Life-and-Teachings-of-Muhammad-in-Hindi


बिना ज़ुल्म किये बिना खून बहाए बिना तीर तलवार चलाए,,,

मक्का में अबू सुफ़ियान बहुत बे चैन था जैसे आज कुछ होने वाला है वो बड़बड़ाया उसकी नज़र आसमान की तरफ़ बार बार उठ रही थी उसकी बीवी हिंदा जिसने हज़रत अमीर हमज़ा का कलेजा चबाया था उसकी परेशांनी देख कर उसके पास आ गई, Life and Teachings of Muhammad in Hindi, Fateh Makkah in Hindi.

Fateh Makkah in Hindi

क्या बात है ?क्यों परेशांन हो ?? अबू सुफियान चौका कुछ नहीं तबीयत घबरा रही है मैं ज़रा घूम कर आता हूँ वो ये कहता घर से बाहर निकला और मक्का के गलियों से घूमते घूमते वो इसकी हदे तक पहुँच गया ....  


Life and Teachings of Muhammad in Hindi

अचानक उसकी नज़र शहर से बाहर एक वसी मैदान पर पड़ी ...
हज़ारो मशालें रौशन थी लोगो की चहल पहल उसकी रौशनी में नज़र आ रही थी ....

और भनभनाहट की आवाज़ थी जैसे सैकड़ो लोग धीमी आवाज़ में कुछ पढ़ रहे है ... उसका दिल धक से रह गया 

इसने फ़ैसला किया के वो क़रीब जा कर देखे गा के कौन लोग हैं 
इतना तो वो समझ चुका था के मक्का के लोग तो ग़ाफ़िलो की नींद सो रहे हैं और यक़ीनन ये लश्कर मक्का पर चढ़ाई के लिए ही आया है वो जानना चाहता था ये कौन लोग है ??

वो आहिस्ता आहिस्ता ओट लेता इस लश्कर के काफ़ी क़रीब पहुँच चूका था ,,,
कुछ लोगो ने उसने पहचान भी लिया ये इसके अपने भी लोग थे जो मुसलमान हो चुके थे और मदीना हिजरत कर चुके थे ,,

इसका दिल डूब रहा था वो समझ गया था के ये लश्कर मुसलमानों का है और यक़ीनन मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम अपने जा निसारो के साथ मक्का आ पहुँचे थे ,,
वो छुप कर हालात के जाएज़ह ले रहा भी रहा था के अचानक उसकी गर्दन पर किसी ने तलवार रख दी इसका ऊपर का साँस ऊपर और नीचे का नीचे रह गया था 
लश्कर के पहरेदार ने उसे पकड़ लिया था और अब उसें बारगाहे मुहम्मद SAW में ले जाया जा रहा था 

उसका एक एक क़दम कई कई मन का हो चूका था और हर कदम पर उसे अपने करतूत याद आ रहे थें जंग बद्र , जंगे अहद ,खंदक ,ख़ैबर सब उसकी आँखों के सामने नाच रहे थे ,,, उसे याद आ रहा था इसेने कैसे सरदारान मक्का को इकट्ठा किया था मोहम्मद SAW को क़त्ल करने के लिए कैसे नजासी के दरबार में जाकर तक़रीर की थी के 

Life of Muhammad in Hindi

ये मुसलमान हमारे ग़ुलाम और बागी हैं इनको हमें वापस दो 
कैसे इसकी बीवी हिंदा ने अमीर हमज़ा को अपने ग़ुलाम के ज़रिये शहीद करवा कर उनका सीना चाक कर के उनका कलेजा निकाल कर के चबाया और अब इसे इसी मोहम्मद SAW के सामने पेश किया जा रहा था 

इसे यक़ीन था के 
इसकी रवायात के मुताबिक उस जैसे दहसत गर्द को फ़ौरन तहे तेग कर दिया जाए गा 
उधर बारगाहे रहमतुल लील आलमीन में असहाब रज़ि जमा थे 

और सुबह के अकदामात के बारे में बात चल रही थी के किसी ने आकर अबू सुफियान की गिरफ़्तारी की ख़बर दी ,,
अल्लाहू अकबर ख़िमा में नारे तकबीर बुलंद हुआ अबू सुफियान की गिरफ़्तारी बहुत बड़ी ख़बर और क़ामयाबी थी 

ख़िमा में मौजूद उमर बिन खत्ताब उठ कर खड़े हुए और तलवार को मेयांन से निकाल कर इंतेहाई जोश के आलम में बोले

