Life of Hazrat Muhammad in Hindi ﷺ | पैगम्बर मुहम्मद की जीवनी ﷺ
Who was Muhammad ﷺ in hindi | पैगंबर मुहम्मद कौन थे? ﷺ
Paigambar Muhammad Sahab in hindi ﷺ| पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षाएं ﷺ
मैंने जब पैगम्बर मुहम्मद ﷺ के बारे में लिखने का इरादा किया तो पहले तो मुझे संकोच हुआ, क्योंकि यह एक ऐसे धर्म के बारे में लिखने का मामला था जिसका मैं अनुयायी नहीं हूँ और यह एक नाज़ुक मामला भी है, क्योंकि दुनिया में विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोग पाए जाते हैं और एक धर्म के अनुयायी भी परस्पर विरोधी मतों (School of Thoughts) और फिरकों में बंटे रहते हैं।
MUHAMMAD ﷺ The Prophet of Islam
(साभार-पुस्तक: इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ﷺ)
by: K. S. Ramakrishna Rao
(लेखक: प्रोफेसर के.एस.रामाकृष्णा राव)
Professor of Philosophy (Emeritus)
University of Mysore, India.
(साभार-पुस्तक: इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद ﷺ)
by: K. S. Ramakrishna Rao
(लेखक: प्रोफेसर के.एस.रामाकृष्णा राव)
Professor of Philosophy (Emeritus)
University of Mysore, India.
Muhammad Sahab in Hindi - Teachings of Mohammad SAW Hindi हजरत मुहम्मद (सल्ल.)
मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान में इतिहासकारों के अनुसार 20 अप्रैल 571 ई. में हुआ। ‘मुहम्मद’ (सल्ल.) का अर्थ होता है ‘जिस की अत्यन्त प्रशंसा (सबसे ज़्यादा तारीफ) की गई हो।’ मेरी नजर में आप अरब के सपूतों में महाप्रज्ञ (सबसे ज़्यादा जानने वाले) और सबसे उच्च बुद्धि के व्यक्ति हैं। क्या आपसे पहले और क्या आप के बाद, इस लाल रेतीले अगम रेगिस्तान में जन्मे सभी कवियों और शासकों की अपेक्षा आप का प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है। जब आप पैदा हुये अरब उपमहाद्वीप केवल एक सूना रेगिस्तान था। मुहम्मद (सल्ल.) की सशक्त आत्मा ने इस सूने रेगिस्तान से एक नए संसार का निर्माण किया, एक नए जीवन का, एक नई संस्कृति और नई सभ्यता का। आपके द्वारा एक ऐसे नये राज्य की स्थापना हुई, जो मराकश से ले कर इंडीज तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों-एशिया, अफरीका, और यूरोप के विचार और जीवन पर अपना अभूतपूर्व प्रभाव डाला।
पैगम्बर (सल्ल.) का ऐतिहासिक व्यक्तित्व
मेरे लेख का विषय एक विशेष धर्म के सिद्धान्तों से है। वह धर्म ऐतिहासिक है और उसके पैगम्बर (सल्ल.) का व्यक्तित्व भी ऐतिहासिक है। यहाँ तक कि सर विलियम म्यूर जैसा इस्लाम विरोधी आलोचक भी कुरआन के बारे में कहता है, ‘‘शायद संसार में (कुरआन के अतिरिक्त) कोई अन्य पुस्तक ऐसी नहीं है, जो बारह शताब्दियों तक अपने विशुद्ध मूल के साथ इस प्रकार सुरक्षित हो।’’ यहाॅ मैं इसमें इतना और बढ़ा सकता हूँ कि पैगम्बर मुहम्मद भी एक ऐसे अकेले ऐतिहासिक महापुरुष हैं, जिनके जीवन की एक-एक घटना को बड़ी सावधनी के साथ बिल्कुल शुद्ध रूप में बारीक से बारीक विवरण के साथ आनेवाली नस्लों के लिए सुरक्षित कर लिया गया है। उनका जीवन और उनके कारनामे रहस्य के परदों में छुपे हुए नहीं हैं। उनके बारे में सही-सही जानकारी प्राप्त करने के लिए किसी को सिर खपाने और भटकने की जरूरत नहीं। सत्य रूपी मोती प्राप्त करने के लिए ढेर सारी रास से भूसा उड़ाकर चन्द दाने प्राप्त करने जैसे कठिन परिश्रम की ज़रूरत नहीं है।
पूर्वकालीन भ्रामक चित्रण
आत्मसंयम एवं अनुशासन
एक कबीले के मेहमान का ऊँट दूसरे कबीले की चरागाह में गलती से चले जाने की छोटी-सी घटना से उत्तेजित होकर जो अरब चालीस वर्ष तक ऐसे भयानक रूप से लड़ते रहे थे। कि दोनों पक्षों के कोई सत्तर हजार आदमी मारे गए, और दोनों कबीलों के पूर्ण विनाश का भय पैदा हो गया था, उस उग्र-क्रोधातुर और लड़ाकू कौम को इस्लाम के पैगम्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे युद्ध के मैदान में भी नमाज़ अदा करते थे।
प्रतिरक्षात्मक युद्ध
विरोधियों से समझौते और मेल-मिलाप के लिए आपने बार-बार प्रयास किए, लेकिन जब सभी प्रयास बिल्कुल विफल हो गए और हालात ऐसे पैदा हो गए कि आपको केवल अपने बचाव के लिए लड़ाई के मैदान में आना पड़ा तो आपने रणनीति को बिल्कुल ही एक नया रूप दिया। आपके जीवन-काल में जितनी भी लड़ाइयाँ हुईं-यहाँ तक कि पूरा अरब आपके अधिकार-क्षेत्र में आ गया- उन लड़ाइयों में काम आनेवाली इंसानी जानों की संख्या चन्द सौ से अधिक नहीं है। आपने बर्बर अरबों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना यानी नमाज की शिक्षा दी, अकेले-अकेले अदा करने की नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से अदा करने की, यहाँ तक कि युद्ध-विभीषिका के दौरान भी। नमाज का निश्चित समय आने पर- और यह दिन में पाँच बार आता है- सामूहिक नमाज (नमाज जमाअत के साथ) का परित्याग करना तो दूर उसे स्थगित भी नहीं किया जा सकता। एक समूह अपने खुदा के आगे सिर झुकाने में, जबकि दूसरा शत्रु से जूझने में व्यस्त रहता। तब पहला समूह नमाज अदा कर चुकता तो वह दूसरे का स्थन ले लेता और दूसरा समूह खुदा के सामने झुक जाता।
युद्ध क्षेत्र में भी मानव-मूल्यों का सम्मान
बर्बरता के युग में मानवता का विस्तार रणभूमि तक किया गया। कड़े आदेश दिए गए कि न तो लाशों के अंग-भंग किए जाए और न किसी को धोखा दिया जाए और न विश्वासघात किया जाए और न गबन किया जाए और न बच्चों, औरतों या बूढ़ों को कत्ल किया जाए, और न खजूरों और दूसरे फलदार पेड़ों को काटा या जलाया जाए और न संसार-त्यागी सन्तों और उन लोगों को छेड़ा जाए जो इबादत में लगे हों। अपने कट्टर से कट्टर दुश्मनों के साथ खुद पैगम्बर साहब का व्यवहार आपके अनुयायियों के लिये एक उत्तम आदर्श था। मक्का पर अपनी विजय के समय आप अपनी अधिकार - शक्ति की पराकाष्ठा पर आसीन थे। वह नगर जिसने आपको और आपके साथियों को सताया और तकलीफें दीं, जिसने आपको और आपके साथियों को देश निकाला दिया और जिसने आपको बुरी तरह सताया और बायकाट किया, हालाँकि आप दो सौ मील से अधिक दूरी पर पनाह लिए हुए थे, वह नगर आज आपके कदमों में पड़ा है। युद्ध के नियमों के अनुसार आप और आपके साथियों के साथ क्रूरता का जो व्यवहार किया उसका बदला लेने का आपको पूरा हक हासिल था। लेकिन आपने इस नगरवालों के साथ कैसा व्यवहार किया? हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का हृदय प्रेम और करूणा से छलक पड़ा। आप ने एलान किया--- ‘‘आज तुम पर कोई इलज़ाम नहीं और तुम सब आज़ाद हो।’’
कट्टर शत्रुओं को भी क्षमादान
आत्म-रक्षा में युद्ध की अनुमति देने के मुख्य लक्ष्यों में से एक यह भी था कि मानव को एकता के सूत्र में पिरोया जाए। अतः अब यह लक्ष्य पूरा हो गया तो बदतरीन दुश्मनों को भी माफ कर दिया गया। यहाँ तक कि उन लोगों को भी माफ कर दिया गया, जिन्होंने आपके चहेते चचा को कत्ल करके उनके शव को विकृत किया (नाक, कान काट लिया) और पेट चीरकर कलेजा निकालकर चबाया।
सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देनेवाले ईशदूत
सार्वभौमिक भाईचारे का नियम और मानव-समानता का सिद्धान्त, जिसका एलान आपने किया, वह उस महान योगदान का परिचायक है जो हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने मानवता के सामाजिक उत्थान के लिए दिया। यों तो सभी बड़े धर्मों ने एक ही सिद्धान्त का प्रचार किया है, लेकिन इस्लाम के पैगम्बर ने सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप देकर पेश किया। इस योगदान का मूल्य शायद उस समय पूरी तरह स्वीकार किया जा सकेगा, जब अंतर्राष्ट्रीय चेतना जाग जाएगी, जातिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह पूरी तरह मिट जाएँगे और मानव भाईचारे की एक मज़बूत धारणा वास्तविकता बनकर सामने आएगी।
अल्लाह के समक्ष रंक और राजा सब एक समान
