? एक व्यक्ति को बिना किसी चार्जशीट के अंधा, लंगड़ा, जड़बुद्धि बना दिया जाए या किट, कृमि, कुत्ता बना दिया जाए. यह कैसा इंसाफ, कैसा कानून? क्या इससे कोई कानून कहा जा सकता हैं? न्यायसंगत और तर्कसंगत तो यह है कि फल भागने वाले को सजा या परितोष का एहसास हो और यह तभी संभव है कि जब कर्म करने वाला उसी शरीर और उसी चेतना के साथ फल भोगे जिस, शरीर और चेतना के साथ उसने कर्म किया है।
    मनुष्य के मरने के तुरंत बाद समाप्त नहीं हो जाता

    मरने के तुरंत बाद पुरस्कार या सजा का फैसला कैसे:-

              एक तथ्य यहां यह भी विचारणीय है कि मनुष्य इस दुनिया में जो अच्छा या बुरा कर्म करता है उसका फल या प्रभाव उस मनुष्य के मरने के तुरंत बाद समाप्त नहीं हो जाता, बल्कि सदियों तक बाकी रहता है। जैसा स्कॉटलैण्ड का जेम्स वाट (1736-1819), जिसने वाष्प का इंजन बनाया, उसका लाभ पूरी मानव जाति तब तक उठाती रहेगी जब इस पृथ्वी पर मनुष्य जाति रहेगी। ठीक इसी प्रकार ऑस्ट्रिया का यौन विशेषज्ञ सिगमंड फ्रायड (1859-1819), जिसने फ्री सेक्स की वाकलत कर पूरी मानवता को नंगा और निर्लज कर दिया, उसका खामियाजा पूरी मानवता तब तक उठाती रहेगी जबतक इस पृथ्वी पर मनुष्य जाति रहेगी, इन दोनों व्यक्तियों के मरने के तुरंत बाद कैसे पुरस्कार या सजा का फैसला सुनाया जा सकते हैं, जबकि इनका कर्म लेखा (Account of deeds) अभी बंद (Close) नहीं हुआ है? जब तक इस पृथ्वी पर मनुष्य जाती है तब तक फैसला कैसे हो सकता हैं?

              उपयुक्त तथ्यों और तर्कों से सिद्ध हो जाता है कि आवागमनीय पुनर्जनम की धारणा एक अबौद्धिक और अवैज्ञानिक धारणा है। इस मिथ्या और कपोल-कल्पित मान्यता ने करोड़ों मनुष्य को जीवन के मूल उद्देश्य से भटका दिया है। यह धारणा मनुष्य जीवन का कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं करती। मनुष्य के सामने कोई उच्च लक्ष्य न हो, तो वह जाएगा कहां? हिंदू धर्मज्ञ कृपया मुझे बताएं कि एक हिंदू के जीवन जीने का अर्थ और उद्देश्य क्या है? एक हिंदू जो आंखें बंद करके जीवन जी रहा है, मरने के बाद उसका क्या होगा?

              यहां एक सवाल यह भी मन में आ रहा है कि अगर कोई मनुष्य अगले जन्म में शेर, गाय, कुत्ता बनना चाहता है तो क्या कोई ऐसी आचार संहिता (Code of Conduct) है जिस पर अमल करके वह शेर, गाय या कुत्ता बन जाए?

    विचित्र विडंबना है कि जीवन है, मगर कोई जीवनोद्देश्य नहीं:-

              विचित्र विडंबना है कि जीवन है, मगर कोई जीवनोद्देश्य (Aim of Life) नहीं है। बिना किसी जीवनोद्देश्य के साधना और साधन सब व्यर्थ हो जाता है। यात्रा में हमारे पास कितनी भी सुख-सुविधा सामग्री साधन हो, मगर यह पता न हो कि जाना कहां है? हमारी दिशा, हमारी मंजिल, हमारा गंतव्य क्या है, तो हम जाएंगे कहां? दिशा और गंतव्य निश्चित हो तभी तो गंतव्य की दिशा की तरफ चला जा सकता है। अगर दिशा का भ्रम हो तो मनुष्य कभी सही दिशा की तरफ नहीं बढ़ सकता है। एक व्यक्ति दौड़ा जा रहा है और उसे पता न हो कि किधर और कहां जाना है, तो क्या लोग उसे बेवकूफ नहीं कहेंगे?