इस बदबख़्त को क़त्ल कर देना चाहिए शुरू से सारे फ़साद की जड़ यही हैं
चेहरे मुबारक रहमतुल लील आलमीन SAW पर तबस्सुम नमूदार हुआ 
और उनकी दिलो में उतरती हुई आवाज़ गूँजी बैठ जाओ उमर ,, 

और उसे आने दो 
उमर बिन ख़त्ताब आँखों में गैज़ लिए हुक़्म रसूल की अताअत में बैठ गए लेकिन उनके चेहरे की शुर्खी बता रही थी के उनका बस चलता तो अबु सुफियान के टुकड़े कर डालते.


इतने में पहरेदार ने हाज़ीर होने की इजाज़त माँगी इजाज़त मिलने पर अबु सुफ़ियान को रहमतुल लील आलमीन के सामने इस हाल में पेश किया गया के उसके हाथ उसी के

 अमामे से इसकी पुस्त पर बंधे हुए थे 
चेहरे की रंगत पिली पड़ गई थी 

और उसकी आंखो में मौत के साए लहरा रहे थे
रहमतुल लील आलमीन ने देखा और कहा 
इसके हाथ खोल दो और इसको पानी पिलाओ , बैठ जाओ अबु सुफियान .......
अबु सुफियान हारे हुए जुआरी की तरह गिरने के अंदाज़ में ख़ेमा के फर्श पर बिछे कालीन पर बैठ गया ,,

पानी पी कर इसको कुछ हौसला हुआ तो नज़र उठा कर ख़ेमा में मौजूद लोगो की तरफ़ देखा ,, उमर बिन ख़त्ताब की आँखे गुस्से से सुर्ख थी ,, अबु बकर की आँखों में इसके लिए अफ़सोस का तासीर था ,,

उस्मान बिन अफ़्फ़ान के चेहरे पर अज़ीज़दारी की तरह हमदर्दी और अफ़सोस का मिला जुला तासीर था ,, अली इब्ने अबू तालिब का चेहरा सपाट था 

इसी तरह सभी के चेहरे देखते देखते आख़िर उसकी नज़र मोहम्मद सल्लल्लाहु अलिहेव्सल्लम के चेहरे मुबारक पर आकर ठहर गई 
कहो अबु सुफियान कैसे आना हुआ ??

अबु सुफियान के गले में जैसे आवाज़ नहीं थी
बहुत हिम्मत कर के बोला मैं .मैं इस्लाम क़बुल करना चाहता हूँ 

उमर बिन ख़त्ताब एक बार फ़िर उठ कर खड़े हुए या रसूल लल्लाह SAW ये शख्स मक्कारी कर रहा है जान बचाने के लिए इस्लाम क़बल करना चाहता है मुझे इजाज़त दीजिये मैं आज इस दुश्मन अज़ली का खात्मा कर दूँ उनके मुहँ से कैफ़ जारी था

बैठ जाओ उमर रेसालत माब SAW ने नरमी से फ़िर फ़रमाया
बोलो अबु सुफियान क्या तुम वाक़ई में इस्लाम क़बल करना चाहते हो????
जो..जी या रसूल लल्लाह SAW मैं इस्लाम क़बुल करना चाहता हूँ मैं समझ गया हूँ के आप और आप का दींन भी सच्चा है इसका वादा पूरा हुआ मैं जान गया हूँ के सुबह मक्का को फ़तह होने से कोई नहीं बचा सकता ,,

चेहरे रेसालत SAW पर मुस्कुराहट फ़ैली ठीक है अबु सुफियान 
तो मैं तुम्हे इस्लाम की दावत देता हूँ और तुम्हारी दरखास्त क़बल करता हूँ जाओ तुम आज़ाद हो 

सुबह हम मक्का में दाख़िल होंगें इंशा अल्लाह मैं तुम्हारे घर को जहाँ आज तक इस्लाम और हमारे ख़िलाफ़ साजिशें होती थी जाए अमन क़रार देता हूँ जो तुम्हारे घर में पनाह ले लेगा वो महफूज़ है.

अबु सुफियान की आँखे हैरत से फटी जा रही थीं,,, 

और सुनो मक्का वालो से कहना 
जो बैततुल्लाह में दाख़िल हो गया उसको अमान है , 

जो अपनी किसी इबादतगाह में चला गया उसको अमान हैं यहाँ तक के जो अपने घरों में बैठ गया उसको भी अमान है.