इस्लाम के इस पहलू पर विचार व्यक्त करते हुए सरोजनी नायडू कहती हैं- ‘‘यह पहला धर्म था जिसने जम्हूरियत (लोकतंत्र) की शिक्षा दी और उसे एक व्यावहारिक रूप दिया। क्योंकि जब मीनारों से अजान दी जाती है और इबादत करने वाले मस्जिदों में जमा होते हैं तो इस्लाम की जम्हूरियत (जनतंत्र) एक दिन में पाँच बार साकार होती है, ‘अल्लाहु अकबर’ यानी ‘‘ अल्लाह सबसे महान है।’’ भारत की महान कवियत्री अपनी बात जारी रखते हुए कहती हैं-‘‘मैं इस्लाम की इस अविभाज्य एकता को देख कर बहुत प्रभावित हुई हूँ, जो लोगों को सहज रूप में एक-दूसरे का भाई बना देती है। जब आप एक मिस्री, एक अलजीरियाई, एक हिन्दूस्तानी और एक तुर्क (मुसलमान) से लंदन में मिलते हैं तो आप महसूस करेंगे कि उनकी निगाह में इस चीज का कोई महत्त्व नहीं है कि एक का संबंध मिस्र से है और एक का वतन हिन्दुस्तान आदि है।’’
इंसानी भाईचारा और इस्लाम
महात्मा गाँधी अपनी अद्भूत शैली में कहते हैं- ‘‘कहा जाता है कि यूरोप वाले दक्षिण अफ्रीका में इस्लाम के प्रसार से भयभीत हैं, उस इस्लाम से जिसने स्पेन को सभ्य बनाया, उस इस्लाम से जिसने मराकश तक रोशनी पहुँचाई और संसार को भाईचारे की इंजील पढ़ाई। दक्षिण अफ्रीका के यूरोपियन इस्लाम के फैलाव से बस इसलिए भयभीत हैं कि उनके अनुयायी गोरों के साथ कहीं समानता की माँग न कर बैठें। अगर ऐसा है तो उनका डरना ठीक ही है। यदि भाईचारा एक पाप है, यदि काली नस्लों की गोरों से बराबरी ही वह चीज है, जिससे वे डर रहे हैं, तो फिर (इस्लाम के प्रसार से) उनके डरने का कारण भी समझ में आ जाता है।’’
"ऐ लोगों! तुम्हारा रब एक है और तुम्हारा बाप(यानी आदम अलै.) भी एक है। बेशक कोई अरब किसी गैर अरब से बड़ा नहीं और ना कोई गैर अरब किसी अरब से बड़ा है और ना कोई गोरा किसी काले से बेहतर है और ना कोई काला किसी गोरे से बेहतर है ; सिवाय तक़वे के(यानी अल्लाह से डरने वाला ही अल्लाह की नजर में मर्तबे में बड़ा और बेहतर है)" - पैगम्बर मुहम्मद सल्ल०
दलीलें: ◆मुसनद अहमद 22978 और ◆सिलसिला सहीहा 6/199हज मानव-समानता का एक जीवन्त प्रमाण
दुनिया हर साल हज के मौके पर रंग, नस्ल और जाति आदि के भेदभाव से मुक्त इस्लाम के चमत्कारपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय भव्य प्रदर्शन को देखती है। यूरोपवासी ही नहीं, बल्कि अफ्रीकी, फारसी, भारतीय, चीनी आदि सभी मक्का में एक ही दिव्य परिवार के सदस्यों के रूप में एकत्र होते हैं, सभी का लिबास एक जैसा होता है। हर आदमी बिना सिली दो सफेद चादरों में होता है, एक कमर पर बंधी होती है तथा दूसरी कंधों पर पड़ी हुई। सब के सिर खुले हुए होते हैं। किसी दिखावे या बनावट का प्रदर्शन नहीं होता। लोगों की जुबान पर ये शब्द होते हैं-
Labbaik Allahumma Labbaik.k~ Labbaik, La Shareek Laka, Labbaik.k~ Innal Hamdah, Wan Nematah, Laka wal Mulk, La Shareek Laka Labbaik.
‘‘मैं हाजिर हूँ, ऐ खुदा मैं तेरी आज्ञा के पालन के लिए हाजिर हूँ, तू एक है और तेरा कोई शरीक नहीं।’’
इस प्रकार कोई ऐसी चीज बाकी नहीं रहती, जिसके कारण किसी को बड़ा कहा जाए, किसी को छोटा। और हर हाजी इस्लाम के अन्तर्राष्ट्रीय महत्व का प्रभाव लिए घर वापस लौटता है। प्रोफसर हर्गरोन्ज के शब्दों में- ‘‘पैगम्बरे-इस्लाम द्वारा स्थापित राष्ट्रसंघ ने अन्तर्राष्ट्रीय एकता और मानव भ्रातृत्व के नियमों को ऐसे सार्वभौमिक आधारों पर स्थापित किया है जो अन्य राष्ट्रों को मार्ग दिखाते रहेंगे।’’ वह आगे लिखता है- ‘‘वास्तविकता यह है कि राष्ट्रसंघ की धारणा को वास्तविक रूप देने के लिए इस्लाम का जो कारनामा है, कोई भी अन्य राष्ट्र उसकी मिसाल पेश नहीं कर सकता।’’
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इस्लाम सम्पूर्ण संसार के लिए एक प्रकाशस्तंभ
इस्लाम के पैगम्बर ने लोकतान्त्रिक शासन-प्रणाली को उसके उत्कृष्टतम रूप में स्थापित किया। खलीफा उमर (रजि़) और खलीफा अली (रजि़) (पैगमम्बर इस्लाम के दामाद), खलीफा मन्सूर, अब्बास (खलीफा मामून के बेटे) और कई दूसरे खलीफा और मुस्लिम सुल्तानों को एक साधारण व्यक्ति की तरह इस्लामी अदालतों में जज के सामने पेश होना पड़ा। हम सब जानते हैं कि काले नीग्रो लोगों के साथ आज भी ‘सभ्य!’ सफेद रंगवाले कैसा व्यवहार करते है? फिर आप आज से चौदह शताब्दी पूर्व इस्लाम के पैगम्बर के समय के काले नीग्रो (बिलाल रजि़) के बारे में अन्दाज़ा कीजिए। इस्लाम के आरम्भिक काल में नमाज के लिए अज़ान देने की सेवा को अत्यन्त आदरणीय व सम्मानजनक पद समझा जाता था, और यह आदर इस गुलाम नीग्रो (बिलाल रजि़) को प्रदान किया गया था। मक्का पर विजय के बाद उनको हुक्म दिया गया कि नमाज के लिए अजान दें और यह काले रंग और मोटे होंठों वाला नीग्रो (बिलाल रजि़) गुलाम इस्लामी जगत् के सब से पवित्र और ऐतिहासिक भवन, पवित्र काबा की छत पर अजान देने के लिए चढ़ गया। उस समय कुछ अभिमानी अरब चिल्ला् उठे, ‘‘आह, बुरा हो इसका, यह काला हब्शी (बिलाल रजि़) अज़ान के लिए पवित्र काबा की छत पर चढ़ गया है।’’ शायद यही नस्ली गर्व और पूर्वाग्रह था जिसके जवाब में आप (सल्ल.) ने एक भाषण (खुत्बा) दिया। वास्तव में इन दोनों चीजों को जड़-बुनियाद से खत्म करना आपके लक्ष्य में से था। अपने भाषण में आपने फरमाया- ‘‘सारी प्रशंसा और शुक्र अल्लाह के लिए है, जिसने हमें अज्ञानकाल के अभिमान और अन्य बुराइयों से छुटकारा दिया।
ऐ लोगो, याद रखो कि सारी मानव-जाति केवल दो श्रेणियों में बँटी हैः एक धर्मनिष्ठ अल्लाह से डरने वाले लोग जो कि अल्लाह की दृष्टि में सम्मानित हैं। दूसरे उल्लंघनकारी, अत्याचारी, अपराधी और कठोर हृदय लोग हैं जो खुदा की निगाह में गिरे हुए और तिरस्कृत हैं। अन्यथा सभी लोग एक आदम की औलाद हैं और अल्लाह ने आदम को मिट्टी से पैदा किया था।’’ इसी की पुष्टि कुरआन में इन शब्दों में की गई है-‘‘ऐ लोगो ! हमने तुमको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारी विभिन्न जातियाँ और वंश बनाए ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, निस्सन्देह अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अधिक सम्मानित वह है जो (अल्लाह से) सबसे ज्यादा डरनेवाला है। निस्सन्देह अल्लाह खूब जाननेवाला और पूरी तरह खबर रखनेवाला है।’’ (कुरआन,49/13)
महान परिवर्तन
इस प्रकार पैगम्बरे - इस्लाम हृदयो में ऐसा ज़बरदस्त परिवर्तन करने में सफल हो गए कि सबसे पवित्र और सम्मानित समझे जानेवाले अरब खानदानों के लोगों ने भी इस नीग्रो गुलाम (बिलाल रजि़) की जीवन - संगिनी बनाने के लिए अपनी बेटियों से विवाह करने का प्रस्ताव किया। इस्लाम के दूसरे खलीफा और मुसलमानों के अमीर (सरदार) जो इतिहास में उमर (रजि़) महान (फारूके आज़म) के नाम से प्रसिद्ध हैं, इस नीग्रो को देखते ही उनका स्वागत करते, और कहते ‘‘हमारे बड़े, हमारे सरदार आ गए।’’ धरती पर उस समय की सबसे अधिक स्वाभिमानी कौम, अरबों में कुरआन और पैगम्बर मुहम्मद ने कितना महान परिवर्तन कर दिया था। यही कारण है कि जर्मनी के एक बहुत बड़े कवि - शायर गोयटे ने पवित्र कुरआन के बारे में अपने उद्गार प्रकट करते हुए एलान किया है-‘‘यह पुस्तक हर युग में लोगों पर अपना अत्यधिक प्रभाव डालती रहेगी।’’ इसी कारण जार्ज बर्नाड शा का भी कहना है- ‘‘अगर अगले सौ सालों में इंग्लैंड ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप पर किसी धर्म के शासन करने की संभावना है तो वह इस्लाम है।’’
इस्लाम नारी-उद्धारक
इस्लाम की यह लोकतांत्रिक विशेषता ही है कि, उसने स्त्री को पुरुष की दासता से आजादी दिलाई। सर चाल्र्स ई.ए. हेमिल्टन ने कहा है- ‘‘इस्लाम की शिक्षा यह है कि मानव अपने स्वभाव की दृष्टि से बेगुनाह है। वह सिखाता है कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही तत्व से पैदा हुए, दोनों में एक ही आत्मा है और दोनों में इसकी समान रूप से क्षमता पाई जाती कि वे मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक दृष्टि से उन्नति कर सकें।’’