    “मृत्यु के बाद का जीवन का विश्वास मनुष्य जीवन का एक अत्यंत निर्णायक कारक है।”
    (Belief in life after death is most decisive factor in the human life)

              हमारे जीवन में भौतिक कारणों, और अकारणों का बड़ा महत्व है। यहां किसी का विकलांग, निर्धन, रोगी अथवा स्वस्थ, सुंदर और धनी होना पिछले कर्मों का प्रतिफल नहीं है। यह विषमता भौतिक प्राकृतिक और सामाजिक असंतुलन का परिणाम है। (ब्लॉगर के तरफ से: सुख-दुख एवं किसी का धनी और गरीब होना भी परीक्षा का एक भाग है दोनों के लिए, अगर धनी व्यक्ति अपने धन पे घमंड करता है और धन का दुरुपयोग करता है, गरबों में अपने धन का 2.5 प्रतिशत ज़कात यानि दान नहीं करता, तो वह इस परीक्षा में असफ़ल हो रहा है, और यदि गरीब व्यक्ति अपने गरीबी पे सब्र नहीं कर रहा और अल्लाह पे लान-तान करता है तो वह भी असफ़ल हो रहा है, ऐसे ही अगर किसी का बच्चा अँधा, बहरा या विकलांग आदि पैदा होता है, तब भी मनुष्य को सब्र करना चाहिए क्यूंकि ये सांसारिक जीवन सिर्फ एक परीक्षा स्थल है, इसी के सन्दर्भ में कुरआन की एक आयत है “तथा हम अवश्य कुछ भय, भूख़ तथा धनों और प्राणों तथा खाद्य पदार्थों की कमी से तुम्हारी परीक्षा करेंगे और धैर्यवानों को शुभ समाचार सुना दो। जिनपर कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि हम अल्लाह के हैं और हमें उसी के पास फिर कर जाना है।” -पवित्र कुरआन 2:155-156 (सुभ समाचार यानि स्वर्ग की खुशखबरी, और वो स्वर्ग कैसा निचे उसकी कुछ व्याख्या किया गया है) जीवन से संबंधित सारे प्रश्नों के उत्तर आपको कुरआन में मिल जाएँगे (डाउनलोड करें हिंदी कुरआन PDF में मात्र 4.2 MB Link) इसी तरह किसी का गोरा या काला होना अल्लाह के के लिए कोई भेदभाव नहीं है। आपको इस्लाम में रंग भेद के खिलाफ बहुत से शिक्षाएं मिलेंगी यहाँ कुरआन की सिर्फ एक आयत पे गौर करें “हे मनुष्यो! हमने तुम्हें पैदा किया एक नर तथा नारी से से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और कबीलों  का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में, तुममें अल्लाह के समीप सबसे अधिक आदरणीय वही है, जो तुममें अल्लाह से सबसे अधिक डरता हो। वास्तव में अल्लाह सब जानने वाला है, सबसे सूचित है।” -पवित्र कुरआन 49:13, बाद में ये भी पढ़ लें: इस्लाम में है अमेरिकी रंग-भेद की समस्या का समाधान: मेलकॉम एक्स Link) कभी चेचक और पोलियो आदि बीमारियों को मनुष्य का पूर्व जन्म का फल समझा जाता था, मगर आज वैज्ञानिक प्रयोगों और प्रयासों द्वारा मनुष्य ने अब इन पर पर विजय प्राप्त कर ली है ये सब बीमारियाँ किसी पूर्वकृत योनियों के कत्कर्म या पाप कर्म के परिणाम नहीं है। यहां की विषमता को समझने के लिए हमें सृष्टिकर्ता की योजना को भी समझना होगा। ब्रह्मांड की विशालता और सूत्रता बता रही है, कि यह सृष्टि किसी तीर-तुक्के की परिणति नहीं है, इस में स्रष्टा का कोई प्रयोजन छिपा है।

