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“मैं बहुत खुशनसीब हूँ क्योंकि मैंने इस्लाम धर्म जाना और अपना लिया। मैं सोचती हूँ कि मैं इस्लाम ना अपनाती, तो मेरा क्या होता?” –ऑस्ट्रेलियन सिस्टर Isaiyat aur Islam.

Isaiyat aur Islam


अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाहि वबरकातुहु,
मैं ऑस्ट्रेलिया से हूँ। मेरे माता पिता भी ऑस्ट्रेलिया से ही हैं। मैं अपनी पूरी जीवन यही रही हूँ। मैं हमेशा से ही पक्षपात रही हूँ। तो ज़ाहिर सी बात है की मेरा हमेशा से ही मुसलमानों और इस्लाम को लेकर गलत भावना थी। जब 9/11 के हमले के बाद तो मेरा और भी ज़्यादा इस्लाम को लेकर नकारात्मक सोच हो गई थी। मैं यह सोचने लगी थी की इस्लाम की यही सच्चाई है और इस्लाम आतंकवाद को बढ़ावा देता है। मैं एक ईसाई थी।
ईसाई होने का यह मतलब है की मैं जो मन चाहे कर सकती हूँ। मैं शराब पी सकती हूँ, मैं रात भर बाहर घूम सकती हूँ। मैं जितने भी पाप करती थी मुझे उनकी कोई भी फ़िक्र नही होती थी और उसकी वजह यह थी की मैंने कभी जाना ही नही था की यह एक गलत काम है। मैं जैसे सब को देखती वैसा ही खुद भी करती।
मेरे परिवार में धर्म को लेकर कभी बात नही होती। ऐसा भी कह सकते हैं की मेरे परिवार में कोई भी धार्मिक नही था। इसीलिए मैंने कभी धर्म के बारे में कुछ भी नही जाना था। मुझे अपने धर्म की किसी भी बात का पता नही था, मैं अपने धर्म की किताबों के नाम तक नही जानती थी।
मैंने 2 साल तक मैंने एक बार में बारटेंडर का काम किया है। मैं एक नाईटक्लब में काम करती थी। एक बार मैं कई लोग से मिली जो की मुसलमान थे। उसमें से एक लड़की मेरी दोस्त थी हम कई दिनों के बाद मिले थे। तो हमारी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। उसका एक दोस्त था जो की अब मेरे पति हैं। हम दोनों आपस में रहते और वह मुझे मुसलमान बनाना चाहते थे, पर मैं मुसलमान बिलकुल भी नही बनना चाहती थी क्योंकि मैं मुसलमान से बहुत ज़्यादा जलती थी और उनको बहुत ही ज़्यादा गलत समझती थी। और मैं यह कभी भी नही सोच सकती थी की मैं मुसलमान बन जाउंगी।
 वह मुझसे कहते थे की तुम एक बार इस्लाम की किताबों को पढ़ो और उसको जानने की कोशिश तो करो, पर मैं कह देती की नहीं मुझको कुछ भी नही जानना है और मैं कुछ भी नही पढूंगी। वह मुझसे कहते रहे की पढ़ लो और मुझसे बहुत विनती करते तो मैंने सोचा की चलो ठीक है एक बार पढ़ कर देख लेती हूँ। वह एक बार पढ़ने ने मेरी ज़िन्दगी ही बदल दी।
तब मैंने एक किताब पढ़ा तो मेरा इस्लाम को लेकर थोड़ी बहुत जिज्ञासा जागने लगी। तो फिर मैंने इस्लाम के बारे में जानना शुरू कर दिया और फिर मैं इस्लाम पर खोज और रिसर्च करने लगी और धीरे धीरे मुझे पता चलने लगा की इस्लाम धर्म की सच्चाई आखिर क्या है। और जिस इस्लाम धर्म को मैं गलत समझती थी मैं उसी की तरफडारि करने लगी और मेरी भावनाएं इस्लाम को लेकर सुलझने लगीं।
मैंने जाना की जैसा की मीडिया मुसलमानों को दिखाती है की वह आतंकवादी होते हैं वैसा कुछ भी नही है असल सच्चाई तो कुछ और ही है। मीडिया ने हमेशा ही इस्लाम की गलत तस्वीर दिखाई पर इस्लाम बहुत अच्छा धर्म है। इस्लाम ने हमेशा ही शान्ति का सन्देश दिया है और इस्लाम अच्छा मज़हब है। इस्लाम की अच्छाइयों को कभी नही दिखाया जाता पर उसकी छोटी सी भी गलती जो की इस्लाम की गलती होती ही नही है उसको भी बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जाता।
मैं एक बार एक मुसलमान महिला से मिली जो की पहले ईसाई थी और फिर वह मुसलमान हो गईं। मैं उनके पास गई और मैंने देखा की वह और उनके परिवार के लोग मुझको देख कर बहुत खुश थे। मैं उनके पास 3 घण्टों तक थी और वह मुझे इस्लाम के बारे में बता रही थी और मेरे जाते जाते मैं रोने लगी। तो उन्होंने मुझसे कहा की तुम क्यों तुम रो रही हो, मैंने कहा की मैं अभी तक अँधेरे में जी रही थी पर अब मैंने उजाला ढून्ढ लिया है।
फिर मैंने शहादह पढ़ लिया और इस्लाम को क़ुबूल कर लिया। मैंने पिछले ही साल अपना शहादह पढ़ा है। मेरे पिता ने कई दिनों तक मुझसे बात नही की। और मेरी माँ ने भी कुछ दिनों तक मुझसे दूरी बनाए रखी। पर फिर भी वह मेरे पास आईं और बोलने लगीं की यह तुमने क्या किया। मैंने कहा की मैंने हक़ को पहचान लिया है। उन्होंने कहा की क्या तुम खुश हो? तो मैंने कहा, ‘हाँ’।
मैं अपने आप को बहुत खुशनसीब समझती हूँ क्योंकि मैंने इस्लाम धर्म को पहचान लिया और उसको अपना लिया। मैं सोचती हूँ की अगर मैं इस्लाम के बारे में ना जानती तो मेरा क्या होता। और मैं इस्लाम में आकर बहुत, बहुत, बहुत खुश हूँ। मैं अल्लाह का बहुत शुक्रिया करना चाहती हूँ की अल्लाह (सुबहान व ताआला) ने मुझे सही रास्ता दिखाया।
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