मुसलमान-मांस-क्यों-खाते-हैं
माँसाहार से सम्बंधित तीन जरूरी प्रश्न
*प्रश्न 1*-- *जानवरों की हत्या एक क्रूर निर्दयतापूर्ण कार्य हैं तो फिर मुसलमान मॉस क्यों खाते हैं ?*
उत्तर- शाकाहार ने अब संसार भर में एक आन्दोलन का रूप ले लिया हैं। बहुत से तो इसको जानवरों के अधिकार से जोड़ते हैं। निस्संदेह लोगों की एक बड़ी संख्या मांसाहारी हैं और अन्य लोग मांस खाने को जानवरों के अधिकारों का हनन मानते हैं Musalman aur Mansahar.

Musalman aur Mansahar - Musalman Mans Kyu Khate Hai

इस्लाम प्रत्येक जीव एवं प्राणी के प्रति स्नेह और दया का निर्देश देता हैं। साथ ही इस्लाम इस बात पर भी जोर देता हैं कि अल्लाह ने पृथ्वी, पेड़-पोधे और छोटे-बड़े हर प्रकार के जीव-जन्तुओं को इंसान के लाभ के लिए प्रदान किया हैं। अब यह इन्सान पर निर्भर करता है कि वह ईश्वर की दी हुई नेमत और अमानत के रूप् में मौजूद प्रत्येक स्रोत को वह किस प्रकार उचित रूप से इस्तेमाल करता हैं।

आइए इस तथ्य के अन्य पहलुओं पर विचार करते हैं-

1- एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी हो सकता हैं
एक मुसलमान पूर्ण शाकाहारी होने के बावजूद एक अच्छा मुसलमान हो सकता हैं। मांसाहारी होना एक मुसलमान के लिए जरूरी नहीं हैं।

2- पवित्र क़ुरआन मुसलमान को मांसाहार की अनुमति देता हैं ,
पवित्र क़ुरआन मुसलमानों को मांसाहार की इजा़जत देता हैं । निम्न कुरआनी आयतें इस बात का सुबूत हैं-
‘‘ ऐ ईमान वालो! प्रत्येक कर्तव्य का निर्वाह करो। तुम्हारे लिए चौपाए जानवर जायज हैं केवल उनको छोड़कर जिनका उल्लेख किया गया हैं।’’ (कुरआन, 5:1)
‘‘ रहे पशु उन्हे भी उसी ने पैदा किया, जिसमें तुम्हारे लिए गर्मी का सामान (वस्त्र) भी हैं और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हों’’ (कुरआन 16:5)
‘‘ और मवेशियों में भी तुम्हारे लिए ज्ञानवर्धक उदाहरण हैं।उनके शरीर के भीतर हम तुम्हारे पीने के लिए दूध पैदा करते हैं, और इसके अतिरिक्त उनमें तुम्हारे लिए अनेक लाभ हैं, और जिनका मॉस तुम प्रयोग करते हों।’’ (कुरआन, 23:21)
3- मॉस पौष्टिक आहार हैं और प्रोटीन से भरपूर हैं
मांसाहारी खाने भरपूर उत्तम प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। इसमें आठों आवश्यक अमीनों एसिड पाए जाते हैं जो शरीर के भीतर नहीं बनते और जिसकी पूर्ति आहार द्वारा की जानी जरूरी हैं। मॉस में लोह, विटामिन बी-1 और नियासिन भी पाए जाते हैं।

4- इंसान के दॉतों में दो प्रकार की क्षमता हैं।
यदि आप घास-फूस खानेवाले जानवरों जैसे भेड़, बकरी अथवा गाय के दॉत देंखें तो आप उन सभी में समानता पाएंगे। इन सभी जानवरों के चपटे दॉत होत हैं अर्थात जो घास-फूस खाने के लिए उचित हैं। यदि आप मांसाहारी जानवरों जैसे शेर, चीता अथवा बाघ इत्यादि के दॉत देखे तो आप उनमें नकीले दॉत भी पाएंगे जो कि मॉस को खाने में मदद करते हैं। यदि मनुष्य के दातों का अध्ययन किया जाए तो आप पाएंगे कि उनके दॉत नुकीले और चपटे दोनो प्रकार के हैंं। इस प्रकार वे वनस्पति और मांस खाने में सक्षम होते हैं। यहॉ प्रश्न उठता है कि यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर मनुष्य को केवल सब्जियॉ ही खिलाना चाहता तो उसे नुकीले दॉत क्यो देता? यह इस बात का प्रमाण हैं कि उसने हमे मांस एवं सब्जियॉ दोनो को खाने की इजा़जत दी हैं।