    अत्याचारी व्यक्ति के कर्मों का पूर्ण विवरण:-

              न्याय के लिए यह संसार अपूर्ण है। बुद्धि की मांग है कि कोई ऐसी जगह हो जहां दुष्कर्मी और अत्याचारी व्यक्ति के कर्मों का पूर्ण विवरण मय गवाह और सबूतों के प्रस्तुत हो। और पीड़ित व्यक्ति अपनी आंखों के सामने उसे दण्ड और सज़ा भोगते देखे। वर्तमान लोक में ऐसी न्याय व्यवस्था की कतई कोई संभावना नहीं है। अतः पूर्ण और निष्पक्ष न्याय के लिए आवश्यक है कि जब संपूर्ण मानवता का कृत्य समाप्त हो जाए, तो एक नई दुनिया में हमारा दोबारा जन्म हो। न्याय के लिए वादी और प्रतिवादी दोनों का मौजूद होना अनिवार्य है। कुरआन की धारणा है कि मनुष्य मरने के के बाद कर्म के अनुसार एक नयी दुनिया में जन्नत (स्वर्ग) और दोज़ख (नरक) में जाएगा। पूरी मानवता का कृत्य समाप्त होने के बाद एक निर्णय का दिन (Day of Judgement) होगा। वहां वादी और प्रतिवादी दोनों मौजूद होंगे। यही धारणा न्यायसंगत और तर्कसंगत है। (ब्लॉगर के तरफ से: (उस दिन लोग अलग-अलग निकलेंगे, ताकि उन्हें कर्म दिखाए जाएँ। तो जिसने एक कण के बराबर भी पुण्य किया होगा उसे देख लेगा, और जिसने एक कण के बराबर भी बुरा किया होगा, उसे देख लेगा। -पवित्र कुरआन 99:6-8) (डाउनलोड करें हिंदी कुरआन PDF में मात्र 4.2 MB Link)

              हिंदू मनीषियों के पुनर्जन्म का गलत अर्थों में परिभाषित किया है। पुनर्जन्म शब्द का अर्थ अनेक जन्मों में कदापि नहीं है। पुनर्जन्म शब्द का अर्थ एक बार न्याय के दिन जन्म लेने से है।

    यह जगत एक परीक्षालय है:-

              यह जगत एक परीक्षालय (Examination World) है। यह जीवन एक अग्निपरीक्षा है। तैयारी है एक दिव्य जीवन के लिए संसाररिक उन्नति मानव जीवन का लक्ष्य नहीं है।लक्ष्य है पारलौकिक जीवन की सफलता। भौतिक सुख-सुविधा सामग्री केवल जरूरत मात्र है। यहां जब हम सब कुछ हासिल कर लेते हैं, जो हम चाहते हैं, तो हमारे मरने का वक्त करीब आ चुका होता है हम बिना किसी निर्णय, न्याय, परिणाम के यहाँ से विदा हो जाते है। धन, दौलत, बच्चे आदि सब यही रह जाता है। अगर हम यह मानते है की जो कर्म यहाँ कर रहे है उनके परिणाम स्वरुप हम जीव-जंतु, पेड़-पौधा या मनुष्य बनकर पुनः इसी लोक में आएंगे तो यकीन कीजिए! 84 लाख योनियों की यह धारणा सत्य नहीं है। सभी तथ्य, तर्क और साक्ष्य आवागमनीय पुनर्जन्म के एकदम विरुद्ध है। इस धारण को सत्य मानकर तो हम स्वयं को धोखा दे रहे हैं। हम एक लक्ष्यहीन जिंदगी जी रहे हैं। यह एक बड़ी भारी गलती (Blunder) है। हमें इस धारणा की युक्ति-युक्ता पर गहन और गंभीर चिंतन करना चाहिए। (ब्लॉगर के तरफ से: जब वह यातना देखेंगे तो कहेंगे, काश! मुझे एक बार फिर लौटकर जाना हो, तो मैं उत्तमकारों में सम्मिलित हो जाऊँ। (अल्लाह कहेगा) मेरी आयतें (कुरआन, पैगम्बर, निशानियाँ) तेरे पास आ चुकी थीं, किन्तु तूने उनको झूठलाया और घमंड किया और इनकार करनेवालों में सम्मिलित रहा। और क़ियामत (निर्णय) के दिन तुम उन लोगों को देखोगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपा है कि उनके चेहरे स्याह है। क्या अहंकारियों का ठिकाना नरक में नहीं हैं?" -पवित्र कुरआन 39:58-60, एक बार किसी मनुष्य की मृत्यु हो गई, फिर दूसरा मौका नहीं है या तो हमेशा का सुख या हमेशा लिए कष्टदायक यातना) (डाउनलोड करें हिंदी कुरआन PDF में मात्र 4.2 MB Link)