स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार
अरबों में यह परम्परा सुदृढ़ रूप से पाई जाती थी कि, विरासत का अधिकारी तन्हा वही हो सकता जो बरछा और तलवार चलाने में सिद्धहस्त हो। लेकिन इस्लाम अबला का रक्षक बनकर आया और उसने औरत को पैतृक विरासत में हिस्सेदार बनाया। उसने औरतों को आज से सदियों पहले सम्पत्ति में मिल्कियत का अधिकार दिया। उसके कहीं बारह सदियों बाद 1881 ई. में उस इंग्लैंड ने, जो लोकतंत्र का गहवारा समझा जाता है, इस्लाम के इस सिद्धान्त को अपनाया और उसके लिए ‘दि मैरीड वीमन्स एक्ट’ (विवाहित स्त्रियों का अधिनियम) नामक कानून पास हुआ। लेकिन इस घटना से बारह सदी पहले पैगम्बरे-इस्लाम यह घोषणा कर चुके थे- ‘‘औरत-मर्द युग्म में औरतें मर्दों का दूसरा हिस्सा हैं। औरतों के अधिकार का आदर होना चाहिए।’’
‘‘इस का ध्यान रहे कि औरतें अपने निश्चित अधिकार प्राप्त कर पा रही हैं (या नहीं)।’’ (अल-अमीन)
राजेंद्र नारायण लाल "इस्लाम की विशेषताएं" में लिखते है: "स्त्रियों को इस्लाम का कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने निर्दोष स्त्रियों पर दोषारोपण को वैधानिक अपराध ठहराया।"
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सुनहरे साधन
प्रोफसर मेसिंगनन के अनुसार ‘इस्लाम दो प्रतिकूल अतिशयों के बीच सन्तुलन (मध्य मार्ग) स्थापित करता है और चरित्र-निर्माण का, जो कि सभ्यता की बुनियाद है, सदैव ध्यान में रखता है।’ इस उद्देश्य को प्राप्त करने और समाज-विरोधी तत्वों पर काबू पाने के लिए इस्लाम अपने विरासत के कानून और संगठित एवं अनिवार्य ज़कात की व्यवस्था से काम लेता है। और एकाधिकार (इजारादारी), सूदखोरी, अप्राप्त आमदनियों व लाभों को पहले ही निश्चित कर लेने, मंडियों पर कब्जा कर लेने, जखीरा अन्दोजी (Hording) बाजार का सारा सामान खरीदकर कीमतें बढ़ाने के लिए कृत्रिम अभाव पैदा करना, इन सब कामों को इस्लाम ने अवैध घोषित किया है। इस्लाम में जुआ भी अवैध है। जबकि विधवा का पुनर्विवाह, शिक्षा-संस्थाओं, इबादतगाहों तथा चिकित्सालयों की सहायता करने, कुएँ खोदने, यतीमखाने स्थापित करने को पुण्यतम काम घोषित किया । कहा जाता है कि यतीमखानों की स्थापना का आरम्भ पैगम्बरे-इस्लाम की शिक्षा से ही हुआ। आज का संसार अपने यतीमखानों की स्थापना के लिए उसी पैगम्बर का आभारी है, जो कि खुद यतीम था। कारलायल पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) के बारे में अपने उद्गाार प्रकट करते हुए कहता है-‘‘ ये सब भलाईयाँ बताती हैं कि प्रकृति की गोद में पले-बढ़े मरुस्थलीय पुत्र के हृदय में, मानवता, दया और समता के भाव का नैसर्गिक वास था।’’
एक इतिहासकार का कथन है कि किसी महान व्यक्ति की परख तीन बातों से की जा सकती है-
1.क्या उसके समकालीन लोगों ने उसे साहसी, तेजस्वी और सच्चे आचरण का पाया?
2. क्या उसने अपने युग के स्तरों से ऊँचा उठने में उल्लेखनीय महानता का परिचय दिया?
3. क्या उसने सामान्यतः पूरे संसार के लिए अपने पीछे कोई स्थाई धरोहर छोड़ी?
इस सूची को और लम्बा किया जा सकता है, लेकिन जहाँ तक पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) का संबंध है वे जाँच की इन तीनों कसौटियों पर पूर्णतः खरे उतरते हैं। अन्तिम दो बातों के संबंध में कुछ प्रमाणों का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है। इन तीन कसौटियों में पहली है, क्या पैगम्बरे- इस्लाम को आपके समकालीन लोगों ने तेजस्वी, साहसी और सच्चे आचरण वाला पाया था ?
बेदाग आचरण
ऐतिहासिक दस्तावेज साक्षी हैं कि, क्या दोस्त, क्या दुश्मन, हजरत मुहम्मद के सभी समकालीन लोगों ने जीवन के सभी मामलों व सभी क्षेत्रों में पैगम्बरे-इस्लाम के उत्कृष्ट गुणों, आपकी बेदाग ईमानदारी, आपके महान नैतिक सद्गुणों तथा आपकी अबेाध निश्छलता और हर संदेह से मुक्त आपकी विश्वसनीयता को स्वीकार किया है। यहाँ तक कि यहूदी और वे लोग जिनको आपके संदेश (अल्लाह का कोई साझीदार नहीं) पर विश्वास नहीं था, वे भी आपको अपने झगड़ों में पंच या मध्यस्थ बनाते थे, क्योंकि उन्हें आपकी निरपेक्षता पर पूरा यकीन था। वे लोग भी जो आपके संदेश पर ईमान नहीं रखते थे, यह कहने पर विवश थे- ‘‘ऐ मुहम्मद, हम तुमको झूठा नहीं कहते, बल्कि उसका इंकार करते हैं जिसने तुमको किताब दी तथा जिसने तुम्हें रसूल बनाया।’’ वे समझते थे कि आप पर किसी (जिन्न आदि) का असर है। जिससे मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने आप पर सख्ती भी की। लेकिन उनमें जो बेहतरीन लोग थे, उन्होंने देखा कि आपके ऊपर एक नई ज्योति अवतरित हुई है और वे उस ज्ञान को पाने के लिए दौड़ पड़े। पैगम्बरे-इस्लाम की जीवनगाथा की यह विशिष्टता उल्लेखनीय है कि आपके निकटतम रिश्तेदार, आपके प्रिय चचेरे भाई, आपके घनिष्ट मित्र, जो आप को बहुत निकट से जानते थे, उन्होंने आपके पैगाम की सच्चाई को दिल से माना और इसी प्रकार आपकी पैगम्बरी की सत्यता को भी स्वीकार किया। पैगम्बर मुहम्मद पर ईमान ले आने वाले ये कुलीन शिक्षित एवं बुद्धिमान स्त्रियाँ और पुरुष आपके व्यक्तिगत जीवन से भली-भाँति परिचित थे। वे आपके व्यक्तित्व में अगर धोखेबाजी और फ्राड की जरा-सी झलक भी देख पाते या आपमें धनलोलुपता देखते या आपमें आत्म विश्वास की कमी पाते तो आपके चरित्र-निर्माण, आत्मिक जागृति तथा समाजोद्धार की सारी आशाएं ध्वस्त होकर रह जातीं। इसके विपरीत हम देखते हैं कि अनुयायियों की निष्ठा और आपके प्रति उनके समर्थन का यह हाल था कि, उन्होंने स्वेच्छा से अपना जीवन आपको समर्पित करके आपका नेतृत्व स्वीकार कर लिया। उन्होंने आपके लिए यातनाओं और खतरों को वीरता और साहस के साथ झेला, आप पर ईमान लाए, आपका विश्वास किया, आपकी आज्ञाओं का पालन किया और आपका हार्दिक सम्मान किया और यह सब कुछ उन्होंने दिल दहला देनेवाली यातनाओं के बावजूद किया तथा सामाजिक बहिष्कार से उत्पन्न घोर मानसिक वेदना को शान्तिपूर्वक सहन किया। यहाँ तक कि इसके लिए उन्होने मौत तक की परवाह नहीं की।
पैगम्बर ﷺ से अमर प्रेम
आरम्भिक काल के इस्लाम स्वीकार करनेवालों के ऐतिहासिक किस्से पढि़ए तो इन बेकसूर मर्दों और औरतों पर ढाए गए गैर इंसानी अत्याचारों को देखकर कौन-सा दिल है जो रो न पड़ेगा? एक मासूम औरत सुमैयया (रजि़) को बेरहमी के साथ बरछे मार-मार कर हलाक कर डाला गया (इस्लाम की राह में पहली शहादत है)। एक मिसाल यासिर (रजि़) की भी है, जिनकी टांगों को दो ऊॅटों से बाँध दिया गया और फिर उन ऊँटों को विपरीत दिशा में हाँका गया। खब्बाब बिन अरत (रजि़) को धधकते हुए कोयलों पर लिटाकर निर्दयी ज़ालिम उनके सीने पर खड़ा हो गया, ताकि वे हिल-डुल न सकें, यहाँ तक कि उनकी खाल जल गई और चर्बी पिघलकर निकल पड़ी। और खब्बाब बिन अरत के गोश्त को निर्ममता से नोच-नोचकर तथा उनके अंग काट-काटकर उनकी हत्या की गई। इन यातनाओं के दौरान उनसे पूछा गया कि क्या अब वे यह न चाहेंगे कि उनकी जगह पर पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल) होते? (जो कि उस वक्त अपने घरवालों के साथ अपने घर में थे) तो पीड़ित खब्बाब ने ऊँचे स्वर में कहा कि पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल) को एक कांटा चुभने की मामूली तकलीफ से बचाने के लिए भी वे अपनी जान, अपने बच्चों एवं परिवार, अपना सब कुछ कुर्बान करने के लिए तैयार हैं। इस तरह के दिल दहलानेवाले बहुत-से वाकए पेश किए जा सकते हैं, लेकिन ये सब घटनाएँ आखिर क्या सिद्ध करती हैं? ऐसा कैसे हो सका कि इस्लाम के इन बेटे और बेटियों ने अपने पैगम्बर के प्रति केवल निष्ठा ही नहीं दिखाई, बल्कि उन्होंने अपने शरीर, हृदय और आत्मा का नज़राना पेश किया? पैगम्बर मुहम्मद के प्रति उनके निकटतम अनुयायियों की यह दृढ़ आस्था और विश्वास, क्या उस कार्य के प्रति, जो पैगम्बर मुहम्मद के सुपुर्द किया गया था, उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता तथा तन्मयता का अत्यन्त उत्तम प्रमाण नहीं है?
