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मुसलमान मात्र एक अल्लाह की पूजा करतें हैं जो प्यारे प्यारे नामों और महान गुणों से सुसज्जित है। 
वह उस अल्लाह पर विश्वास रखते हैं जो उनका श्रृष्टा और मालिक है, उसे पत्नी की आवश्यकता है, सन्तान की ज़रूरत है, Musalman Kiski Puja Karta Hai उसे निन्द्रा आती है और ऊँघ, उसने आकाश और पृथ्वी की रचना की, वही मारने वाला और जीवन प्रदान करने वाला है, वही पैदा करने वाला और रोज़ी देने वाला है, मुसलमान उसी एक अल्लाह पर भरोसा करते हैं और उसी से सहायता माँगते हैं।

Musalman Kiski Puja Karta Hai

उनका विश्वास है कि अल्लाह हर वस्तु पर सामर्थ्य रखता है।, वही प्रार्थनाओं को सुनने वाला है। वही पश्चाताप स्वीकार करने वाला है, अति दयालु और क्षमा करने वाला है। वह ज्ञान रखने वाला और छोटी बड़ी प्रत्येक वस्तुओं को देखने वाला है। वह परोक्ष तथा प्रत्यक्ष अपितु हृदय में छुपे हुए रहस्यों से भी अवगत है।
जब यह बात एक व्यक्ति के हृदय में बैठ जाती है तो वह स्वयं पाप करते अथवा सृष्टि पर अत्याचार करते हुए लज्जित होता है क्योंकि उसका अल्लाह उसकी एक एक परिस्थिति से अवगत है और उसे देख रहा है। 
जब एक मुस्लिम यह जानता है कि उसका रब बड़ा तत्त्वदर्शी है, परोक्ष की बातों को जानने वाला है तो वह अपने अल्लाह के अधिकार पर पूर्ण भरोसा करता और यह दृढ विश्वास रखता है कि उसका रब किसी पर अत्याचार नहीं करता, अल्लाह ने उसके सम्बन्ध में जो भी फैसला किया होगा उसमें अच्छाई होगी यधपि उसकी हिकमत से वह अनभिज्ञ है। इस प्रकार मुसलमान का दृष्टिकोण एकता-बद्ध हो जाता है।
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सूरह इख्लास 
(कुरआन की एक सुरह जिसमे बताया गया है की अल्लाह कौन है)
  • इख्लास का अर्थ है अल्लाह की शुद्ध इबादत (वंदना) करना| इसी का दूसरा नाम तौहीद (अद्वैत) है, इस सूरह में तौहीद का वर्णन है, इसी लिये इस का यह नाम है।
 यह सूरह मक्की सूरतों में से है। यद्यपि इस के उतरने से संबंधित रिवायत से लगता है कि यह सूरह मदीने में उस समय उतरी जब मदीने के यहूदियों ने आप से प्रश्न किया कि बताइये कि वह पालनहार कैसा है जिस ने आप को भेजा है। या यह कि “नजरान” के ईसाईयों ने इसी प्रकार का प्रश्न किया कि वह कैसा है, और किस धातु का बना हुआ है। तो यह सूरह उतरी। परन्तु सब से पहले यह प्रश्न स्वयं मक्का वासियों ने ही किया था। इसलिये इसे मक्का में उतरने वाली आरम्भिक सूरतों में गणना किया जाता है। इस का नाम “सूरह इख्लास” है। इख्लास का अर्थ है: अल्लाह पर ऐसे ईमान लाना कि उस के अस्तित्व और गुणों में किसी की साझेदारी की कोई आभा (झलक) न पाई जाये। और इसी को तौहीदे खालिस (निर्मल ऐकेश्वरवाद) कहते हैं। जहाँ तक अल्लाह को मानने की बात है तो संसार ने सदा उस को माना है परन्तु वास्तव में इस मानने में ऐसा मिश्रण भी किया है कि मानना और न मानना दोनों बराबर हो कर रह गये हैं। तौहीद को उजागर करने के लिये अल्लाह ने बराबर नबी भेजे परन्तु इन्सान बार बार इस तथ्य को खोता रहा। आदरणीय इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने तौहीद (ऐकेश्वरवाद) के लिये प्रस्थान किया, और अपने परिवार को एक बंजर वादी में बसाया कि वह मात्र एक अल्लाह की पूजा करेंगे। परन्तु उन्हीं के वंशज ने उन के बनाये तौहीद के केन्द्र अल्लाह के घर काबा को एक देव स्थल में बदल दिया। तथा अपने बनाये हुये देवताओं का अधिकार माने बिना अल्लाह के अधिकार को स्वीकार करने के लिये तैयार न थे। यह स्थिति मात्र मक्का वासियों की न थी, ईसाई और यहूदी भी यद्यपि तौहीद के दावेदार थे फिर भी उन के यहाँ तीन पूज्यों: पिता, पुत्र और पविगात्मा के योग से तौहीद बनी थी। यहदियों के यहाँ भी अल्लाह का पुत्रः उजैर अवश्य था। कहीं पूज्य एक तो था परन्तु बहुत से देवी देवता भी उस के साथ पूज्य थे। (देखियेः उम्मुल किताब) (ये रहा इस सुरह का संक्षिप्त व्याख्या आईये अब इस सुरह को पढ़ते है)

अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
﴾ 1 ﴿ (हे ईश दूत!) कह दोः अल्लाह अकेला है।[1]
1. आयत संख्या 1 में ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है, उस का अस्तित्व एवं गुणों में कोई साझी नहीं है। यहाँ ‘अह़द’ शब्द का प्रयोग यह बताने के लिये किया गया है कि वह अकेला है। वह वृक्ष के समान एक नहीं है जिस की अनेक शाखायें होती हैं। आयत संख्या 2 में ‘समद’ शब्द का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ है अब्रण होना। अर्थात जिस में कोई छिद्र न हो जिस से कुछ निकले, या वह किसी से निकले। और आयत संख्या 3 इसी अर्थ की व्याख्या करती है कि न उस की कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
﴾ 2 ﴿  अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार) है।
﴾ 3 ﴿ न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है।
﴾ 4 ﴿ और न उसके बराबर कोई है।[1]
1. इस आयत में यह बताया गया है कि उस की प्रतिमा तथा उस के बराबर और समतुल्य कोई नहीं है। उस के कर्म, गुण और अधिकार में कोई किसी रूप में बराबर नहीं। न उस की कोई जाति है न परिवार। इन आयतों में क़ुर्आन उन विषयों को जो जातियों के तौह़ीद से फिसलने का कारण बने उसे अनेक रूप में वर्णित करता है। और देवियों और देवताओं के विवाहों और उन के पुत्र और पौत्रों का जो विवरण देव मालाओं में मिलता है क़ुर्आन ने उसी का खण्डन किया है। कुरआन सुरह न० 112