    एक ही ईश्वर: यही शाश्वत सत्य है की विश्व का नियमन करने वाली परम सत्य एक है।
    एक ही लक्ष्य: मृत्यु परम सत्य है तथा मृत्योपरांत प्रत्येक नर-नारी अपने कर्मों के लिए ईश्वर के सामने उत्तरदायी है। अतः हित इसी में है की हम अपना लक्ष्य सुनिश्चित कर लें की हम उस आने वाली जिंदगी (कब आ जाए मालूम नहीं और दूसरा मौका भी नहीं) के लिए क्या कर रहें है। हम ईश्वर चाहा व्यतीत कर रहे है या फिर मनचाहा...?


    ये तो रहा ‘सतीश चंद गुप्ता’ का लेख अब इसी संदर्भ में एक मेरा लेख भी पढ लीजिए


    मृत्यु और मरने के बाद का जीवन

    मौत करीब है<<

              मौत एक ऐसी सच्चाई है जिससे कोई भाग नहीं सकता। यह हर दिन, हर घंटा, हर लम्हा हमारे करीब होती जा रही है। सी. आई. ए. की वर्ल्ड फैक्ट बुक 2007 के अनुसार हर सेकंड में 2 व्यक्तियों की मृत्यु होती है, इसका मतलब है हर साल 57 लाख 90 हजार लोग!
              हर किसी को भाग्य के अनचाही फैसले को मानना ही पड़ता है फिर चाहे वह किसी भी उम्र, जाति या कितने ही ऊँचे सामाजिक एवं धार्मिक रुतबे वाला व्यक्ति हो।

              बड़े-बड़े राजा महाराजा, करोड़पति, ताक़तवर कहाँ गए? वो जो अपनी खूबसूरती पे नाज़ करते थे, जिन्हें लोग बहुत समझदार समझते थे वे सब कहाँ गए?
    "तुम जहाँ कही भी होंगे मौत तुम्हे आ पकड़ेगी चाहे तुम मजबूत कीलों में हो" –पवित्र कुरआन 4:78

    मौत की सत्यता<<

              मौत कोई आफत नहीं बल्कि इस दुनिया से दुसरी दुनिया में जानें का एक मध्यम हैं। मौत हमें यह दिलाती है कि हम इस बात पर विचार करें कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या हैं तथा मरने के बाद हमारे साथ क्या होगा? पवित्र कुरआन में अल्लाह कहता है कि, उसने हमें इस लिए पैदा किया कि हम सिर्फ उसी कि इबादत करें, तथा यह जीवन का परीक्षा कि कौन उसके उद्देश्य को पुरा करता हैं।
    "मैंने जिन्नात और इंसान को सिर्फ इसीलिए पैदा किया कि वे केवल मेरी इबादत करें।" –पवित्र कुरआन 51:56
    अल्लाह ने हमें इस बात से भी अवगत करा दिया कि जीवन तथा मृत्यु का उद्देश्य क्या है:
    "जिसने जिंदगी और मौत को इसलिए पैदा किया कि तुम्हारा इम्तिहान ले कि तुम में से अच्छे कर्म कौन करता है"। –पवित्र कुरआन 67:2
              मौत की तैयारी का यह अर्थ नहीं है की, कोई पहले से ही अपनी अर्थी का सामान इकठ्ठा करले बल्कि इसका अर्थ यह है, की हम इस जीवन के उद्देश्य को जाने की सिर्फ अल्लाह की इबादत की जाये (जैसा की तमाम धर्मिक किताबों में लिखा है की एक ही ईश्वर है, जिसका कोई मूर्ति नहीं कोई फ़ोटो नहीं उसके जैसा कोई नहीं इस विषय पे विस्तार से अध्ययन करने के लिए बाद में ये पोस्ट पढ़ लें Link,

              और दूसरी बात की ईश्वर के आखरी पैगम्बर मुहम्मद सल्ल० है ये भविष्यवाणी भी अक्सर धार्मिक किताबों में मिलेगी, कुछ धार्मिक किताबों में तो नाम से जैसे हिन्दू धर्म, इसाई धर्म नाम मुहम्मद, महामद सल्ल० इस विषय पर भी अलग से लेख है, बाद में ये भी पढ़ लें Link और कुछ लोगो का प्रश्न रहता है