उच्च सामर्थ्य्वान अनुयायी
ध्यान रहे कि ये लोग न तो निचले दर्जे के लोग थे और न कम अक्लवाले। आपके मिशन के आरम्भिक काल में जो लोग आपके चारों ओर जमा हुए वे मक्का के श्रेष्ठतम लोग थे, उसके फूल और मक्खन, ऊँचे दर्जे के, धनी और सभ्य लोग थे। इनमें आपके खानदान और परिवार के करीबी लोग भी थे जो आपकी अन्दरूनी और बाहरी जिन्दगी से भली- भाँति परिचित थे। आरम्भ के चारों खलीफा भी, जो कि महान व्यक्तित्व के मालिक हुए, इस्लाम के आरम्भिक काल ही में इस्लाम में दाखिल हुए।
‘इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ में उल्लिखित है-
‘‘समस्त पैगम्बरों और धर्मिक क्षेत्र के महान व्यक्तित्वों में मुहम्मद सबसे ज्यादा सफल हुए हैं।’’ लेकिन यह सफलता कोई आकस्मिक चीज न थी। न ऐसा है कि, यह आसमान से अचानक आ गिरी हो, बल्कि यह उस वास्तविकता का फल थी कि आपके समकालीन लोगों ने आपके व्यक्तित्व को साहसी और निष्कपट पाया। यह आपके प्रशंसनीय और अत्यन्त प्रभावशाली व्यक्तित्व का फल था। (अस-सादिक)
मानव-जीवन के लिए उत्कृष्ट नमूना पैगम्बर मुहम्मद के व्यक्तित्व की सभी यथार्थताओं को जान लेना बड़ा कठिन काम है। मैं तो उसकी बस कुछ झलकियाँ ही देख सका हूँ। आपके व्यक्तित्व के कैसे-कैसे मनभावन दृश्य निरन्तर प्रभाव के साथ सामने आते हैं।
पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल) कई हैसियत से हमारे सामने आते है- मुहम्मद-पैगम्बर, मुहम्मद-जनरल, मुहम्मद-शासक, मुहम्मद-योद्धा, मुहम्मद-व्यापारी, मुहम्मद-उपदेशक, मुहम्मद-दार्शनिक, मुहम्मद-राजनीतिज्ञ, मुहम्मद-वक्ता, मुहम्मद-समाज सुधारक, मुहम्मद-यतीमों के पोषक, मुहम्मद-गुलामों के रक्षक, मुहम्मद-स्त्री वर्ग का उद्धार करने वाले और उनको बन्धनों से मुक्त कराने वाले, मुहम्मद-न्याय करने वाले, मुहम्मद -सन्त। इन सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं और मानव-कार्य के क्षेत्रों में आपकी हैसियत समान रूप से एक महान नायक की है। अनाथ अवस्था अत्यन्त बेचारगी और असहाय स्थिति का दूसरा नाम है और इस संसार में आपके जीवन का आरम्भ इसी स्थिति से हुआ। राजसत्ता इस संसार में भौतिक शक्ति की चरम सीमा होती है। और आप शक्ति की यह चरम सीमा प्राप्त करके दुनिया से विदा हुए। आपके जीवन का आरम्भ एक यतीम बच्चे के रूप में होता है, फिर हम आपको एक सताए हुए मुहाजिर (शरणार्थी) के रूप में पाते हैं और आखिर में हम यह देखते हैं कि आप एक पूरी कौम के दुनियावी और रूहानी पेशवा हो गए हैं। आपके इस मार्ग में जिन आज़माइशों, प्रलोभनों, कठिनाइयों और परिवर्तनों, अन्धेरों और उजालों, भय और सम्मान, हालात के उतार-चढ़ाव आदि से गुजरना पड़ा, उन सब में आप सफल रहे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आपने एक आदर्श पुरुष की भूमिका निभाई। उसके लिए आपने दुनिया से लोहा लिया और पूर्ण रूप से विजयी हुए। आपके कारनामों का संबंध जीवन के किसी एक पहलू से नहीं है, बल्कि वे जीवन के सभी क्षेत्रों में व्याप्त है।
मुहम्मद ﷺ: महानतम व्यक्तित्व
उदाहरण स्वरूप अगर महानता इस पर निर्भर करती है कि किसी ऐसी जाति का सुधार किया जाए जो सर्वथा बर्बरता और असभ्यता में ग्रस्त हो और नैतिक दृष्टि से वह अत्यन्त अन्धकार में डूबी हुई हो तो वह शक्तिशाली व्यक्ति हजरत मुहम्मद हैं, जिसने अत्यन्त पस्ती में गिरी हुई कौम को ऊँचा उठाया, उसे सभ्यता से सुसज्जित करके कुछ से कुछ कर दिया। उन्होने उसे दुनिया में ज्ञान और सभ्यता का प्रकाश फैलाने वाली बना दिया। इस तरह आपका महान होना पूर्ण रूप से सिद्ध होता है।
यदि महानता इसमें है कि, किसी समाज के परस्पर विरोधी और बिखरे हुए तत्वों को भाईचारे और दयाभाव के सूत्रों में बाँध दिया जाए तो मरुस्थल में जन्मे पैगम्बर निःसंदेह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र हैं। यदि महानता उन लोगों का सुधार करने में है जो अन्धविश्वासों तथा अनेक प्रकार की हानिकारक प्रथाओं और आदतों में ग्रस्त हों तो पैगम्बरे-इस्लाम ने लाखों लोगों को (धर्म के नाम पर फैले) अन्धविश्वासों और बेबुनियाद भय से मुक्त किया। अगर महानता उच्च आचरण पर आधारित होती है तो शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मुहम्मद साहब को ‘‘अल -अमीन’’ और ‘‘अस -सादिक’’ अर्थात ‘विश्वसनीय’ और ‘सत्यवादी’ स्वीकार किया है। अगर एक विजेता महानता का पात्र है तो आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अनाथ और असहाय और साधारण व्याक्ति की स्थिति से उभरे और खुसरो और कैसर की तरह अरब उपमहाद्वीप के स्वतंत्र शासक बने। आपने एक ऐसा महान राज्य स्थापित किया जो चौदह सदियों की लम्बी मुद्दत गुजरने के बावजूद आज भी मौजूद है और अगर महानता का पैमाना वह समर्पण है जो किसी नायक को उसके अनुयायियों से प्राप्त होता है तो आज भी सारे संसार में फैली अरबों (लगभग 350 करोड़) आत्माओं को मुहम्मद का नाम जादू की तरह सम्मोेहित करता है।
यदि महानता इसमें है कि, किसी समाज के परस्पर विरोधी और बिखरे हुए तत्वों को भाईचारे और दयाभाव के सूत्रों में बाँध दिया जाए तो मरुस्थल में जन्मे पैगम्बर निःसंदेह इस विशिष्टता और प्रतिष्ठा के पात्र हैं। यदि महानता उन लोगों का सुधार करने में है जो अन्धविश्वासों तथा अनेक प्रकार की हानिकारक प्रथाओं और आदतों में ग्रस्त हों तो पैगम्बरे-इस्लाम ने लाखों लोगों को (धर्म के नाम पर फैले) अन्धविश्वासों और बेबुनियाद भय से मुक्त किया। अगर महानता उच्च आचरण पर आधारित होती है तो शत्रुओं और मित्रों दोनों ने मुहम्मद साहब को ‘‘अल -अमीन’’ और ‘‘अस -सादिक’’ अर्थात ‘विश्वसनीय’ और ‘सत्यवादी’ स्वीकार किया है। अगर एक विजेता महानता का पात्र है तो आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अनाथ और असहाय और साधारण व्याक्ति की स्थिति से उभरे और खुसरो और कैसर की तरह अरब उपमहाद्वीप के स्वतंत्र शासक बने। आपने एक ऐसा महान राज्य स्थापित किया जो चौदह सदियों की लम्बी मुद्दत गुजरने के बावजूद आज भी मौजूद है और अगर महानता का पैमाना वह समर्पण है जो किसी नायक को उसके अनुयायियों से प्राप्त होता है तो आज भी सारे संसार में फैली अरबों (लगभग 350 करोड़) आत्माओं को मुहम्मद का नाम जादू की तरह सम्मोेहित करता है।
निरक्षर ईशदूत
हजरत मुहम्मद ने एथेन्स, रोम, ईरान, भारत या चीन के ज्ञान-केन्द्रों से दर्शन का ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, लेकिन आपने मानवता को चिरस्थायी महत्व की उच्चतम सच्चाइयों से परिचित कराया। वे निरक्षर थे, लेकिन उनको ऐसे भाव पूर्ण और उत्साहपूर्ण भाषण करने की योग्यता प्राप्त थी कि लोग भाव-विभोर हो उठते और उनकी आँखों से आँसू फूट पड़ते। वे अनाथ थे और धनहीन भी, लेकिन जन-जन के हृदय में उनके प्रति प्रेम भाव था। उन्होंने किसी सैन्य अकादमी से शिक्षा ग्रहण नही की थी, लेकिन फिर भी उन्होंने भयंकर कठिनाइयों और रुकावटों के बावजूद सैन्य शक्ति जुटाई (ऐसी सैन्य शक्ति जिसमें का कोई भी ब्यक्ति वेतन भत्ता नहीं लेता था बल्कि अपना ही धन अनाज इत्यादि लोगों पर खर्च करता था) और अपनी आत्म शक्ति के बल पर, जिसमें आप अग्रणी थे, कितनी ही विजय प्राप्त कीं। कुशलतापूर्ण धर्म-प्रचार करनेवाले ईश्वर प्रदत्त योग्यताओं के लोग कम ही मिलते हैं। डेकार्ड के अनुसार, ‘‘आदर्श उपदेशक संसार के दुर्लभतम प्राणियों में से है।’’
हिटलर ने भी अपनी पुस्तक Mein Kampf (मेरी जीवनगाथा) में इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। वह लिखता है -‘‘महान सिद्धान्तशास्त्री कभी-कभार ही महान नेता होता है। इसके विपरीत एक आन्दोलनकारी व्यक्ति में नेतृत्व की योग्यताएँ अधिक होती हैं। वह हमेशा एक बेहतर नेता होगा, क्योंकि नेतृत्व का अर्थ होता है, अवाम को प्रभावित एवं संचालित करने की क्षमता। जन-नेतृत्व की क्षमता का नया विचार देने की योग्यता से कोई सम्बंध नहीं है।’’ लेकिन वह आगे कहता है-‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’ पैगम्बरे-इस्लाम मुहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है। इससे अधिक विस्मयकारी है वह टिप्पणी, जो बास्वर्थ स्मिथ ने की है- ‘‘वे (मोहम्म्द सल्ल.) जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और कैसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीजर (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडम्बर से मुक्त। और वे ऐसे कैसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे,।