5- इंसान मांस अथवा सब्जियॉ दोनो पचा सकता हैं
शाकाहारी जानवरों के पाचनतंत्र केवल सब्जियॉ ही पचा सकते हैं और मांसाहारी जानवर के पाचनतंत्र केवल मांस पचाने में सक्षम है, परंतु इंसान के पाचनतंत्र सब्जियॉ और मांस दोनो पचा सकते हैं। यदि सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें केवल सब्जियॉ ही खिलाना चाहता हैं तो वह हमे ऐसा पाचनतंत्र क्यों देता जो मांस एवं सब्जी दोनो को पचा सकें ।

6- पेड़-पौधों में भी जीवन
कुछ धर्मो ने शुद्ध शाकाहार को अपना लिया क्यो कि वे पूर्ण रूप से जीव-हत्या के विरूद्ध हैं। यदि कोई जीव-हत्या के बिना जीवित रह सकता हैं तो जीवन के इस मार्ग को अपनाने वाला मैं पहला व्यक्ति हूॅ। अतीत में लोगो का विचार था कि पौधों में जीवन नहीं होता। आज यह विश्वव्यापी सत्य हैं कि पौधों में भी जीवन होता हैं। अत: जीव-हत्या के संबंध में उनका तर्क शुद्ध शाकाहारी होकर भी पूरा नहीं होता।

7- पौधों को भी पीड़ा होती है।
वे आगे तर्क देते हैं कि पौधे पीड़ा महसूस नहीं करते: अत: पौधो को मारना जानवरों को मारने की अपेक्षा कम अपराध हैं। आज विज्ञान कहता हैं कि पौधें भी पीड़ा अनुभव करते हैं परंतु उनकी चीख़

मनुष्य के द्वारा नही सुनी जा सकती हैं। इसका कारण यह हैं कि मनुष्य में आवाज सुनने की अक्षमता जो श्र्रुत सीमा में नहीं आते अर्थात 20 हर्टज, से 20,000 हर्टज तक इस सीमा के नीचे या

ऊपर पड़नेवाली किसी भी वस्तु की आवाज मनुष्य नही सुन सकता हैं। एक कुत्ते में 40,000 हर्टज तक सुनने की क्षमता हैं। इसी प्रकार ख़ामोश कुत्ते की ध्वनि की लहर संख्या 20,000 से अधिक और 40,000 हर्टज से कम होती है। इन ध्वनियों को केवल कुत्ते ही सुन सकते हैं, मनुष्य नही। एक कुत्ता अपने मालिक की सीटी पहचानता हैं और उसके पास पहुॅच जाता हैं। अमेरिका के एक किसान ने एक मशीन का आविष्कार किया जो पोधे की चींख को ऊची आवाज में परिवर्तित करती हैं जिसे मनुष्य सुन सकता हैं। जब कभी पौधे पानी के लिए चिल्लाते तो उस किसान को इसका तुरंत ज्ञान हो जाता हैं ।

*प्रश्न -2 क्या मांसाहारी भोजन मुसलमानो को हिंसक बनाता है ?*
उत्तर -
इस्लाम केवल शाकाहारी जानवरों का मांस खाने की इजाजत़ हैं
यह सही हैं कि आदमी जो कुछ खाता है उसका प्रभाव उसके व्यवहार पर पड़ता हैं। यह भी एक कारण है जिसकी वजह से इस्लाम मांसाहारी जानवरों जैसे-शेर, बाघ, चीता आदि हिंसक प्शुओं के मांस खाने को हराम (निषेध) ठहराता हैं। ऐसे जानवरों के मांस का सेवन व्यक्ति को हिंसक और निर्दयी बना सकता हैं इस्लाम केवल शाकाहारी जानवर जैसे-भैंस, बकरी, भेड़ आदि शांतिप्रिय प्शु और सीधे-साधे जानवरों के गोश्त खाने के अनुमति देता हैं।