              मुसलमान अल्लाह क्यू कहते है? ईश्वर या भगवान को तो ये जान लें की अल्लाह कोई दूसरा ईश्वर या भगवान नहीं है वही ईश्वर है जो सारे संसार का मालिक और रचयिता है जिसको अरबी भाषा में मुसलमान, अल्लाह कहते है और ये ऐसा शब्द है ईश्वर के लिए जिसके अर्थ में कोई बदलाव नहीं कर सकता)

              उस एक रचयिता की इबादत की जाए, उसके आदेशानुसार जीवन व्यतीत किया जाये तथा अच्छे कर्म किये जाएँ। इस्लाम में इबादत का अर्थ सिर्फ पूजा-पाठ नहीं बल्कि हर वह कर्म जो अल्लाह के लिए और उसके आदेशानुसार किया जाए, एक इबादत है जिसका इन्सान को फल मिलेगा।

    मृत्यु के क्षण<<

              हर रोज़ हम मौत की कितनी ही मिसालों को देखते है। हमने लोगों को बड़ी आसानी से बिना दर्द या कष्ट के मरते देखा है, लेकिन यह हकीकत नहीं है जब एक इन्सान मरता है और आत्मा शरीर से निकलती है तब हो सकता है, की ऊपर से शरीर किस स्थिति से आत्मा की दशा का अंदाज़ा न लग सके। आत्मा की शांति या तकलीफ इस बात पर निर्भर करती है की जीवन में उसके कर्म कैसे थे, फिर चाहे मरने वाला किसी भी कारण से मरा हो, अगर किसी किसी धर्मनिष्ट इन्सान को मौत की तकलीफ होती है तो उसके दरजात स्वर्ग में बुलंद कर दिए जाते है या उसके किये गये पापों का कफ्फारा हो जाता है और उसे बख्स दिया जाता है।

    एक उदाहरण<<

              उदाहरण के तौर पर दो व्यक्ति किसी ऐसे स्थान की जाने की टिकिट निकालते है जहां वे पहले कभी न गये हो और जहाँ से उनको वापिस आना भी न हो। अब उनमे से पहले पहले व्यक्ति ने उस स्थान के बारे में वहाँ के रहन-सहन, क़ायदे-कानून एवं भाषा की सारी जानकारी प्राप्त कर रखी है, तथा वहाँ की मुद्रा एवं जरूरत के सामान रख लिए हों, और जब उसके जाने का समय आ जाता है तो बिना किसी दुविधा के वह सफ़र के लिए तैयार हो जाता है, वह बिलकुल सुरक्षित एवं सहज महसूस करता है क्योंकि उसने सारी तैयारीयां की होती है।

              उसके उलट, दूसरा व्यक्ति लापरवाही से जीवन गुजारता रहता है कोई तैयारी नहीं यहाँ तक की जाने का समय आ जाता है। वह उस अनजाने गंतव्य पर भ्रमित एवं डर की अवस्था में पहुँचता है। उसकी लापरवाही उसे एक भयानक हालात से दो-चार करवाती है और उसे समझ में आता है की वह सारी चीज़े जो वह यहाँ लेकर आया है किसी काम की नहीं है।

              "यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मौत आने लगती है तो कहता है की मेरे रब! मुझे वापस लौटा दे। कि अपने छोड़ी हुई दुनिया में जाकर नेक काम करूं।" –पवित्र कुरआन 23:99-100

              और जरा सोचें उन लोगों के बारे में कि जो नरक का ईंधन बन गये और तब उनसे पूछा जायेगा की किस चीज़ ने तुम्हे यहाँ तक पहुँचाया तो वो कहेंगे:

              "वे जवाब देंगे की हम नमाज़ी न थे। न भूखों को खाना खिलते थे, और हम बेकार बात करने वालों के साथ बेकार बात में व्यस्त रहा करते थे। और हम बदले के दिन को झुठलाते थे। यहाँ तक की हमारी मौत आ गयी।" -पवित्र कुरआन 74:43-47

              हम सभी को मौत से मुलाकात का समय तय है, और हम सभी को एक अंजान गंतव्य तक सफ़र करना है। जरा खुद से पूछें- क्या आपने उस सफर की तैयारी कर ली?