हिटलर ने भी अपनी पुस्तक Mein Kampf (मेरी जीवनगाथा) में इसी तरह का विचार व्यक्त किया है। वह लिखता है -‘‘महान सिद्धान्तशास्त्री कभी-कभार ही महान नेता होता है। इसके विपरीत एक आन्दोलनकारी व्यक्ति में नेतृत्व की योग्यताएँ अधिक होती हैं। वह हमेशा एक बेहतर नेता होगा, क्योंकि नेतृत्व का अर्थ होता है, अवाम को प्रभावित एवं संचालित करने की क्षमता। जन-नेतृत्व की क्षमता का नया विचार देने की योग्यता से कोई सम्बंध नहीं है।’’ लेकिन वह आगे कहता है-‘‘इस धरती पर एक ही व्यक्ति सिद्धांतशास्त्री भी हो, संयोजक भी हो और नेता भी, यह दुर्लभ है। किन्तु महानता इसी में निहित है।’’ पैगम्बरे-इस्लाम मुहम्मद के व्यक्तित्व में संसार ने इस दुर्लभतम उपलब्धि को सजीव एवं साकार देखा है। इससे अधिक विस्मयकारी है वह टिप्पणी, जो बास्वर्थ स्मिथ ने की है- ‘‘वे (मोहम्म्द सल्ल.) जैसे सांसारिक राजसत्ता के प्रमुख थे, वैसे ही दीनी पेशवा भी थे। मानो पोप और कैसर दोनों का व्यक्तित्व उन अकेले में एकीभूत हो गया था। वे सीजर (बादशाह) भी थे पोप (धर्मगुरु) भी। वे पोप थे किन्तु पोप के आडम्बर से मुक्त। और वे ऐसे कैसर थे, जिनके पास राजसी ठाट-बाट, आगे-पीछे अंगरक्षक और राजमहल न थे,।
राजस्व-प्राप्ति की विशिष्ट व्यवस्था
यदि कोई व्यक्ति यह कहने का अधिकारी है कि उसने दैवी अधिकार से राज किया तो वे मुहम्मद (सल्ल) ही हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें बाह्य साधनों और सहायक चीजों के बिना ही राज करने की शक्ति प्राप्त थी। आपको इसकी परवाह नहीं थी कि जो शक्ति आपको प्राप्त थी उसके प्रदर्शन के लिए कोई आयोजन करें। आपके निजी जीवन में जो सादगी थी, वही सादगी आपके सार्वजनिक जीवन में भी पाई जाती थी।’’
मुहम्मद ﷺ अपना काम स्वयं करने वाले
मक्का पर विजय के बाद 10 लाख वर्ग मील से अधिक जमीन हजरत मुहम्मद के कदमों तले थी। आप पूरे अरब के मालिक थे, लेकिन फिर भी आप मोटे-झोटे वस्त्र पहनते, वस्त्रों और जूतों की मरम्मत स्वयं करते, बकरियाँ दुहते, घर में झाडू लगाते, आग जलाते और घर-परिवार का छोटे-से-छोटा काम भी खुद कर लेते। इस्लाम के पैगम्बर के जीवन के आखिरी दिनों में पूरा मदीना धनवान हो चुका था। हर जगह दौलत की बहुतात थी, लेकिन इसके बावजूद ‘अरब के इस सम्राट’ के घर के चूल्हे में कई-कई हफ्ते तक आग न जलती थी और खजूरों और पानी पर गुजारा होता था। आपके घरवालों की लगातार कई-कई रातें भूखे पेट गुजर जातीं, क्योंकि उनके पास शाम को खाने के लिए कुछ भी न होता। तमाम दिन व्यस्त रहने के बाद रात को आप नर्म बिस्तर पर नहीं, खजूर की चटाई पर सोते। अकसर ऐसा होता कि आपकी आँखों से आँसू बह रहे होते और आप अपने स्रष्टा (अल्लाह) से दुआएँ कर रहे होते कि वह आपको ऐसी शक्ति दे कि आप अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकें। रिवायतों से मालूम होता है कि रोते-रोते आपकी आवाज रुँध जाती थी और ऐसा लगता जैसे कोई बर्तन आग पर रखा हुआ हो और उसमें पानी उबलने लगा हो। आपके देहान्त के दिन आपकी कुल पूँजी कुछ थोड़े से सिक्के थे, जिनका एक भाग कर्ज की अदायगी में काम आया और बाकी एक जरूरतमंद को दे दिया गया। जिन वस्त्रों में आपने अंतिम साँस लिए उनमें अनेक पैवन्द लगे हुए थे। वह घर जिससे पूरी दुनिया में रोशनी फैली, वह जाहिरी तौर पर अन्धेरों में डूबा हुआ था, क्योकि चिराग जलाने के लिए घर में तेल न था।
अनुकूल-प्रतिकूल प्रत्येक परिस्थिति में एक समान
परिस्थितियाँ बदल गई, लेकिन खुदा का पैगम्बर नहीं बदला। जीत हुई हो या हार, सत्ता प्राप्त हुई हो या इसके विपरीत की स्थिति हो, खुशहाली रही हो या गरीबी, प्रत्येक दशा में आप एक-से रहे, कभी आपके उच्च चरित्र में अन्तर न आया। ‘‘खुदा के मार्ग और उसके कानूनों की तरह खुदा के पैगम्बर में भी कभी कोई तब्दीली नहीं आया करती।’’
सत्यवादी से भी अधिक
एक कहावत है- ईमानदार व्यक्ति खुदा का है। मुहम्मद (सल्ल) तो ईमानदार से भी बढ़कर थे। उनके अंग-अंग में महानता रची-बसी थी। मानव-सहानुभूति और प्रेम उनकी आत्मा का संगीत था। मानव-सेवा, उसका उत्थान, उसकी आत्मा को विकसित करना, उसे शिक्षित करना सारांश यह कि मानव को मानव बनाना उनका मिशन था। उनका जीना, उनका मरना सब कुछ इसी एक लक्ष्य को अर्पित था। उनके आचार-विचार, वचन और कर्म का एक मात्र दिशा निर्देशक सिद्धान्त एवं प्रेरणा स्रोत मानवता की भलाई था। आप अत्यन्त विनीत, हर आडम्बर से मुक्त तथा एक आदर्श निस्स्वार्थी थे। आपने अपने लिए कौन-कौन सी उपाधियाँ चुनीं? केवल दो-अल्लाह का बन्दा और उसका पैगम्बर, और बन्दा पहले फिर पैगम्बर। आप (सल्ल.) वैसे ही पैगम्बर और संदेशवाहक थे, जैसे संसार के हर भाग में दूसरे बहुत-से पैगम्बर गुज़र चके हैं। जिनमें से कुछ को हम जानते है और बहुतों को नहीं। अगर इन सच्चाइयों में से किसी एक से भी ईमान उठ जाए तो आदमी मुसलमान नहीं रहता। यह तमाम मुसलमानों का बुनियादी अकीदा है। एक यूरोपीय विचारक का कथन है-‘‘ उस समय की परिस्थितियां तथा उनके अनुयायियों की उनके प्रति असीम श्रद्धा को देखते हुए पैगम्बर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने कभी भी मोजज़े (चमत्कार) दिखा सकने का दावा नहीं किया।’’ पैगम्बरे-इस्लाम से कई चमत्कार जाहिर हुए, लेकिन उन चमत्कारों का प्रयोजन धर्म प्रचार न था। उनका श्रेय आपने स्वयं न लेकर पूर्णतः अल्लाह को और उसके उन अलौकिक तरीकों को दिया जो मानव के लिए रहस्यमय हैं। आप स्पष्ट शब्दों में कहते थे कि वे भी दूसरे इंसानों की तरह ही एक इंसान हैं। आप जमीन व आसमानों के खजानों के मालिक नहीं। आपने कभी यह दावा भी नहीं किया कि भविष्य के गर्भ में क्या कुछ रहस्य छुपे हुए हैं। यह सब कुछ उस काल में हुआ जब कि आश्चर्यजनक चमत्कार दिखाना साधू सन्तों के लिए मामूली बात समझी जाती थी और जबकि अरब हो या अन्य देश पूरा वातावरण गैबी और अलौकिक सिद्धियों के चक्कर में ग्रस्त था। आपने अपने अनुयायियों का ध्यान प्राकृति और उनके नियमों के अध्ययन की ओर फेर दिया। ताकि उनको समझें और अल्लाह की महानता का गुणगान करें।
कुरआन कहता है- ‘‘और हमने आकाशों व धरती को और जो कुछ उनके बीच है, कुछ खेल के तौर पर नहीं बनाया। हमने इन्हें बस हक के साथ (सोद्देश्य) पैदा किया, परन्तु इनमें अधिकतर लोग (इस बात को ) जानते नहीं।’’(कुरआन 44/38-39)
विज्ञान मुहम्मद ﷺ की विरासत
यह जगत् न कोई भ्रम है और न उद्देश्य-रहित। बल्कि इसे सत्य और हक के साथ पैदा किया गया है। कुरआन की उन आयतों की संख्या जिनमें प्राकृति के सूक्ष्म निरीक्षण की दावत दी गई है, उन सब आयतों से कई गुना अधिक है जो नमाज, रोज़ा, हज आदि आदेशों से संबंधित हैं। इन आयतों का असर लेकर मुसलमानों ने प्राकृति का निकट से निरीक्षण करना आरम्भ किया। जिसने निरीक्षण और परीक्षण एवं प्रयोग के लिए ऐसी वैज्ञानिक मनोवृति को जन्म दिया, जिससे यूनानी भी अनभिज्ञ थे। मुस्लिम वनस्पति शास्त्री इब्ने-बैतर ने संसार के सभी भू-भागों से पौधे एकत्र करके वनस्पतिशास्त्र पर वह पुस्तक लिखी, जिसे मेयर (Mayer) ने अपनी पुस्तक, (Geshder Botanica) में ‘कड़े श्रम की पुरातन निधि’ की संज्ञा दी है। अलबरूनी ने चालीस वर्षों तक यात्रा करके खनिज पदार्थों के नमूने एकत्र किए तथा अनेक मुस्लिम खगोलशात्री 12 वर्षों से भी अधिक अवधि तक निरीक्षण और परीक्षण में लगे रहे, जबकि अरस्तू ने एक भी वैज्ञानिक परीक्षण किए बिना भौतिकशास्त्र पर कलम उठाई और भौतिकशास्त्र का इतिहास लिखते समय उसकी लापरवाही का यह हाल है कि उसने लिख दिया कि ‘इंसान के दांत जानवर से ज्यादा होते हैं’ लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए कोई तकलीफ नहीं उठाई, हालाँकि यह कोई मुश्किल काम न था।