3.पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल0) ने मांसाहारी जानवरों को खाने से मना किया हैं
मंसाहारी जानवरों से संबंधित सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में वर्णित हदीसों मं हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) ने निम्नलिखित जानवरों के मांस खाने से मना किया हैं-
(क) नुकीले दॉतवाले जंगली जानवर अर्थात मांसाहारी जानवर। यह ऐसे जानवर हैं जो बिल्ली प्रजाति के हैं, जैसे-बाघ, शेर, चीता, भेड़िया कुत्ता आदि।
(ख) कुछ विशेष कुतरनेवाले जानवर, जैसे -चूहा, पंजेवाले खरगोश आदि ।
(ग) नुकीली चोंच और पंजे से शिकार करनेवाले पक्षी जैस-गिद्ध , चील, कौआ, उल्लू इत्यादि।
(घ) कुछ रेंगनेवाले जानवर जैसे-सॉप, मगरमच्छ आदि।

*प्रश्न --3 मुसलमान जानवरों को निर्दयता से धीरे-धीरे उनको देकर क्यों जबह करते हैं?*
उत्तर-- मुसलमान जानवरों को निर्दयता से धीरे-धीरे उनको देकर क्यों जबह करते हैं?

जानवरों को ज़बह करने के इस्लामी तरीके़ पर जिसे ‘ज़बीहा’ कहा जाता हैं, बहुत से लोगो ने आपत्ति की हैं। इस संबंध में हम निम्न बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिनसे यह तथ्य सिद्ध होता है कि जबह करने का इस्लामी तरीका माननीय ही नही बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी श्रेष्ठ हैं-

1- जानवर को जबह करने का इस्लामी तरीका
जानवर को जबह करने के लिए अरबी शब्द ‘जक्कैतुम’ प्रयुक्त किय जाता हैं। जिस क्रिया से यह शब्द बना हैं उसका अर्थ हैं पवित्र करना और शुद्ध करना। इस्लामी तरीके से जानवर को जबह करने हेतु निम्न शर्ते पूरी करना आवश्यक है-
जानवर को तेज छुरी से जबह करना चाहिए ताकि उसे कम से कम पीड़ा हो।

जानवर को गले की तरफ़ से जबह करना चाहिए इस प्रकार कि हल़क और गर्दन की खूनवाली नसे कट जाए, मगर गर्दन के ऊपर का हिस्सा, जिसका संबंध रीढ़ की हड्डी से हैं, न कटे। सिर को अलग करने से पहले खून को पूर्णरूप से बहने देना चाहिए क्यों कि उसमें जीवाणु होते है।अगर रीढ़ की हड्डीवाले हिस्से को जानवर के मरने से पहले काट दिया जाएगा तो इस स्थिति मे सारा खून निकलने से पहले ही वह मर जाएगा और खून उसके मांस में जम जाएगा जिसके कारण मांस हानिकारक हो जाएगा।

2- खून कीटाणुओं और जीवाणुओं का स्रोत है
रक्त में कीटाणु जीवाणु, विषाणु इत्यादि पाएं जाते हैं, इसलिए जबह करने का इस्लामी तरीका अधिक स्वच्छ होता हैं क्योकि खून जिसमेंकीटाणु जीवाणु इत्यादि पाए जाते है, जो अनेक रोगो का कारण बनते हैं, इस प्रक्रिया से बह जाते हैं। 

3- मांस लंबे समय तक ताजा़ रहता है
दूसरे ढंग की अपेक्षा इस्लामी ढंग से जबह किया हुआ मांस लंबे समय तक ताजा रहता हैं, क्योकि मांस में खून कम मात्रा में होता हैं। 

4- जानवर पीड़ा महसूस नही करते
गर्दन की नली को तेजी से काटने से मस्तिष्क नाड़ी की तरफ रक्त का बहाव बंद हो जाता हैं। यह नाड़ी पीड़ा का स्रोत हैं। अत: जानवर पीड़ा अनुभव नही करता । मरते समय जानवर संघर्ष करता हैं, कराहता हैं और लात मारता हैं ऐसा पीड़ा के कारण नही होता बल्कि शरीर से रक्त बह जाने के कारण पुट्ठों के सुकड़ने और फैलने से होता हैं। 'मांसाहार' या 'जीव-हत्या' पे एक पंडित जी के ऐतराज़ का जवाब