    जीवन का उद्देश्य<<

              "क्या तुमने समझ रखा है कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और तुम हमारी ओर फिर नहीं लाये जाओगे? पवित्र कुरआन 23:115"
              जीवन एक इम्तिहान है जिसका अंत मौत के रूप में होता है, परन्तु इससे किसी के अस्तित्व का अंत नहीं होता। मौत के आते ही अच्छे कर्म करने के सारे दरवाजे बंद हो जाते है। तब पछताने का मौका भी नहीं मिलेगा, और हमारे सारे हिसाब-किताब हमारी आस्था एवं कर्मों के अनुसार होगा।

              इन्सान की ज़िन्दगी दो हिस्सों में बटी हुई है, एक इस दुनिया की संक्षिप्त सी ज़िन्दगी और दुसरे बाद का अनन्त जीवन। किसी कम बुद्धि का इन्सान भी इस बात को स्वीकार करेगा की मृत्यु के पश्चात् के अनन्त जीवन का आनन्द इस दुनिया की छोटी सी ज़िन्दगी के सिमित सुख से कहीं बेहतर है।

              अल्लाह ने इन्सान को पैदा किया और उसे उसके कर्मो का ज़िम्मेदार बनाया क्यूंकि उसे सही और गलत में फर्क करने की समझ और चुनाव की स्वतंत्रता दी। अगर मृत्यु के पश्चात् किसी जीवन का अस्तित्व न हो तो अच्छे-बुरे कर्मो एवं उसके अनुसार इंसाफ प्राप्त होने का कोई औचित्य नही रह जाता। अतः इंसाफ का यह तकाज़ा है की निर्णय का एक दिन तय हो जहाँ हर जीव को कर्मों के अनुसार हिसाब देना होगा।

              "क्या हम आज्ञाकारियों को पापियों के समान कर देंगे? तुम्हे क्या हो गया है कैसे फैसले कर रहे हो?"  -पवित्र कुरआन 74:43-47

    निर्णय का दिन<<

    इस दुनिया में किये जाने वाले हर कर्म का पूरा-पूरा ब्योरा रखा जा रहा है, जैसा की अल्लाह ने कहा है:

              "और कर्म लेख (सामने) रख दिये जायेंगे, तो तुम अपराधियों को देखोगे कि उससे डर रहे होंगे, जो कुछ उसमें (अंकित) है तथा कहेंगे कि हाय हमारा विनाश! ये कैसी पुस्तक है, जिसने किसी छोटे और बड़े कर्म को नहीं छोड़ा है, परन्तु उसे अंकित कर रखा है? और जो कर्म उन्होंने किये हैं, उन्हें वह सामने पायेंगे और तेरा पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा। -पवित्र कुरआन 18:49"
              हमारे कर्मो के इतने सटीक रिकार्ड पर अचंभित हो जायेंगे, हमें उन बातों को याद दिलाया जायेगा जिन्हें हम बिलकुल भूल चुके होंगे। अल्लाह कहता है:

              "जिस दिन कि अल्लाह उन सबको (मृत्यु के पश्चात्) उठा खड़ा करेगा फिर जो कुछ उन्होंने किया है उसे सूचित कर देगा। अल्लाह ने उन्हें गिन रखा है, और यह उसे भूल गए। और अल्लाह हर चीज़ से अवगत है।" -पवित्र कुरआन 58:6
              इस बात पर संजीदगी से सोचें तो शर्म आएगी की हमारे कर्म को लिखा जा रहा है और एक दिन आएगा जब अल्लाह के सामने उन्हें हमारे खिलाफ पेश किया जाएगा।

              वे लोग जो इन्सान के दोबारा जीवित किये जाने और अल्लाह द्वारा उनके हिसाब-किताब का इन्कार करते हैं, उनके इस मनगढंत सोच के बारे में कुरआन कहता है:

              "और उसने हमारे लिए मिसाल बयान की और अपनी मूल पैदाइश को भूल गया, कहने लगा की इन सड़ी-गली हड्डीयों को कौन जिंदा कर सकता है? कह दीजिए की वही जिंदा करेगा जिसने उन्हें पहली बार पैदा किया, जो सब प्रकार की पैदाइश को अच्छी तरह जानने वाला है।" -पवित्र कुरआन 36:78-79