(बाद में ये भी पढ़ लीजिए: कुरान की ये 37 बातें विज्ञान ने खुद साबित की! - कुरआन और आधुनिक विज्ञान)
पाश्चात्य देशों पर मुस्लिमों का ऋण
शरीर रचनाशास्त्र के महान ज्ञाता गैलेन ने बताया है कि इंसान के निचले जबड़े में दो हड्डियाँ होती हैं, इस कथन को सदियों तक बिना चुनौती असंदिग्ध रूप से स्वीकार किया जाता रहा, यहाँ तक कि एक मुस्लिम विद्वान अब्दुल लतीफ ने एक मानवीय कंकाल का स्वयं निरीक्षण करके सही बात से दुनिया को अवगत कराया। इस प्रकार की अनेक घटनाओं को उद्धृत करते हुए राबर्ट ब्रीफ्फालट अपनी प्रसिद्ध पुस्तक The Making of Humanity (मानवता का सर्जक) में अपने उद्गार इन शब्दों में व्यक्त करता है-‘‘हमारे विज्ञान पर अरबों का एहसान केवल उनकी आश्चर्यजनक खोजों या क्रांतिकारी सिद्धांतों एवं परिकल्पनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि विज्ञान पर अरब सभ्यता का इससे कहीं अधिक उपकार है, और वह है स्वयं विज्ञान का अस्तित्व।’’ यही लेखक लिखता है-‘‘यूनानियों ने वैज्ञानिक कल्पनाओं को व्यवस्थित किया, उन्हें समान्य नियम का रूप दिया और उन्हें सिद्धांतबद्ध किया, लेकिन जहाँ तक खोजबीन करने के धैर्यपूर्ण तरीकों को पता लगाने, निश्चयात्मक एवं स्वीकारात्मक तथ्यों को एकत्र करने, वैज्ञानिक अध्ययन के सूक्ष्म तरीके निर्धारित करने, व्यापक एवं दीर्घकालिक अवलोकन व निरीक्षण करने तथा परीक्षणात्मक अन्वेषण करने का प्रश्न है, ये सारी विशिष्टिताएँ यूनानी मिजाज़ के लिए बिल्कुल अजनबी थीं। जिसे आज विज्ञान कहते हैं, जो खोजबीन की नई विधियों, परीक्षण के तरीकों, अवलोकन व निरीक्षण की पद्धति, नाप-तौल के तरीकों तथा गणित के विकास के परिणामस्वरूप यूरोप में उभरा, उसके इस रूप से यूनानी बिल्कुल बेखबर थे। यूरोपीय जगत् को इन विधियों और इस वैज्ञानिक प्रवृति से अरबों ही ने परिचित कराया।’’
इस्लामः एक सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था
पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षाओं का ही यह व्यावहारिक गुण है, जिसने वैज्ञानिक प्रवृत्ति को जन्म दिया। इन्हीं शिक्षाओं ने नित्य के काम-काज और उन कामों को भी जो सांसारिक काम कहलाते हैं आदर और पवित्रता प्रदान की। कुरआन कहता है कि इंसान को खुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (उपासना) की उसकी अपनी अलग परिभाषा है। खुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अन्तर्गत आता है। इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे सम्बन्धित सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित किया है। शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनियत के साथ किया जाए। पवित्र और अपवित्र के बीच चले आ रहे अनुचित भेद को मिटा दिया। कुरआन कहता है कि अगर तुम पवित्र और स्वच्छ भोजन खाकर अल्लाह का आभार स्वीकार करो तो यह भी इबादत है। पैगम्बरे- इस्लाम ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को खाने का एक लुक्मा खिलाता है तो यह भी नेकी और भलाई का काम है और अल्लाह के यहाँ वह इसका अच्छा बदला पाएगा। पैगम्बर का एक और कथन है-‘‘अगर कोई व्यक्ति अपनी कामना और ख्वाहिश को पूरा करता है तो उसका भी उसे सवाब (पुण्य) मिलेगा। शर्त यह है कि वह इसके लिए वही तरीका अपनाए जो जायज़ हो।’’ एक साहब, जो आपकी बात सुन रहे थे, आश्चर्य से बोले-‘‘ऐ अल्लाह के पैगम्बर, वह तो केवल अपनी इच्छाओं और अपने मन की कामनाओं को पूरा करता है।’’ आपने उत्तर दिया - ‘‘यदि उसने अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अवैध तरीकों को अपनाया होता तो उसे इसकी सजा मिलती, तो फिर जायज तरीका अपनाने पर उसे इनाम क्यों नहीं मिलना चाहिए?’’
व्यावहारिक शिक्षाएँ
धर्म की इस नई धारणा ने कि धर्म का विषय पूर्णतः अलौकिक जगत् के मामलों तक सीमित न रहना चाहिए, बल्कि इसे लौकिक जीवन के उत्थान पर भी ध्यान देना चाहिए, नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र के नए मूल्यों एवं नई मान्यताओं को नई दिशा दी। इसने दैनिक जीवन में लोगों के सामान्य आपसी संबंधों पर स्थाई प्रभाव डाला। इसने जनता के लिए गहरी शक्ति का काम किया। इसके अतिरिक्त लोगों के अधिकारों और कर्तव्यों की धारणाओं को सुव्यवस्थित करना और इसका अनपढ़ लोगों और बुद्धिमान दार्शनिकों के लिए समान रूप से ग्रहण करने और व्यवहार में लाने के योग्य होना पैगम्बरे - इस्लाम की शिक्षाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं।
सत्कर्म पर आधारित शुद्ध धारणा
यहाँ यह बात सर्तकता के साथ दिमाग में आ जानी चाहिए कि भले कामों पर जोर देने का अर्थ यह नहीं है कि इसके लिए धार्मिक आस्थाओं की पवित्रता एवं शुद्धता को कुर्बान किया गया है। ऐसी बहुत-सी विचार-धाराएँ हैं, जिनमें यातो व्यावहारिकता के महत्व की बलि देकर आस्थाओं ही को सर्वोपरि माना गया है या फिर धर्म की शुद्ध धारणा एवं आस्था की परवाह न करके केवल कर्म को ही महत्व दिया गया है। इनके विपरीत इस्लाम सत्य, आस्था एवं सत्कर्म के नियम पर आधरित है। यहाँ साधन भी उतना ही महत्व रखते हैं जितना लक्ष्य। लक्ष्यों को भी वही महत्ता प्राप्त है जो साधनों को प्राप्त है। यह एक जैव इकाई की तरह है। इसके जीवन और विकास का रहस्य इनके आपस में जुड़े रहने में निहित है। अगर ये एक-दूसरे से अलग होते हैं तो ये क्षीण और विनष्ट होकर रहेंगे। इस्लाम में ईमान और अमल को अलग- अलग नहीं किया जा सकता। सत्य- ज्ञान को सत्कर्म में ढल जाना चाहिए, ताकि अच्छे फल प्राप्त हो सकें। ‘‘जो लाग ईमान रखते हैं और नेक अमल करते हैं, केवल वे ही स्वर्ग में जा सकेंगे।’’ यह बात कुरआन में कितनी बार दोहराई गई है? इस बात को पचास बार से कम नहीं दोहराया गया है। सोच विचार और ध्यान पर उभारा अवश्य गया है, लेकिन मात्र ध्यान और सोच-विचार ही लक्ष्य नहीं है। जो लोग केवल ईमान रखें, लेकिन उसके अनुसार कर्म न करें, उनका इस्लाम में कोई मुकाम नही है। जो ईमान तो रखें लेकिन कुकर्म भी करें, उनका ईमान क्षीण है। ईश्वरीय कानून-मात्र विचार-पद्धति नहीं, बल्कि वह एक कर्म और प्रयास का कानून है। यह दीन (धर्म) लोगों के लिए ज्ञान से कर्म और कर्म से परितोष द्वारा स्थायी एवं शाश्वत उन्नति का मार्ग दिखलाता है।
अल्लाह उस जैसा और कोई नहीं
लेकिन वह सच्चा ईमान क्या है, जिससे सत्कर्म का आविर्भाव होता है, जिसके फलस्वरूप पूर्ण परितोष प्राप्त होता है? इस्लाम का बुनियादी सिद्धांत एकेश्वरवाद है। ‘पूज्य प्रभु (अल्लाह) बस एक ही है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य प्रभु (अल्लाह) नहीं’ इस्लाम का मूल मंत्र है। इस्लाम की तमाम शिक्षाएँ और कर्म इसी से जुड़े हुए हैं। वह (अल्लाह) केवल अपने अलौकिक व्यक्तित्व के कारण ही अद्वितीय नहीं बल्कि अपने दिव्य एवं अलौकिक गुणों एवं क्षमताओं की दृष्टि से भी अनन्य और बेजोड़ है। जहाँ तक ईश्वर (अल्लाह) के गुणों का संबंध है, दूसरी चीजों की तरह यहाँ भी इस्लाम के सिद्धांत अत्यन्त सुनहरे हैं। यह धारणा एक तरफ ईश्वर (अल्लाह) के गुणों से रहित होने की कल्पना को अस्वीकार करती है तो दूसरी तरफ इस्लाम उन चीजों को गलत ठहराता है जिनसे ईश्वर के उन गुणों का आभास होता है जो सर्वथा भैतिक गुण होते हैं। एक ओर कुरआन यह कहता है कि उस जैसा कोई नहीं, तो दूसरी ओर वह इस बात की भी पुष्टि करता है कि वह देखता, सुनता और जानता है। वह (अल्लाह) ऐसा सम्राट है जिससे तनिक भी भूल-चूक नहीं हो सकती। उसकी शक्ति का प्रभावशली जहाज़ न्याय एवं समानता के सागर पर तैरता है। वह अत्यन्त क्षमाशील एवं दयावान है, वह सबका रक्षक है। इस्लाम इसे स्वीकारात्मक रूप के प्रस्तुत करने पर ही बस नहीं करता, बल्कि वह समस्या के नकारात्मक पहलू को भी सामने लाता है, जो उसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण विशिष्टता है। उसके अतिरिक्त कोई नहीं जो सबका रक्षक हो। वह हर टूटे को जोड़ने वाला है, उसके अलावा कोई नहीं जो टूटे हुए को जोड़ सके। वही हर प्रकार की क्षतिपूर्ति करने वाला है। उसके सिवा कोई और उपास्य नहीं। वह हर प्रकार की अपेक्षाओं से परे है। उसी ने शरीर की रचना की, वही आत्माओं (रूहों) का स्रष्टा है। वही न्याय (कयामत) के दिन का मालिक है। सारांश यह कि कुरआन के अनुसार सारे श्रेष्ठ एवं महान गुण उसमें पाए जाते हैं। (डाउनलोड करें हिंदी कुरआन PDF में मात्र 4.2 MB Link)
