नास्तिकों का ऐतराज मरने के बाद जी उठने पे, जिसका जवाब हाजिर है, कुरआन से जवाब Punarjanam Rebirth in Islam:-
Punarjanam Rebirth in Islam 'मरने के बाद' अल्लाह कैसे जिंदा करेगा? नास्तिक का सवाल
❝क्या (इनकार करनेवाले) मनुष्य नहीं देखते कि हमने उसे वीर्य से पैदा किया? फिर क्या देखते है कि वह प्रत्क्षय विरोधी झगड़ालू बन गया. और उसने हमपर फबती कसी और अपनी पैदाइश को भूल गया. कहता है, "कौन हड्डियों में जान डालेगा, जबकि वे (सड़गल कर) ख़ाक हो चुकी होंगी?" कह दो, "उनमें वही जाल डालेगा जिसने उनको पहली बार पैदा किया. वह तो प्रत्येक संसृति को भली-भाँति जानता है. वही है जिसने तुम्हारे लिए हरे-भरे वृक्ष से आग पैदा कर दी। तो लगे हो तुम उससे जलाने।" क्या जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया उसे इसकी सामर्थ्य नहीं कि उन जैसों को पैदा कर दे? क्यों नहीं, जबकि वह महान स्रष्टा , अत्यन्त ज्ञानवान है
उसका मामला तो बस यह है कि जब वह किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करता है तो उससे कहता है, "हो जा!" और वह हो जाती है.❞ –पवित्र कुरआन 36:77-82
Punarjanam Rebirth in Islam.
अल्लाह इन्सान को मरने के बाद कैसे जिंदा करेगा? क्या कुरआन में जवाब है?
❝और वही है जो अपनी दयालुता से पहले शुभ सूचना देने को हवाएँ भेजता है, यहाँ तक कि जब वे बोझल बादल को उठा लेती है. तो हम उसे किसी निर्जीव भूमि की ओर चला देते है, फिर उससे पानी बरसाते है, फिर उससे हर तरह के फल निकालते है. इसी प्रकार हम मुर्दों को मृत अवस्था से निकालेगे - ताकि तुम्हें ध्यान हो.❞ –पवित्र कुरआन 7:57
उंगल-चिन्ह के निशानः (Fingerprints)
"क्या मानव यह समझ रहा है कि हम उसकी हड़डियों को एकत्रित न कर सकेंगे ? क्यों नहीं ? हम तो उसकी उंगलियों के पोर-पोर तक ठीक बना देने का प्रभुत्व रखते हैं।" (अल-क़ुरआन सूर:75 आयत 3 और 4)
काफ़िर या गै़र मुस्लिम आपत्ति करते हैं, कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद मिट्टी में मिल जाता है; और उसकी हड्डियाँ तक ख़ाक में मिल जाती हैं। तो यह कैसे सम्भव है कि, क़यामत के दिन उसके शरीर का एक-एक अंश पूनः एकत्रित हो कर पहले वाली जीवित अवस्था में वापिस आजाए? और अगर ऐसा हो भी गया तो क़यामत के दिन उस व्याक्ति की ठीक-ठीक पहचान किस प्रकार होगी ? अल्लाह तआला ने उपर्युक्त पवित्र आयत
में इस आपत्ति का बहुत ही स्पष्ट उत्तर देते हुए कहा है, कि वह (अल्लाह) सिर्फ इसी पर प्रभुत्व (कुदरत) नहीं रखता की चूर -चूर हड़डियों को वापिस एकत्रित कर दे बल्कि इस पर भी प्रभुत्व रखता है, कि हमारी उंगलियों की पोरों तक को दुबारा से पहले वाली अवस्था में ठीक - ठीक परिवर्तित कर दे।
सवाल यह है कि जब पवित्र क़ुरआन मानवीय मौलिकता के पहचान की बात कर रहा है तो "उंगलियों के पोरों" की विशेष चर्चा क्यों कर रहा है? सर फ्रांसिस गाल्टन (Sir Francis Galton) की तहक़ीक़ के बाद 1880 ई0 में उंगल-चिन्ह (Fingerprints) को पहचान के वैज्ञानिक विधि का दर्जा प्राप्त हुआ। आज हम यह जानते हैं कि इस संसार में किसी दो व्यक्ति के उंगल-चिन्ह का नमूना समान नहीं हो सकता। यहां तक कि हमशक्ल जुड़वा भाई बहनों का भी नहीं, यही कारण है कि आज तमाम विश्व में अपराधियों की पहचान के लिये उनके उंगल चिन्ह का ही उपयोग किया जाता है।
क्या कोई बता सकता है, कि आज से 1400 वर्ष पहले किसको उंगल चिन्हों की विशेषता और उसकी मौलिकता के बारे में मालूम था? यक़ीनन ऐसा ज्ञान रखने वाली ज़ात अल्लाह तआला के सिवा किसी और की नहीं हो सकती।
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