जाओ अबु सुफियान जाओ जाकर सुबह हमारी आमद का इंतज़ार करो ,,
,
और कहना मक्का वालो से के हमारी कोई तलवार मेयांन से बाहर नहीं होगी हमारा कोई तीर तरकश से बाहर नहीं होगा , हमारा कोई नेज़ा किसी के तरफ़ सीधा नहीं होगा जब तक के कोई हमारे साथ लड़ना नहीं चाहे गा ,,,,

अबु सुफियान ने हैरत से मोहम्मद SAW की तरफ़ देखा और काँपते हुए होठों से बोलना शुरू किया .... लाइलाहा इल्लल्लाह मोहम्मदुर रसूलल्लाह ...

सब से पहले उमर बिन ख़त्ताब आगे बढे और अबु सुफियान को गले लगा लिया मरहबा ऐ अबु सुफियान अब से तुम हमारे दीनी भाई हुए तुम्हरी जान माल हमारे ऊपर वैसे ही हराम हो गया जैसा के हर मुसलमान का एक दूसरे पर हरांम है 

अल्लाह पाक़ तुमहारी तमाम पिछली गुनाहों को मुआफ़ फ़रमाए ,,,
अबु सुफियान हैरत से देख रहा था ये कैसा दींन हैं?
ये कैसे लोग हैं?

सब से मिल कर वो बाहर निकल गया,,
वो दहशत गर्द अबु सुफियान जिस के शर से मुसलमान आज तक तंग थे उन्ही के दरमियान से सलामती से गुजरता हुआ जा रहा था जहाँ से गुज़रता इसे इस्लामी लश्कर का हर फर्द हर सिपाही उस से बढ़ बढ़ कर मुसाफ़ा कर रहा था और मुबारकबाद दे रहा था.


अगले दिन मक्का शहर की हद पर जो लोग खड़े थे उनमें सब से नुमाया अबु सुफियान था,,
मुसलमानों का लश्कर मक्का में दाखिल हो चुका था किसी एक तलवार किसी एक नेज़े किसी एक तीर की नोक पर ख़ून का एक कटरा भी नहीं था.

लश्कर इस्लाम को हिदायत मिल चुकी थी किसी के घर में दाख़िल मत होना.

किसी के इबादतगाह को नुक्सान मत पोहचना ,,
किसी का पीछा मत करना.

औरत और बच्चों पर हाथ न उठाना ,,
किसी का माल न लूटना

बेलाल हब्शी राज़िअल्लाहो अन्हो आगे आगे एलान करते जा रहें थे,,,
मक्का वालो रसूल ए खुदा की तरफ़ से तुम सब के लिए आम मुआफ़ी का ऐलान है.


जो इस्लाम क़बुल करना चाहता है वो कर सकता है ,,जो न करना चाहे वो अपने साबका दींन पर रह सकता है,

सब को उनके मज़हब के मुताबिक इबादत की खुली इजाज़त है ,,,


सिर्फ़ मस्जिदे हरम और उसकी हदुद के अंदर बुत परस्ती की इजाज़त नहीं होगी किसी का ज़रिया मॉस छीना नहीं जाए गा कोई को उसकी जाएयदाद से महरूम नहीं किया जाए गा ,,

ग़ैर मुसलमानों के जान और माल की हिफाज़त मुसलमान करेंगें 
ऐ मक्का के लोगो .......

हिंदा अपने दरवाज़े से लश्करे इस्लाम को जाते देख रही थी,

उसका दिल गवाही नहीं दे रहा था के हज़रत हमज़ा का क़त्ल इसको मुआफ़ कर दिया जाए गा ,,,

लेकिन अबु सुफियान ने तो रात में यही कहा था के इस्लाम क़बूल कर लो सब गलतियां मुआफ़ हो जाएं गी ,,

मक्का फ़तह हो चूका था,,

बिना ज़ुल्म किये बिना खून बहाए बिना तीर तलवार चलाए,,,

लोग जोक़ दर जोक़ इस अफ़ाक़ी मज़हब को अख़्तेयार करने और अल्लाह की तौहीद और रसूल लल्लाह SAW की रेसालत का इक़रार करने मस्जिदे हरम की सेहन में जमा हो रहे थे और तभी मक्का वालो ने देखा इस हुजूम में हिंदा भी , है ,,,
ये हुआ करता था इस्लाम ,,यह थी इसकी तालिमात ये सिखया था रहमतुल लील आलमीन SAW ने ।