ब्रह्मम्माण्ड में मनुष्य की हैसियत
ब्रह्मांड में मनुष्य की जो हैसियत है, उसके विषय में कुरआन कहता है- ‘‘वह अल्लाह ही है जिसने समुद्र को तुम्हारे लिए वशीभूत कर दिया है ताकि उसके आदेश से नौकाएँ उसमें चलें, और ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो और इसलिए कि तुम कृतज्ञता दिखाओ। जो चीजें आकाशों में हैं और जो धरती में हैं, उस (अल्लाह) ने उन सबको अपनी ओर से तुम्हारे काम में लगा रखा है।’’ (कुरआन, 45:12-13) लेकिन खुदा के संबंध में कुरआन कहता है-‘‘ऐ लोगो, खुदा ने तुमको उत्कृष्ट क्षमताएँ प्रदान की हैं। उसने जीवन बनाया और मृत्यु बनाई, ताकि तुम्हारी परीक्षा की जा सके कि कौन सुकर्म करता है और कौन सही रास्ते से भटकता है।’’ इसके बावजूद कि इंसान एक सीमा तक अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए स्वतंत्र है, वह विशेष वातावरण और परिस्थतियों तथा क्षमताओं के बीच घिरा हुआ भी है। इंसान अपना जीवन उन निश्चित सीमाओं के अन्दर व्यतीत करने के लिए बाध्य है, जिन पर उसका अपना कोई अधिकार नहीं है। इस संबंध में इस्लाम के अनुसार खुदा कहता है कि मैं अपनी इच्छा के अनुसार इंसान को उन परिस्थितियों में पैदा करता हूँ, जिनको मैं उचित समझता हूँ। असीम ब्रह्मांड की स्कीमों को नश्वर मानव पूरी तरह नही समझ सकता। लेकिन मैं निश्चय ही सुख में और दुख में, तन्दुरुस्ती और बीमारी में, उन्नति और अवनति में तुम्हारी परीक्षा करूँगा। मेरी परीक्षा के तरीके हर मनुष्य और हर समय और युग के लिए विभिन्न हो सकते हैं। अतः मुसीबत में निराश न हो और नाजायज़ तरीकों व साधनों का सहारा न लो। यह तो गुजर जानेवाली स्थिति है। खुशहाली में खुदा को भूल न जाओ।
खुदा के उपहार तो तुम्हें मात्र अमानत के रूप में मिले हैं। तुम हर समय व हर क्षण परीक्षा में हो। जीवन के इस चक्र व प्रणाली के संबंध में तुम्हारा काम यह नही कि किसी दुविधा में पड़ो, बल्कि तुम्हारा कर्तव्य तो यह है कि, मरते दम तक कर्म करते रहो। यदि तुमको जीवन मिला है तो खुदा की इच्छा के अनुसार जियो और मरते हो तो तुम्हारा यह मरना खुदा की राह में हो। तुम इसको नियति कह सकते हो, लेकिन इस प्रकार की नियति तो ऐसी शक्ति और ऐसे प्राणदायक सतत प्रयास का नाम है जो तुम्हें सदैव सतर्क रखता है। इस संसार के बाद स्थायी जीवन भी है जो सदैव बाकी रहने वाला है। इस जीवन के बाद आनेवाला जीवन वह द्वार है जिसके खुलने पर जीवन के सभी तथ्य प्रकट हो जाएँगे। इस जीवन का हर कार्य, चाहे वह कितना ही मामूली क्यों न हो, इसका प्रभाव सदा बाकी रहने वाला होता है। वह ठीक तौर पर अभिलिखित या अंकित हो जाता है।
खुदा के उपहार तो तुम्हें मात्र अमानत के रूप में मिले हैं। तुम हर समय व हर क्षण परीक्षा में हो। जीवन के इस चक्र व प्रणाली के संबंध में तुम्हारा काम यह नही कि किसी दुविधा में पड़ो, बल्कि तुम्हारा कर्तव्य तो यह है कि, मरते दम तक कर्म करते रहो। यदि तुमको जीवन मिला है तो खुदा की इच्छा के अनुसार जियो और मरते हो तो तुम्हारा यह मरना खुदा की राह में हो। तुम इसको नियति कह सकते हो, लेकिन इस प्रकार की नियति तो ऐसी शक्ति और ऐसे प्राणदायक सतत प्रयास का नाम है जो तुम्हें सदैव सतर्क रखता है। इस संसार के बाद स्थायी जीवन भी है जो सदैव बाकी रहने वाला है। इस जीवन के बाद आनेवाला जीवन वह द्वार है जिसके खुलने पर जीवन के सभी तथ्य प्रकट हो जाएँगे। इस जीवन का हर कार्य, चाहे वह कितना ही मामूली क्यों न हो, इसका प्रभाव सदा बाकी रहने वाला होता है। वह ठीक तौर पर अभिलिखित या अंकित हो जाता है।
सावधान ! यह जीवन परलोक की तैयारी है
खुदा की कुछ कार्य-पद्धति को तो तुम समझते हो लेकिन बहुत-सी बातें तुम्हारी समझ से दूर और नज़र से ओझल हैं। खुद तुम में जो चीजें छिपी हुई हैं और संसार की जो चीजें तुमसे छिपी हुई हैं वे दूसरी दुनिया में बिल्कुल तुम्हारे सामने खोल दी जाएँगी। सदाचारी और नेक लोगों को खुदा का वह वरदान प्राप्त होगा जिसको न आँख ने देखा, न कान ने सुना और न मन कभी उसकी कल्पना कर सका। उसके प्रसाद और उसके वरदान क्रमशः बढ़ते जाएँगे और उसको अधिकाधिक उन्नति प्राप्त होती रहेगी। लेकिन जिन्होंने इस जीवन में मिले अवसर को खेा दिया वे उस अनिवार्य कानून की पकड़ में आ जाएँगे, जिसके अन्तर्गत मनुष्य को अपने करतूतों का मजा चखना पढ़ेगा। उनको उन आत्मिक रोगों के कारण, जिनमें उन्होंने खुद अपने आपको ग्रस्त किया होगा, उनको इलाज के एक मरहले से गुज़रना होगा। सावधन हो जाओ। बड़ी कठोर व भयानक सज़ा है। शारीरिक पीड़ा तो ऐसी यातना है, उसको तुम किसी तरह झेल भी सकते हो, लेकिन आत्मिक पीड़ा तो जहन्नम (नरक) है जो तुम्हारे लिए असहनीय होगी। अतः इसी जीवन में अपनी उन मनोवृत्तियों का मुकाबला करे, जिनका झुकाव गुनाह की ओर रहता है और वे तुम्हें पापाचार की ओर प्रेरित करती हैं। तुम उस अवस्था को प्राप्त करो, जबकि अन्र्तात्मा जागृत हो जाए और महान नैतिक गुण प्राप्त करने के लिए व्याकुल हो उठे और अवज्ञा के विरुद्ध विद्रोह करें। यह तुम्हें आत्मिक शान्ति की आखरी मंजि़ल तक पहुँचाएंगी। यानी अल्लाह की प्रसन्नता (रज़ा) हासिल करने की मंजि़ल तक। और केवल अल्लाह की प्रसन्नता (रज़ा) ही में आत्मा का अपना आनन्द भी निहित है। इस स्थिति में आत्मा के विचलित होने की संभावना न होगी, संघर्ष का दौर गुजर चुका होगा, सत्य ही विजयी होता है और झूठ अपना हथियार डाल देता है। उस समय सारी उलझनें दूर हो जाएँगी। तुम्हारा मन दुविधा में नहीं रहेगा, तुम्हारा व्यक्तित्व अल्लाह और उसकी इच्छाओं के प्रति सम्पूर्ण भाव के साथ पूर्णतः संगठित व एकत्रित हो जाएगा। तब सारी छुपी हुई शक्तिया एवं क्षमताएँ पूर्णतः स्वतंत्र हो जाएँगी और आत्मा को पूर्ण शान्ति प्राप्त होगी, तब खुदा तुम से कहेगा-‘‘ऐ सन्तुष्ट आत्मा, तू अपने रब से पूरे तौर पर राजी हुई, तू अब अपने रब की ओर लौट चल, तू उससे राज़ी है और वह तुझसे राज़ी है। अब तू मेरे (प्रिय) बन्दों में शामिल हो जा और मेरी जन्नत में दाखिल हो जा।’’ (कुरआन, 89/27.30)
मनुष्य का परम लक्ष्य
यह है इस्लाम की सृष्टि में मनुष्य का परम लक्ष्य, कि एक ओर तो वह इस जगत् को वशीभूत करने की कोशिश में लगे और दूसरी ओर उसकी आत्मा अल्लाह की प्रसन्नता (रज़ा) में चैन तलाश करे। केवल खुदा ही उससे राज़ी न हो, बल्कि वह भी खुदा से राज़ी और सन्तुष्ट हो। इसके फलस्वरूप उसको मिलेगा चैन और पूर्ण चैन, परितोष और पूर्ण परितोष, शान्ति और पूर्ण शान्ति। इस अवस्था में खुदा का प्रेम उसका आहार बन जाता है और वह जीवन-स्रोत से जी भर पीकर अपनी प्यास को बुझाता है। फिर न तो दुख और निराशा उसको पराजित एवं वशीभूत कर पाती है और न सफलताओं में वह इतराता और आपे से बाहर होता है। थामस कारलायल इस जीवन-दर्शन से प्रभावित होकर लिखता है- ‘‘और फिर इस्लाम की भी यही माँग है- हमें अपने को अल्लाह के प्रति समर्पित कर देना चाहिए, हमारी सारी शक्ति उसके प्रति समर्पण में निहित है। वह हमारे साथ जो कुछ करता है, हमें जो कुछ भी भेजता है, चाहे वह मौत ही क्यों न हो या उससे भी बुरी कोई चीज, वह वस्तुतः हमारे भले की और हमारे लिए उत्तम ही होगी। इस प्रकार हम खुद को खुदा की प्रसन्नता (रज़ा) के प्रति समर्पित कर देते हैं।’’ लेखक आगे चलकर गोयटे का एक प्रश्न उद्धृत करता है, ‘‘गोयटे पूछता है, यदि यही इस्लाम है तो क्या हम सब इस्लामी जीवन व्यतीत नहीं कर रहे हैं?’’ इसके उत्तर में कारलायल लिखता है-‘‘ हाँ, हममें से वे सब जो नैतिक व सदाचारी जीवन व्यतीत करते हैं वे सभी इस्लाम में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यह तो अन्ततः वह सर्वोच्च ज्ञान एवं प्रज्ञा है जो आकाश से इस धरती पर उतारी गयी है।’’