    स्वर्ग और नरक<<

    जो सिर्फ एक ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, किसी को साझी नहीं बनाते तथा अच्छे कर्म करते है उनको बदले में स्वर्ग से पुरस्कृत किया जायेगा।

              "बेशक जन्नत वाले लोग आज के दिन अपने (मनोरंजन) कामों में व्यस्त ख़ुश और आनंदित है। वह और उनकी पत्नियां छाओं में राजगद्दी पर तकिया लगाये बैठे होंगे। उन के लिए जन्नत में हर तरह के मेवे होंगे और दुसरे भी जो कुछ वे मांगेंगे।" -पवित्र कुरआन 36:55-57
    ईश्वर के अंतिम पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल० से वर्णित है की अल्लाह ने कहा है:

              "मैंने अपने नेक बन्दों के लिए ऐसी चीजें बनाई हैं कि जिन्हें किसी आँख ने न देखा, न किसी कान ने सुना है और न ही किसी दिल ने उसकी कल्पना की है।" -बुखारी व मुस्लिम
    इसके विपरीत जो लोग अल्लाह के साथ दूसरों को साझी ठहराते हैं, उनसे कहा जाएगा;

              "यही वह नर्क है जिसका तुम्हें वादा किया जाता था। अपने कुफ्र का बदला हासिल करने के लिए आज उसमें दाखिल हो जाओ" -पवित्र कुरआन 36:63-64
    नास्तिकों के लिए अत्यंत ही यातना दायक दण्ड दिया जाएगा:

              "बेशक नरक घात में है, उदंडियों की जगह वही है। उसमें वे कई युग (और सदियों) तक पड़े रहेंगे। ना कभी उसमे ठंड का मजा चखेंगे ना पानी का। सिवाय गर्म पानी और बहती हुई पिप के। (उन को) पूरी तरह से बदला मिलेगा। उन्हें तो हिसाब की उम्मीद ही न थी। वे बेबाकी से हमारी आयतों को झूठलाते थे। हमने हर बात को लिखकर सुरक्षित (महफूज) रखा है। अब तुम अपने किए का मजा चखो, हम तुम्हारा अज़ाब ही बढ़ाते जाएंगे।" -पवित्र कुरआन 78:21-30

    निष्कर्ष<<

              "हे मनुष्य! किस चीज ने तुम्हें धोखे में डाल रखा है अपने उदार रब के बारे में। जिसने तुझे बनाने का निश्चय किया, तो तुझे ठीक-ठीक और संतुलित बनाया? फिर जिस प्रकार के रूप में चाहा उसने तुझे जोड़कर तैयार किया कुछ नहीं, तुम तो बदला किए जाने को झूठलाते हो।” पवित्र कुरआन 82:6-9
              "बेशक नेक लोग (जन्नत के ऐशो आराम और) नेमतों से फायदे उठाने वाले होंगे। और यकीनी तौर से बुरे लोग जहन्नम में होंगे।" -पवित्र कुरआन 82:13-14
              मौत तो अटल है। हमारे इस जीवन का उद्देश्य सिर्फ एक सच्चे ईश्वर की इबादत करना, अच्छे कर्म करना तथा जिन कामों को वर्जित किया गया है उनसे बचना है। हमारे भाग्य का फैसला हमारे कर्मों के अनुसार होगा, तो आप यह हम पर निर्भर है कि हम इस जीवन में दिए गए अवसर का सही इस्तेमाल करके अच्छे कर्मों के साथ स्वर्ग में जगह बनाते हैं या अपनी इच्छाओं के दास बनकर गलत आचरण के साथ नरक के भागी बनते हैं।
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    https://towardsmukti.blogspot.com/2020/07/best-logical-and-scientific-religion-in-the-world-in-Hindi.html

    इस्लाम की विशेषताएं: लेखक राजेन्द्र नारायण लाल
    https://towardsmukti.blogspot.com/2020/06/attributes-of-islam-in-hindi.html

    इस्लाम में है अमेरिकी रंग-भेद की समस्या का समाधान: मेलकॉम एक्स
    https://towardsmukti.blogspot.com/2020/06/Malcolm-X.html

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