हजरत मुहम्मद ﷺ प्रसिद्ध व्यक्तित्व
यदि उद्देश्य की महानता, साधनों का अभाव और शानदार परिणाम- मानवीय बुद्धिमत्ता और विवेक की तीन कसौटियाँ हैं, तो आधुनिक इतिहास में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के मुकाबले में कौन आ सकेगा? विश्व के महानतम एवं प्रसिद्धतम व्यक्तियों ने शास्त्र, कानून और शसन के मैदान में कारनामे अंजाम दिए। उन्होंने भौतिक शक्तियों को जन्म दिया, जो प्रायः उनकी आँखों के सामने ही बिखर गईं। लकिन हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने न केवल फौज, कानून, शासन और राज्य को अस्तित्व प्रदान किया, बल्कि तत्कालीन विश्व की एक तिहाई जनसंख्या के मन को भी छू लिया। साथ ही, आप (सल्ल.) ने कर्मकांडों, वादों, धर्मों, पंथों, विचारों, आस्थाओं इत्यादि में अमूल परिवर्तन कर दिया। इस एक मात्र पुस्तक (पवित्र कुरआन) ने, जिसका एक-एक अक्षर कानूनी हैसियत प्राप्त कर चुका है, हर भाषा, रंग, नस्ल और प्रजाति के लोगों को देखते-देखते एकत्रित कर दिया, जिससे एक अभूतपूर्व अखिल विश्व आध्यात्मिक नागरिकता का निर्माण हुआ। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा एकेश्वरवाद की चमत्कारिक घोषणा के साथ ही विभिन्न काल्पनिक तथा मनघड़न्त आस्थाओं, मतों, पंथों, धार्मिक मान्यताओं, अंधविश्वासों एवं रीति-रिवाजों की जड़ें कट गईं। उनकी अनन्त उपासनाएँ, ईश्वर से उनकी आध्यात्मिक वार्ताएँ, लौकिक और पारलौकिक जीवन की सफलता- ये चीजें न केवल हर प्रकार के पाखण्डों का खण्डन करती हैं, बल्कि लोगों के अन्दर एक दृढ़ विश्वास भी पैदा करती हैं, उन्हें एक शाश्वत धार्मिक सिद्धान्त कायम करने की शक्ति भी प्रदान करती हैं। यह सिद्धान्त द्विपक्षीय है। एक पक्ष है ‘एकेश्वरवाद’ का और दूसरा है ‘ईश्वर के निराकार’ होने का। पहला पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या है?’ और दूसरा पक्ष बताता है कि ‘ईश्वर क्या नही है?’
दार्शनिक, वक्ता, धर्मप्रचारक, विधि-निर्माता, योद्धा, विचारों को जीतनेवाला, युक्तिसंगत आस्थाओं के पुनरोद्धारक, निराकार (बिना किसी प्रतिमा) की उपासना, बीस बड़ी सल्तनतों और एक आध्यात्मिक सत्ता के निर्माता एवं प्रतिष्ठाता वही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) हैं, जिनके द्वारा स्थापित मानदण्डों से मानव-चरित्र की ऊँचाई और महानता को मापा जा सकता है। यहाँ हम यह पूछ सकते हैं कि क्या हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से बढ़कर भी कोई महामानव है?’’ -लेमराइटन, हिस्टोरी डी ला तुर्की, पेरिस, 1854, भाग.2 पृष्ठ 276 -277
दार्शनिक, वक्ता, धर्मप्रचारक, विधि-निर्माता, योद्धा, विचारों को जीतनेवाला, युक्तिसंगत आस्थाओं के पुनरोद्धारक, निराकार (बिना किसी प्रतिमा) की उपासना, बीस बड़ी सल्तनतों और एक आध्यात्मिक सत्ता के निर्माता एवं प्रतिष्ठाता वही हजरत मुहम्मद (सल्ल.) हैं, जिनके द्वारा स्थापित मानदण्डों से मानव-चरित्र की ऊँचाई और महानता को मापा जा सकता है। यहाँ हम यह पूछ सकते हैं कि क्या हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से बढ़कर भी कोई महामानव है?’’ -लेमराइटन, हिस्टोरी डी ला तुर्की, पेरिस, 1854, भाग.2 पृष्ठ 276 -277
मुहम्मद ﷺ की जीवन व्यवस्था और आर्थिक जीवन
धन जीवन की रीढ़ की हड्डी और उसका आधार है। जिसके द्वारा हज़रत मुहम्मद सल्ल. की शरीअत का उद्देश्य एक संतुलित समाज की स्थापना है। जिसमें सामाजिक न्याय का बोल बाला हो जो अपने सभी सदस्यों के लिये आदरणीय जीवन का प्रबंध करता है, ऐसे भ्रष्टाचार और शोषण मुक्त समाज की स्थापना जिसमें धन का आना शुभ और जाना अशुभ न माना जाता हो जहाॅ येनकेन प्रकारेण धन इकट्ठा करना ही जीवन का मुख्य ध्येय न हो।
इस्लाम की दृष्टि में धन उन ज़रूरतों में से एक ज़रूरत है, जिस से व्यक्ति या समूह बेनियाज़ नहीं हो सकते तो अल्लाह तआला ने उसके कमाने और खर्च करने के तरीक़ों से संबंधित कुछ नियम बनाये हैं, साथ ही साथ उसमें अढ़ाई प्रतिशत / चालीस रूपये में एक रूपया (2.5 प्रतिशत) ज़कात अनिवार्य किया है जो धन्वानों के मूलधनों पर एक साल बीत जाने के बाद लिया जायेगा और निर्धनों और गरीबों में बांट दिया जायेगा, यह निर्धनों के अधिकारों में से एक अधिकार है जिसे रोक लेना हराम (वर्जित) है।
दूसरों के धनों और सम्पत्तियों से छेड-छाड़ और रिश्वतखोरी करने को वर्जित ठहराने के बारे में शरई हुक्म मौजूद हैं। अल्लाह तआला का फरमान है: ‘‘और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको।’’ (अल कुरआन 2:188)
गैर-मुस्लिमों के नज़र में इस्लाम और पैगमबर मुहम्मद ﷺ
– मुंशी प्रेमचंद (प्रसिद्ध साहित्यकार)
❝ टेक्नोलॉजी इंडस्ट्रीज आज वजूद में नहीं होती! अगर मुसलमान साइंटिस्ट न होते ❞
– मिस कार्लटन फिओरिना
❝ इस्लाम केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक अति उत्तम जीवन-प्रणाली है।❞
– अन्नादुराई (भूतपूर्व मुख्यमंत्री – तमिलनाडु)
❝ इस्लामी शिक्षाओं में बुरके़ ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त (Wonderful) लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ ‘‘आपको मेरी यह बात बड़ी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गयी हूं।❞
– भूतपूर्व डॉक्टर कमला दास
❝ प्यारे पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया।❞
–वेनगताचिल्लम अडियार (अब्दुल्लाह अडियार)
❝ इस्लाम ने ही दिया है बेटियों को ऊँचा मक़ाम। ❞
– डॉ. विद्या प्रधान
ये लिस्ट बहोत लम्बी है फिर कभी इसको अपडेट करेंगे इन शा अल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा तो)
❝ टेक्नोलॉजी इंडस्ट्रीज आज वजूद में नहीं होती! अगर मुसलमान साइंटिस्ट न होते ❞
– मिस कार्लटन फिओरिना
❝ इस्लाम केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक अति उत्तम जीवन-प्रणाली है।❞
– अन्नादुराई (भूतपूर्व मुख्यमंत्री – तमिलनाडु)
❝ इस्लामी शिक्षाओं में बुरके़ ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हक़ीक़त यह है कि बुरक़ा बड़ा ही ज़बरदस्त (Wonderful) लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक ख़ास क़िस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ ‘‘आपको मेरी यह बात बड़ी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गयी हूं।❞
– भूतपूर्व डॉक्टर कमला दास
❝ प्यारे पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने औरत को मर्द के बराबर दर्जा दिया।❞
–वेनगताचिल्लम अडियार (अब्दुल्लाह अडियार)
❝ इस्लाम ने ही दिया है बेटियों को ऊँचा मक़ाम। ❞
– डॉ. विद्या प्रधान
ये लिस्ट बहोत लम्बी है फिर कभी इसको अपडेट करेंगे इन शा अल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा तो)
अगर आप भी इस महान शख्स की अनुयायी बनना चाहते है तो, आपको सिर्फ दो बातों की गवाही देनी होगी:
1. अल्लाह (एक सच्चे ईश्वर) के अलावा कोई पूज्य नहीं।
2. मुहम्मद ﷺ ईश्वर के बंदे और आखरी पैग़म्बर है।
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3 Comments
ऐसा व्यक्ति पूरे मानव इतिहास में नहीं मिलेगा, इतना दयालु, इतना प्रितिष्ठित...
जवाब देंहटाएंराव साहब को धन्यवाद ;
जवाब देंहटाएंइस्लाम के सत्य से लोगों को परिचित करने का आपका काम सराहनीय और प्रशंसनीय है ।
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